भारत ने डिजिटल मुद्राओं के उपयोग के वैश्विक परिदृश्य में एक बड़ा मील का पत्थर पार कर लिया है। बायबिट (Bybit) और डीएल रिसर्च की ‘वर्ल्ड क्रिप्टो रैंकिंग 2025’ रिपोर्ट में भारत को लेन-देन के आधार पर शीर्ष 10 देशों में शामिल किया गया है, जहाँ इसकी रैंक 9वीं दर्ज की गई है।
इस उपलब्धि ने भारतीय क्रिप्टो समुदाय और डिजिटल अर्थव्यवस्था के उत्साह को नया आयाम दिया है, खासकर ऐसे समय में जब नीति निर्धारण और विनियमन की अनिश्चितता बनी हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की रैंकिंग का बड़ा कारण स्टेबलकॉइन का बढ़ता उपयोग और खुदरा निवेशकों का सक्रिय भागीदारी है। स्टेबलकॉइन, जो पारंपरिक मुद्रा के मूल्य से जुड़े डिजिटल सिक्के हैं, अब न केवल एक निवेश उपकरण बल्कि भुगतान, बचत और सीमा पार ट्रांसफर के साधन के रूप में भी उभर रहे हैं।
वैश्विक तुलना और रुझान
वैश्विक स्तर पर यूक्रेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, नाइजीरिया और वियतनाम जैसे देश शीर्ष पर बने हैं जहाँ क्रिप्टो अपनाने की दरें विभिन्न वित्तीय जरूरतों से प्रेरित है। उदाहरण के लिए, कुछ देशों में स्टेबलकॉइन का उपयोग मुद्रास्फीति और स्थानीय वित्तीय बाधाओं को रोकने के एक तरीके के रूप में बढ़ा है।
डिजिटल अर्थव्यवस्था पर केंद्रित अन्य रिपोर्टें भी दिखाती हैं कि भारत और अमेरिका दोनों ही वैश्विक क्रिप्टो अपनाने में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, खासकर ऑन-चेन गतिविधियों और रिटेल लेन-देन में। अधिकांश क्रिप्टो लेन-देनों में स्टेबलकॉइन की हिस्सेदारी 90% से अधिक है, जो दिखाता है कि उपयोगकर्ता अधिक स्थिर और उपयोग योग्य डिजिटल मुद्रा विकल्पों की ओर अग्रसर है।
भारत की घरेलू तस्वीर
भारत में क्रिप्टो मुद्राओं का उपयोग निरंतर बढ़ रहा है, जहाँ लाखों निवेशक डिजिटल परिसंपत्तियों को बचत, निवेश और सीमा पार भुगतानों के लिए उपयोग कर रहे हैं। यह विकास स्टेबलकॉइन के बढ़ते उपयोग और खुदरा भागीदारी के कारण संभव हुआ है, जिसे स्थानीय उपयोगकर्ताओं ने पारंपरिक बैंकिंग सेवाओं के विकल्प के रूप में अपनाया है।
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हालांकि, विश्व क्रिप्टो रैंकिंग में भारत की कुल क्रिप्टो अपनाने की समग्र रैंकिंग 40वीं है, जो इंगित करता है कि लेन-देन में तो प्रगति दिखाई दे रही है, लेकिन नियमन, संस्थागत भागीदारी और बाजार संरचना में अभी भी चुनौतियाँ मौजूद हैं।
नियम और जोखिम
भारत में क्रिप्टो मार्केट को लेकर सरकारी दृष्टिकोण मिश्रित रहा है। जहां उपयोग व्यापक है, वहीं नियामक ढाँचे और कर नीतियाँ इसे चुनौती दे रही हैं। उदाहरण के लिए, भारत में क्रिप्टो लेन-देनों पर 30% कर और 1% TDS लागू है, जो निवेशकों के लिए बोझ बन सकता है।
साथ ही, हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के एक उप-गवर्नर ने स्टेबलकॉइन पर गंभीर जोखिमों की चेतावनी दी है और उन्हें मौद्रिक स्थिरता के लिए संभावित खतरा बताया है। उन्होंने कहा कि स्थिरकॉइन से अवैध गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं और केंद्रीय बैंक द्वारा जारी डिजिटल मुद्रा (CBDC) बेहतर विकल्प है।
वैश्विक स्तर पर भी नियम-प्रणाली के परिवर्तन हो रहे हैं। यूरोपीय संघ में MiCA फ्रेमवर्क लागू हो रहा है और अमेरिका में स्टेबलकॉइन तथा क्रिप्टो निवेश के लिए नियमों पर तेज़ी से काम हो रहा है। इससे स्पष्ट है कि भारत को नीतिगत बदलावों के साथ तालमेल बैठाने की आवश्यकता है ताकि तकनीकी प्रगति को अपनाना आसान रहे।
भविष्य की राह और संभावनाएँ
भारत के लिए यह उपलब्धि एक संकेत है कि डिजिटल मुद्रा अपनाने का भविष्य उज्जवल है, बशर्ते कि विनियमन और प्रौद्योगिकी का संतुलित मिश्रण मिल सके। यदि भारत रुपये के अनुकूल स्टेबलकॉइन विकसित करता है और क्रिप्टो नीतियों को स्पष्ट करता है, तो देश केवल लेन-देन में ही नहीं बल्कि वैश्विक क्रिप्टो नवाचार में भी अग्रणी बन सकता है।
इसके अलावा, डिजिटल भुगतान प्रणालियों जैसे यूपीआई की दुनिया में बढ़ती सफलता भी यह सिद्ध करती है कि भारत डिजिटल लेन-देन के लिए तैयार है और यदि सही नीतिगत दिशा मिलती है, तो क्रिप्टो अपनाने की गति और भी तेज़ होगी।
निष्कर्ष
भारत का वैश्विक क्रिप्टो लेन-देन में शीर्ष 10 में शामिल होना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो देश के डिजिटल वित्तीय विकास और तकनीकी अपनाने की क्षमता को दर्शाता है। हालांकि नियामक स्पष्टता और जोखिम प्रबंधन की चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन स्टेबलकॉइन और खुदरा उपयोग के विस्तार ने भारत को डिजिटल मुद्रा के उपयोग में एक नया मुकाम दिलाया है।
आगे की राह पर नीति-निर्माताओं और उद्योग को मिलकर एक संतुलित, सुरक्षित और नवाचार-अनुकूल वातावरण बनाना होगा ताकि भारत क्रिप्टो अर्थव्यवस्था में मजबूती से आगे बढ़ सके।
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