2009-10 में जब बिटकॉइन की शुरुआत हुई थी तब यह केवल क्रिप्टोग्राफी के शौकीनों तक सीमित था। उस दौर में न तो कोई एक्सचेंज था और न ही कोई बाजार, इसलिए इसकी वास्तविक कीमत लगभग शून्य मानी जाती थी। लेकिन 2025 तक पहुंचते-पहुंचते इस डिजिटल करेंसी ने ऐसा मुकाम हासिल कर लिया है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

14 अगस्त 2025 को बिटकॉइन ने अब तक का सर्वाधिक स्तर छूते हुए 1,24,400 डॉलर (एक करोड़ रुपये से अधिक) का आंकड़ा पार कर लिया। हालांकि इसके बाद उतार-चढ़ाव देखने को मिला, फिर भी यह लगातार निवेशकों और नीतिनिर्माताओं का ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। आज बाजार में करीब 25,000 क्रिप्टोकरेंसी मौजूद हैं, जिनका संयुक्त बाजार पूंजीकरण अगस्त 2025 में चरम पर पहुंचकर 4.18 ट्रिलियन डॉलर तक जा चुका है।

वैश्विक क्रिप्टो परिदृश्य

विशेषज्ञों का मानना है कि क्रिप्टो में यह उछाल कई कारकों से प्रेरित है, जैसे अमेरिका में क्रिप्टो समर्थक प्रशासन, जनरेशन-ज़ेड की तकनीकी समझ और वित्तीय नवाचार के प्रति उत्सुकता, बिटकॉइन का पारंपरिक संपत्तियों को पछाड़ता ट्रैक रिकॉर्ड, और सबसे महत्वपूर्ण, संस्थागत निवेश की बढ़ती स्वीकृति।

अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जनवरी 2025 में कार्यभार संभालते ही देश को “क्रिप्टो कैपिटल”बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए। जुलाई में लागू GENIUS एक्ट के तहत स्टेबलकॉइन को कानूनी ढांचा और उपभोक्ता सुरक्षा दी गई। इसके समानांतर जापान में येन-आधारित स्टेबलकॉइन लॉन्च की तैयारी है, जबकि हांगकांग ने भी अपने डॉलर से जुड़ा स्टेबलकॉइन नियमन लागू किया।

एशिया में दिलचस्प पहल पड़ोसी देशों ने भी की है। पाकिस्तान ने Pakistan Crypto Council (PCC) का गठन किया और बिटकॉइन रिज़र्व बनाने की योजना घोषित की। भूटान ने पर्यटन क्षेत्र में क्रिप्टो भुगतान को लगभग सर्वव्यापी बना दिया है और Binance के साथ साझेदारी कर इसे और सुलभ बनाया है। इन कदमों से यह साफ है कि छोटी अर्थव्यवस्थाएं भी डिजिटल मुद्रा को विकास और निवेश आकर्षण का उपकरण मानने लगी हैं।

भारत की स्थिति: अवसर और उलझनें

भारत क्रिप्टो अपनाने वाले शीर्ष देशों में से एक है, लेकिन यहां नियामकीय माहौल अब भी जटिल है। आयकर अधिनियम की धारा 2(47A) के तहत क्रिप्टो को वर्चुअल डिजिटल एसेट (VDA) की श्रेणी में रखा गया है। इसके ट्रांसफर से हुए लाभ पर 30% की फ्लैट कर दर लागू है। साथ ही, धारा 194S के तहत हर लेन-देन पर 1% टीडीएस काटा जाता है।

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विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कठोर कराधान न केवल छोटे निवेशकों के लिए अवरोध है, बल्कि नवाचार और लंबी अवधि की रणनीति को भी प्रभावित करता है। Mudrex के सीईओ एडुल पटेल के अनुसार, "नियामकीय स्पष्टता और निवेशक शिक्षा भारत में सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। जब तक समग्र नीति नहीं बनेगी, अनिश्चितता बनी रहेगी।"

फिर भी, भारत ने कुछ सकारात्मक कदम भी उठाए हैं। 2023 में वर्चुअल डिजिटल एसेट सेवा प्रदाताओं (VDASPs) को FIU-IND के अधीन रिपोर्टिंग इकाई घोषित किया गया, जिससे वे PMLA के दायरे में आ गए। इसका अर्थ है कि अब एक्सचेंजों को लेन-देन की निगरानी, रिकॉर्ड रखना और संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट करना अनिवार्य है। CoinSwitch के सह-संस्थापक आशीष सिंघल मानते हैं कि इससे पारदर्शिता और भरोसे का वातावरण मजबूत होगा।

क्रिप्टो और अवैध गतिविधियों की बहस

आलोचकों का एक बड़ा तर्क यह है कि क्रिप्टो अवैध लेन-देन का माध्यम बन सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार, वास्तविकता इससे भिन्न है। समस्या का समाधान क्रिप्टो पर कठोर अंकुश नहीं, बल्कि स्मार्ट रेगुलेशन और तकनीकी निगरानी है।

निष्कर्ष

क्रिप्टो का परिदृश्य अब केवल तकनीकी प्रयोग से आगे बढ़कर वैश्विक वित्तीय व्यवस्था का महत्वपूर्ण घटक बन चुका है। अमेरिका, जापान, हांगकांग और यहां तक कि पाकिस्तान व भूटान जैसे छोटे देश भी नियामकीय स्पष्टता और नवाचार के माध्यम से आगे बढ़ रहे हैं।

भारत के लिए यह एक निर्णायक मोड़ है। यहां की विशाल युवा आबादी, डिजिटल भुगतान का मजबूत बुनियादी ढांचा और निवेशकों की रुचि इसे क्रिप्टो की अगली बड़ी राजधानी बना सकते हैं। लेकिन इसके लिए सरकार को स्पष्ट, संतुलित और नवाचार-प्रोत्साहक नीति ढांचा तैयार करना होगा।

यदि भारत समय रहते यह कदम उठाता है, तो वह न केवल निवेश और रोजगार सृजन में बढ़त लेगा, बल्कि वैश्विक डिजिटल वित्तीय शासन में भी नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है। अन्यथा, कठोर कराधान और नियामकीय अस्पष्टता से यह सुनहरा अवसर हाथ से निकल सकता है।

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