भारत में क्रिप्टोकरेंसी का परिदृश्य बीते कुछ वर्षों में तेजी से विकसित हुआ है। एक ओर यह डिजिटल वित्तीय संपत्ति युवा निवेशकों, तकनीकी विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है, तो दूसरी ओर इससे जुड़े घोटालों, साइबर ठगी और नियामकीय अनिश्चितताओं ने इसकी साख पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।

हाल के दो मामलों ने एक बार फिर इस क्षेत्र में व्याप्त चुनौतियों को उजागर कर दिया है—राज कुंद्रा से जुड़ा बिटकॉइन घोटाला और दिल्ली पुलिस द्वारा उजागर किया गया पैन-इंडिया क्रिप्टो इन्वेस्टमेंट रैकेट।

क्रिप्टो से जुड़ा हाई-प्रोफाइल मामला

राज कुंद्रा प्रकरण ने दिखाया कि किस तरह बड़े कारोबारी भी क्रिप्टो के जरिए संदेहास्पद लेनदेन में उलझ सकते हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हाल ही में उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) की विशेष अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया है। आरोपपत्र के अनुसार, कुंद्रा के पास 285 बिटकॉइन हैं जिनकी वर्तमान कीमत करीब 150 करोड़ रुपये आंकी गई है। यह बिटकॉइन उन्हें कथित क्रिप्टो स्कैम मास्टरमाइंड अमित भारद्वाज से प्राप्त हुए थे।

ईडी का कहना है कि कुंद्रा ने न केवल इन बिटकॉइन को छुपाया बल्कि वॉलेट एड्रेस जैसी अहम जानकारियाँ भी जानबूझकर साझा नहीं कीं। इतना ही नहीं, एजेंसी के अनुसार उन्होंने अपनी पत्नी और अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के साथ "बाजार दर से कहीं कम मूल्य" पर एक लेन-देन कर इस धन के स्रोत को छुपाने की कोशिश की। यह मामला स्पष्ट करता है कि क्रिप्टोकरेंसी किस तरह काले धन को वैध दिखाने के औजार के रूप में इस्तेमाल की जा रही है।

ठगी का साइबर नेटवर्क

दूसरी ओर, दिल्ली पुलिस की साइबर सेल ने हाल ही में हरियाणा के करनाल से नरेश कुमार नामक व्यक्ति को गिरफ्तार किया। वह 'कॉइन-एक्स क्रिप्टो ट्रेडिंग' नामक एक पैन-इंडिया रैकेट से जुड़ा हुआ था, जिसने एक ही पीड़ित से 34 लाख रुपये की ठगी की।

पुलिस के अनुसार, नरेश ने अपने "नरेश ट्रैक्टर वर्कशॉप" नाम से 10 अलग-अलग बैंकों में चालू खाते खोले थे, जिनमें यूनियन बैंक, एक्सिस बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, कैनरा बैंक और आईडीबीआई जैसे बड़े बैंक भी शामिल थे।

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इन खातों का उपयोग कर ठगों ने निवेशकों को ‘क्रिप्टो ट्रेडिंग और हाई-रिटर्न’ का लालच देकर ठगा। यह गिरफ्तारी एक बड़े संगठित साइबर नेटवर्क का खुलासा करती है, जिसने देशभर में अनेक निर्दोष लोगों को फर्जी निवेश योजनाओं के जाल में फँसाया।

नियामकीय अस्पष्टता और चुनौतियाँ

भारत में क्रिप्टो का सबसे बड़ा संकट केवल ठगी और अवैध गतिविधियाँ नहीं हैं बल्कि इससे भी बड़ा मुद्दा नियामकीय स्पष्टता का अभाव है। अब तक कोई ठोस कानून यह तय नहीं करता कि क्रिप्टोकरेंसी को वैध मुद्रा, डिजिटल एसेट या फिर सट्टेबाजी उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए। सरकार ने भले ही 30% कर और 1% टीडीएस लगाकर इसे आंशिक रूप से मान्यता दी हो, परंतु नियमन के अभाव में निवेशकों की सुरक्षा अधर में है।

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया कई बार यह चिंता जता चुका है कि क्रिप्टो मुद्रा देश की मौद्रिक स्थिरता के लिए खतरा बन सकती है। वहीं, निवेशक समुदाय यह मानता है कि स्पष्ट कानून और नियंत्रित वातावरण से भारत इस उभरती तकनीक का लाभ उठा सकता है।

निवेशक असुरक्षा और सामाजिक प्रभाव

इन दोनों घटनाओं से यह साफ है कि निवेशकों का एक बड़ा वर्ग बिना पर्याप्त जानकारी के लालच में आकर ठगी का शिकार हो रहा है। छोटे शहरों और कस्बों तक फैले साइबर ठग हाई-रिटर्न योजनाओं का प्रचार कर भोले-भाले लोगों की मेहनत की कमाई लूट रहे हैं। दूसरी ओर, जब बड़े कारोबारी भी विवादास्पद लेन-देन में फँसते हैं तो यह संदेश जाता है कि क्रिप्टो का इस्तेमाल मुख्यतः संदिग्ध गतिविधियों के लिए किया जा रहा है।

तकनीकी अवसर बनाम अपराध की जटिलता

क्रिप्टो ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित है, जो पारदर्शिता और सुरक्षा का दावा करती है। लेकिन विडंबना यह है कि उसी तकनीक का उपयोग अपराधी “अनाम लेन-देन” के लिए कर रहे हैं। यह दोहरी प्रकृति नीति-निर्माताओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती है—तकनीक के अवसरों का लाभ उठाना और अपराध के लिए इसके दुरुपयोग को रोकना।

निष्कर्ष

भारत की क्रिप्टो यात्रा अभी भी असमंजस और अनिश्चितताओं से भरी हुई है। राज कुंद्रा का मामला और दिल्ली पुलिस का साइबर रैकेट खुलासा यह दर्शाता है कि यदि ठोस और पारदर्शी नियम नहीं बने तो यह क्षेत्र निवेशकों के लिए खतरे का पर्याय बन सकता है।

आवश्यकता है कि केंद्र सरकार, नियामक संस्थाएँ और प्रवर्तन एजेंसियाँ मिलकर एक संतुलित ढांचा तैयार करें, जिससे एक ओर नवाचार और निवेश को बढ़ावा मिले और दूसरी ओर ठगी और काले धन पर कठोर अंकुश लगाया जा सके।तभी भारत डिजिटल वित्तीय क्रांति का हिस्सा बन सकेगा, अन्यथा क्रिप्टो का यह परिदृश्य एक अंतहीन चुनौती ही बना रहेगा।

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