मुख्य बिंदु

  • CBDC वह डिजिटल संस्करण है जो सीधे केंद्रीय बैंक की देयता में जारी होती है।

  • खुदरा या थोक उपयोग, खाता-आधारित या टोकन-आधारित मॉडल, ब्लॉकचेन या पारम्परिक प्रणाली - डिज़ाइन विकल्पों का महत्व।

  • वित्तीय समावेशन, पेमेंट इनोवेशन, ऑनलाइन और ऑफलाइन लेनदेन में सहजता।

  • बैंकिंग व्यवस्था पर प्रभाव, गोपनीयता-विनियमन दुविधाएँ, क्रॉस-बॉर्डर इंटरऑपरेबिलिटी।

देश-विदेश में इस नए युग की मुद्रा का स्वरूप अब तेजी से केंद्र बिंदु बनता जा रहा है। सेंट्रल बैंक डिजिटल करंसी यानी CBDC मूल रूप से एक ऐसी डिजिटल भुगतान सुविधा है जो सीधे भारतीय रिज़र्व बैंक या अन्य किसी राष्ट्रीय केंद्रीय बैंक की देयता में जारी होती है, अर्थात् यह निजी बैंकों के जमा खाते नहीं बल्कि सार्वजनिक बैंक द्वारा समर्थित फंड है।

इसका उद्देश्य केवल नकदी का डिजिटल विकल्प बन जाना नहीं है, बल्कि बढ़ते डिजिटल भुगतानों के बीच “सार्वजनिक मुद्रा” की उपस्थिति को सुनिश्चित करना है। उदाहरण के लिए, IMF के एक प्रमुख विश्लेषण में यह कहा गया है कि CBDC का अलग मूल्य है क्योंकि यह “डिजिटल अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक मुद्रा”के रूप में काम कर सकती है। 

डिज़ाइन विकल्प और महत्वपूर्ण निर्णय

CBDC के डिज़ाइन में कई विकल्प मौजूद हैं - खुदरा (रेटेल) उपयोग के लिए या थोक (wholesale) उपयोग के लिए; खाता-आधारित या टोकन-आधारित; केंद्रीयकृत या विकेंद्रीकृत नेटवर्क आदि।

उदाहरण के लिए, BIS की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि खुदरा CBDC और फास्ट पेमेंट सिस्टम (FPS) दोनों में समानताएँ हैं - दोनों त्वरित लेनदेन की सुविधा देते हैं, लेकिन मुख्य अंतर यह है कि खुदरा CBDC नया केंद्रीय बैंक मनी रूप है जबकि FPS निजी बैंक मनी के अंतर्गत आता है।

डिज़ाइन में यह भी ध्यान देना होता है कि क्या CBDC ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करेगी, क्या उपयोगकर्ता पहचान पूर्ण होगी या आंशिक अनामिता होगी, तथा कैसे बैंक रन और वित्तीय अस्थिरता से बचाव किया जाए। 

लाभ के पहलू

दुनिया में लगभग 1.69 बिलियन लोग बैंकिंग सिस्टम से बाहर पाए गए हैं। CBDC के माध्यम से उन्हें सीधे केंद्रीय बैंक खाते का विकल्प मिल सकता है। इंटरनेट व मोबाइल पेमेंट्स के वक्त, डिजिटल केंद्रीय मुद्रा से लेन-देनों की गति, लागत और विश्वसनीयता बेहतर हो सकती है।

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CBDC को “प्रोग्रामेबल मनी” माना जा रहा है, जिससे मौद्रिक नीति के नए लीवर मिल सकते हैं - जैसे लेनदेन पर टैक्स या सब्सिडी सीधे मॉड्यूल करना। वैश्विक स्तर पर CBDC फ्रिक्शन्स को कम कर सकती है, उदाहरण के लिए मुद्रा विनिमय, मध्यस्थों की संख्या, और समय-खपत।

