पिछले कुछ सालों में भारत में क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल एसेट्स का लोकप्रियता प्राप्ति जबरदस्त रही है। लाखों नए निवेशक, खासतौर से युवा, ट्रेडिंग में उतर चुके हैं। लेकिन, जैसा कि हालिया डेटा दिखा रहा है, इस उछाल के बीच एक बड़ी कमी भी है। बाज़ार अभी भी पुरुष प्रधान है।
देश भर में लाखों नए निवेशकों के प्रवेश के बावजूद क्रिप्टो अभी भी व्यापक रूप से पुरुष-केंद्रित प्रवृत्तियों से संचालित है। महिलाओं की कम भागीदारी केवल जोखिम प्रवृत्ति या तकनीकी जटिलता का मामला नहीं है, बल्कि यह वित्तीय साक्षरता, सामाजिक मान्यताओं, निवेश संस्कृति, और ऑनलाइन समुदायों में सहजता की कमी जैसे अनेक स्तरों से जुड़ा हुआ मुद्दा है।
एक सर्वेक्षण के अनुसार, 18-35 वर्ष आयु वर्ग के पुरुषों का हिस्सा ट्रेडिंग में 43.4% रहा, जबकि इसी आयु वर्ग की महिलाएं मात्र 5.5% थीं। यह असमानता भारत के क्रिप्टो बाजार में लिंग आधारित अंतर की बहुत बड़ी तस्वीर प्रस्तुत करती है।
वैश्विक सर्वेक्षणों में भी यही ट्रेंड देखने को मिलता है। 2025 की एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल लगभग 26–30% क्रिप्टो निवेशक महिलाएँ हैं। कई सर्वेक्षणों में महिलाएँ खुद बताती हैं कि जानकारी या अनुभव की कमी उन्हें निवेश करने से रोकती है।
क्यों हैं महिलाएँ पीछे
महिलाएँ अक्सर निवेश में कम जोखिम लेने की ओर झुकती हैं। कई सर्वे बताते हैं कि महिलाएँ अल्प अवधि ट्रेडिंग या मीमकॉइन्स जैसे वोलैटाइल एसेट में भाग लेने के बजाय स्थिर, ज्ञात संपत्तियों, जैसे कि प्रमुख कॉइन या स्टेबलकॉइन, को प्राथमिकता देती है।
क्रिप्टो में अस्थिरता और तेज-तर्रार मूवमेंट होती है, जिससे सुरक्षा और स्थिरता खोजने वाले निवेशकों, विशेषतः महिलाएँ, अक्सर दूर रहती हैं। बहुत सी महिलाएं खुद निवेश करने को लेकर आत्मविश्वासहीन महसूस करती हैं।
उन्हें लगता है कि क्रिप्टो प्लेटफार्म, लेन-देन, तकनीकी जटिलताएँ आदि समझना मुश्किल है। जहाँ पुरुष अक्सर खुद को निवेश के लिए “तैयार” समझते हैं और जल्दी निर्णय लेते हैं, महिलाओं के लिए ये निर्णय सोच-समझकर, धीरे-धीरे होते हैं। इससे उनकी हिस्सेदारी कम रहती है।
सामुदायिक व सांस्कृतिक बाधाएँ
क्रिप्टो और ब्लॉकचेन जैसे क्षेत्र लंबे समय से पुरुष-प्रधान रहे हैं, न सिर्फ निवेशक स्तर पर, बल्कि टेक्नोलॉजी, डेवलपमेंट और लीडरशिप में भी। यही माहौल महिलाओं को वर्जित जैसा महसूस कराता है।
कुछ महिलाएँ यह भी बताती हैं कि वे क्रिप्टो समुदायों में असहज महसूस करती हैं। उन्हें अपने विचारों को लेकर अवमूल्यन या असहायपन महसूस हुआ। कई महिलाएँ, चाहे निवेश करें या करना चाहती हों, क्रिप्टो को लंबी अवधि के निवेश के रूप में देखती हैं।
उन्होंने मीमकॉइन्स या अल्ट्स जैसी वोलैटाइल चीज़ों की तुलना में स्थिर, भरोसेमंद कॉइन यानी ब्लू-चिप या स्टेबलकॉइन की तरफ झुकाव दिखाया है। इस तरह का दृष्टिकोण, अगर बढ़ा, तो क्रिप्टो मार्केट में दीर्घकालिक स्थिरता और परिपक्व निवेश संस्कृति स्थापित कर सकता है।
क्षेत्रीय प्रवृत्ति
क्षेत्रीय स्तर पर भी दिलचस्प पैटर्न दिखाई देते हैं। केरल और तमिलनाडु में स्थिर, कम-जोखिम वाली संपत्तियों की लोकप्रियता अधिक है, जबकि गुजरात और चंडीगढ़ जैसे क्षेत्रों में मीमकॉइन्स का आकर्षण ज़्यादा है। गियोटस के सीईओ विक्रम सुब्बुराज इस प्रवृत्ति को भारत के क्रिप्टो बाजार की परिपक्वता का संकेत मानते हैं जहाँ निवेशक गति और स्थिरता के बीच संतुलन सीख रहे हैं।
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आगे की राह
वित्तीय साक्षरता बढ़ाने के प्रयास ज़रूरी हैं, खासकर उन प्लेटफार्मों और समुदायों में जहाँ महिलाएँ दुविधा में हों। महिलाओं के लिए सुरक्षित, सरल और गाइडेड ऑन-रैम्प निवेश-शिक्षा व मंच तैयार करना होगा, जिससे वे आत्मविश्वास के साथ निवेश कर सकें।
सामाजिक व सांस्कृतिक रूढ़ियों को चुनौती देने की जरूरत है ताकि क्रिप्टो सिर्फ पुरुषों का खेल न रहे। अंततः, जैसे-जैसे बाजार परिपक्व हो रहा है, स्थिरता व दीर्घ-कालिक निवेश की ओर बढ़ रही है, यह महिलाओं के लिए एक अवसर हो सकता है।
निष्कर्ष
बाज़ार की तेजी और क्रिप्टो की लोकप्रियता के बावजूद भारत में क्रिप्टो ट्रेडिंग अभी भी पुरुष प्रधान है। यह लिंग असमानता सिर्फ सांख्यिकीय डेटा नहीं है बल्कि निवेश की प्रवृत्तियों, आर्थिक आत्मविश्वास, सामाजिक बर्ताव और वित्तीय साक्षरता के गहरे अंतर्संबंधों का परिणाम है।
अगर डिजिटल एसेट्स को सच में लोकतांत्रिक और समावेशी निवेश विकल्प बनना है, तो महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना अनिवार्य होगा। जैसे-जैसे अधिक महिलाएँ इस इकोसिस्टम में शामिल होंगी और बाजार स्थिर व पारदर्शी बनेगा, भारत का क्रिप्टो परिदृश्य न सिर्फ बड़ा होगा बल्कि अधिक संतुलित और परिपक्व भी बनेगा।
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