भारत की सर्वोच्च प्रत्यक्ष कर संस्था, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT), ने देश में क्रिप्टोकरेंसी और वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDA) के नियमन को लेकर एक नया विमर्श छेड़ दिया है। बोर्ड ने क्रिप्टो उद्योग से सीधे पूछा है कि क्या इस क्षेत्र के लिए एक अलग और व्यापक कानून बनाने की आवश्यकता है।

वर्तमान में वर्चुअल डिजिटल एसेट्स से होने वाले लाभ पर 30% कर लगाया जाता है, साथ ही प्रत्येक लेन-देन पर 1% टीडीएस (Tax Deducted at Source) की व्यवस्था है। इसके बावजूद उद्योग जगत और निवेशकों का मानना है कि केवल कराधान नियम पर्याप्त नहीं हैं; स्पष्ट कानूनी ढांचा भी जरूरी है।

उद्योग जगत के सामने रखे सवाल

सीबीडीटी ने हाल ही में आयोजित एक परामर्श बैठक में क्रिप्टो एक्सचेंजों, फिनटेक कंपनियों और कानूनी विशेषज्ञों से सुझाव मांगे। बोर्ड ने पूछा कि क्या मौजूदा आयकर अधिनियम और वित्तीय अपराध रोकथाम कानून (PMLA) वर्चुअल एसेट्स को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त हैं, या फिर संसद से एक विशेष कानून पारित किया जाना चाहिए।

अधिकारियों का कहना है कि क्रिप्टो लेन-देन केवल कर वसूली का मामला नहीं है, बल्कि यह उपभोक्ता सुरक्षा, निवेशकों के अधिकार और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे व्यापक मुद्दों से भी जुड़ा हुआ है।

क्रिप्टो खिलाड़ियों की राय

भारत में काम कर रहे कई क्रिप्टो एक्सचेंजों ने इस पहल का स्वागत किया है। उनका कहना है कि जब तक एक स्पष्ट और स्थायी नीति नहीं बनेगी, तब तक निवेशकों का भरोसा डगमगाता रहेगा और भारतीय बाजार पीछे रह सकता है।

कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि नए कानून में निम्नलिखित पहलू शामिल होने चाहिए:

1. परिभाषा की स्पष्टता – क्रिप्टो टोकन, स्थिर कॉइन (stablecoin), और NFT के बीच स्पष्ट भेद।

2. लाइसेंस प्रणाली – एक्सचेंज और वॉलेट प्रदाताओं के लिए अनिवार्य पंजीकरण।

3. उपभोक्ता संरक्षण – धोखाधड़ी या तकनीकी गड़बड़ी की स्थिति में निवेशकों के अधिकारों की गारंटी।

4. पारदर्शिता – सभी लेन-देन की रिपोर्टिंग और ऑडिट की व्यवस्था।

वैश्विक संदर्भ और भारत की स्थिति

दुनिया के कई देश पहले ही क्रिप्टो को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुके हैं। यूरोपीय संघ ने हाल ही में ‘MiCA’ (Markets in Crypto-Assets Regulation) लागू किया है, जबकि अमेरिका में इस पर अभी भी गहन बहस चल रही है।

भारत ने 2022-23 के बजट में कर नियम लागू कर क्रिप्टो पर निगरानी की शुरुआत की थी, लेकिन नीति स्तर पर अभी भी स्पष्टता की कमी है। इस कारण कई स्टार्टअप्स अपना मुख्यालय विदेश में स्थानांतरित करने लगे हैं।

आगे की राह

सीबीडीटी के इस कदम को नीति निर्माण की दिशा में अहम पहल माना जा रहा है। यदि सरकार उद्योग जगत और विशेषज्ञों की राय को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित कानून बनाती है, तो यह न केवल निवेशकों का विश्वास बढ़ाएगा बल्कि कर संग्रह और वित्तीय पारदर्शिता में भी मदद करेगा।

फिलहाल, सभी की नजरें सरकार और संसद की आगामी कार्यवाही पर टिकी हैं कि क्या भारत जल्द ही वर्चुअल डिजिटल एसेट्स के लिए एक नया कानूनी ढांचा तैयार करेगा।