चुनौतियाँ एवं जोखिम

यदि लोग बैंक जमा से हटकर सीधे CBDC में शिफ्ट कर जाएँ, तो बैंकिंग मध्यस्थता कमजोर हो सकती है, जिससे बैंकिंग प्रणाली को निधि जुटाने में कठिनाई हो सकती है। 

डिजिटल लेन-देहों का ट्रेल बन सकता है, जिससे व्यक्तिगत गोपनीयता को खतरा हो सकता है। IMF ने “डेटा उपयोग और गोपनीयता-सुरक्षा” पर विश्लेषण प्रस्तुत किया है।

CBDC प्रणाली बेहद जटिल और साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील हो सकती है। विभिन्न देशों में CBDC मॉडल अलग-अलग होंगे, इससे क्रॉस-बॉर्डर लेन-देहों में संगति की समस्या हो सकती है।

भारत के संदर्भ में CBDC

CBDC सिर्फ एक तकनीकी प्रवृत्ति नहीं है। यह सार्वजनिक मुद्रा और केंद्रीय बैंकिंग व्यवस्था के लिए मॉडर्नाइज़ेशन का अवसर है। यदि सही डिजाइन, मजबूत नियामक ढांचा, तकनीकी सुरक्षा और व्यापक समावेशन के साथ लागू की जाए, तो यह डिजिटल युग में मनी सिस्टम को नए आयाम दे सकती है।

लेकिन इसके साथ चुनौतियों को हल करना उतना ही महत्वपूर्ण है - वित्तीय स्थिरता का संरक्षण, बैंकिंग मध्यस्थता का संतुलन, उपयोगकर्ता-गोपनीयता का पालन, एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग। भारत जैसे विकसित और डिजिटल रूप से तेजी से आगे बढ़ रहे देश के लिए यह एक अवसर भी है और जिम्मेदारी भी।

भारत में इंटरनेट कनेक्टिविटी, डिजिटल साक्षरता और भुगतान-इन्फ्रास्ट्रक्चर में क्षेत्रीय असमानताएँ हैं। इसलिए ऑफलाइन ट्रांजैक्शन की क्षमता, मोबाइल व मॉड्यूलर वॉलेट मॉडल आदि पर काम जारी है। इसके साथ-साथ, फिनटेक और निजी क्षेत्र-सहभागिता से प्रणाली को स्केल योग्य बनाना होगा।

भारत जैसे देश के लिये यह महत्वपूर्ण है कि भविष्य में डिजिटल रुपए को अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में सक्षम बनाया जाए। BIS की रिपोर्ट के मुताबिक, क्रॉस-बॉर्डर CBDC एक जटिल लेकिन महत्वपूर्ण लक्ष्य है। इसमें कानूनी, नियामक, तकनीकी और सहयोग-मंच की चुनौतियाँ शामिल होंगी।

निष्कर्ष

भारत में e-Rupee के रूप में CBDC का विकास एक रणनीतिक पहल है। यह डिजिटल अर्थव्यवस्था, वित्तीय समावेशन और भुगतान प्रणाली के आधुनिकीकरण की दिशा में कदम है। वैश्विक अनुभव (चीन, यूरोज़ोन, अमेरिका) बताते हैं कि गति, मॉडल-चयन, नियामक ढांचा और उपयोगकर्ता-विश्वास इस सफर में निर्णायक होंगे।

भारत की सच्ची सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि तकनीकी इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ उपयोगकर्ता-सहभागिता, बैंकिंग-सहयोग, गोपनीयता-सुरक्षा और व्यवहार-स्वीकार्यता को किस तरह संतुलित किया जाए। यदि ये चुनौतियाँ हल हो गईं, तो भारत का मॉडल सिर्फ घरेलू ही नहीं बल्कि वैश्विक संदर्भ में भी प्रेरणा बन सकता है।

अंततः e-Rupee को जल्दबाज़ी में लॉन्च करने की तुलना में सुरक्षित, समावेशी और व्यवहार-अनुकूल तरीके से लागू करना बेहतर होगा। समय और परीक्षण दोनों ही इस प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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