भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का भविष्य तेजी से बदल रहा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा और स्मार्ट ऑटोमेशन जैसी अवधारणाएं अब केवल सैद्धांतिक चर्चा का हिस्सा नहीं रह गई हैं, बल्कि वास्तविक जीवन की चुनौतियों का समाधान देने वाली तकनीकों में बदल रही हैं। इसी कड़ी में चेन्नई में दक्षिण भारत की पहली साइबर-भौतिक प्रणाली (Cyber-Physical System - CPS) प्रयोगशाला का उद्घाटन हुआ, जिसने न केवल तमिलनाडु बल्कि पूरे क्षेत्र को तकनीकी दृष्टि से एक नई पहचान दिलाई है।

साइबर-भौतिक प्रणाली: क्या और क्यों?

साइबर-भौतिक प्रणाली ऐसी तकनीक है, जिसमें भौतिक प्रक्रियाओं और डिजिटल कंप्यूटिंग का गहन एकीकरण होता है। सरल शब्दों में कहें तो यह कंप्यूटर, सेंसर, नेटवर्क और भौतिक दुनिया को एक-दूसरे से जोड़कर काम करती है। इसका उपयोग स्मार्ट परिवहन प्रणाली, स्वास्थ्य देखभाल उपकरणों, स्वचालित विनिर्माण, स्मार्ट कृषि और यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे में भी किया जा सकता है।

आईआईटी (IIT) रोपड़ के निदेशक डॉ राजीव आहूजा ने बताया कि यह सीपीएस प्रयोगशाला दक्षिण भारत की पहली प्रयोगशालाओं में से एक है तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के एनएम-आईसीपीएस (NM-ICPS) कार्यक्रम के अंतर्गत स्थापित 16वीं प्रयोगशाला है। इसका उद्देश्य स्वदेशी टूलकिट के माध्यम से व्यावहारिक शिक्षा और नवाचार को बढ़ावा देना है।

भारत सरकार का विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) पहले से ही इस क्षेत्र में निवेश कर रहा है। राष्ट्रीय अंतःविषय साइबर-भौतिक प्रणाली मिशन (NM-ICPS) इसी दिशा में एक बड़ा कदम है, जिसके तहत देशभर में कई प्रयोगशालाएँ स्थापित की जा रही हैं। चेन्नई की यह नई प्रयोगशाला इस मिशन के अंतर्गत स्थापित 16वीं लैब है, लेकिन दक्षिण भारत की अपनी तरह की पहली।

सहयोग की ताकत

इस पहल के पीछे दो संस्थानों का साझा प्रयास है — भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रोपड़ और हिंदुस्तान प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (HITS), चेन्नई। दोनों संस्थानों ने मिलकर इसे शोध, नवाचार और कौशल विकास का एक केंद्र बनाने का लक्ष्य रखा है। 

चेन्नई स्थित यह CPS प्रयोगशाला तकनीकी संसाधनों से पूरी तरह सुसज्जित है। इसमें IIT रोपड़ द्वारा विकसित उन्नत IoT किट, वोल्टेरा V-वन सर्किट प्रोटोटाइपिंग मशीन, BLE विकास उपकरण, कम-शक्ति वाले कैमरा मॉड्यूल, पर्यावरण सेंसर, और AI/ML वर्कस्टेशन जैसी सुविधाएँ मौजूद हैं। ये उपकरण छात्रों और शोधकर्ताओं को 24/7 “प्लग-एंड-प्ले” अनुभव प्रदान करेंगे।

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इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि अब छात्र केवल सैद्धांतिक ज्ञान तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि वे वास्तविक दुनिया की समस्याओं पर प्रयोग कर सकेंगे। उदाहरण के लिए—स्मार्ट शहरों के लिए ऊर्जा कुशल समाधान, स्मार्ट हेल्थकेयर उपकरण या औद्योगिक स्वचालन की नई तकनीकें यहीं विकसित की जा सकती हैं।

अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा

यह प्रयोगशाला केवल अकादमिक अनुसंधान के लिए ही नहीं है। इसका डिज़ाइन इस तरह किया गया है कि इसमें छात्रों, शोधकर्ताओं, नवप्रवर्तकों, उद्यमियों और उद्योग पेशेवरों सभी को समान रूप से अवसर मिले। यह नवाचार-आधारित विकास (Innovation-driven development) को बढ़ावा देगा और स्टार्टअप संस्कृति को भी गति प्रदान करेगा।

क्षेत्रीय और राष्ट्रीय महत्व

तमिलनाडु पहले से ही ऑटोमोबाइल, आईटी और विनिर्माण उद्योगों के लिए जाना जाता है। अब CPS लैब की स्थापना इसे स्मार्ट टेक्नोलॉजी और उन्नत अनुसंधान का नया हब बना सकती है। दक्षिण भारत के छात्रों और शोधकर्ताओं को अब दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरु जाने की आवश्यकता नहीं होगी; वे अपनी ही भूमि पर अत्याधुनिक तकनीक तक पहुँच पाएंगे।

इसके अलावा, यह पहल “आत्मनिर्भर भारत” के विज़न को भी बल देती है। स्वदेशी उपकरणों और टूलकिट के माध्यम से व्यावहारिक शिक्षा और नवाचार को प्रोत्साहित करना उसी दिशा में एक ठोस कदम है।

निष्कर्ष

चेन्नई में स्थापित दक्षिण भारत की पहली साइबर-भौतिक प्रणाली प्रयोगशाला केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह शिक्षा, अनुसंधान और उद्योग—तीनों क्षेत्रों के लिए परिवर्तनकारी अवसर लेकर आई है। IIT रोपड़ और HITS का यह सहयोग दिखाता है कि जब अकादमिक संस्थान, उद्योग और सरकार एक साथ आते हैं, तो देश को तकनीकी रूप से नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया जा सकता है।

आने वाले वर्षों में यह प्रयोगशाला न केवल तमिलनाडु, बल्कि पूरे भारत के लिए एक नवाचार इंजन साबित हो सकती है। यह पहल हमारे युवाओं को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सक्षम बनाएगी और भारत को चौथी औद्योगिक क्रांति (Industry 4.0) में अग्रणी स्थान दिलाने की दिशा में एक अहम पड़ाव सिद्ध होगी।

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