देश की आर्थिक नीतियों पर निगाह डालने वालों के लिए 1 अक्टूबर 2025 का दिन महत्वपूर्ण साबित हुआ, जब भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में रेपो दर को 5.5 % पर ही स्थिर रखने का फैसला किया।  इसके साथ ही, केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) के लिए अपनी GDP वृद्धि की पूर्वानुमान दर को 6.8 % पर संशोधित किया, जो पहले 6.5 % थी।

नीति समिति ने यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया, और नीति रुख को “न्यूट्रल” बनाए रखने पर जोर दिया गया। केंद्रीय बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि इस समय यह बेहतर है कि पहले लिए गए नीतिगत कदमों का असर देखा जाए और वैश्विक अनिश्चितताओं पर नज़र रखी जाए।

कहानी: निर्णय के पीछे की सोच

वर्ष 2025 की शुरुआत से ही RBI ने लगातार तीन मौक़ों पर (फ़रवरी, अप्रैल एवं जून) दरों में रियायत दी थी, कुल मिलाकर 100 आधार अंक (basis points) की कटौती की गई थी, जिससे रेपो दर 6.5 % से घटाकर 5.5 % हो गई।

लेकिन इस अक्टूबर की बैठक में दर को आगे घटाना समिति ने उपयुक्त नहीं समझा। मुख्य कारणों में शामिल हैं:

  1. मुद्रास्फीति दबाव: RBI ने अपनी CPI आधारित मुद्रास्फीति अनुमान को 2.6 % पर लाया, जो पहले की अनुमानित दरों से कम है। खाद्य कीमतों में नरमी और माल एवं सेवा कर (GST) सुधार इस कमी में सहायक माने गए।

  2. मजबूत कृषि और ग्रामीण मांग: इस वर्ष की मानसूनी गतिविधियाँ सामान्य से अधिक रही हैं, फसल बुवाई बेहतर हुई है, और जलाशयों का स्तर भी संतोषजनक है। ये कारक ग्रामीण उपभोग को द्रवित कर रहे हैं।

  3. शीघ्र आर्थिक प्रदर्शन: FY26 की पहली तिमाही में वृद्धि दर 7.8 % दर्ज की गई, जो आशा से बेहतर थी।

  4. वैश्विक चुनौतियाँ: अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ, विदेश व्यापार में अनिश्चितता, और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अस्थिरता इस निर्णय को प्रभावित करने वाली बड़ी चुनौतियाँ रहीं।

इस तरह, RBI ने संतुलन बनाए रखने की रणनीति अपनाई — एक ओर विकास को बनाए रखना, दूसरी ओर कीमतों की सुरक्षा करना।

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प्रभाव और चुनौतियाँ

इस निर्णय का असर विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है:

  • उधार और निवेश: बैंक अब ब्याज दरों को तुरंत घटा नहीं पाएँगे, इसलिए क्रेडिट की उपलब्धता और लागत में बदलाव सीमित रहेगा।

  • शेयर बाजार: दर संवेदनशील सेक्टर जैसे बैंकिंग और वित्तीय सेवाएँ सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखा रही हैं।

  • उद्योग एवं उपभोक्ता: उपभोक्ता लेनदेन में थोड़ा भारीपन आ सकता है, लेकिन अभी तक सहज आर्थिक गतिविधि जारी रहने की आशा है।

  • निर्यात व्यवसाय: यदि वैश्विक मांग कमजोर पड़ी या टैरिफ दबाव बढ़े, तो निर्यातक वर्ग पर दबाव बढ़ सकता है।

लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं — यदि मुद्रास्फीति अचानक बढ़ जाए या अंतरराष्ट्रीय संकट गहरा जाए, तो RBI को अधिक सक्रिय होना पड़ेगा। यह निर्णय फिलहाल “रुकाव” का नहीं, बल्कि “निरीक्षण” का संकेत लगता है।

निष्कर्ष

भारतीय रिज़र्व बैंक का यह निर्णय — रेपो दर को 5.5 % पर स्थिर रखना और GDP वृद्धि दर को 6.8 % पर संशोधित करना — यह दर्शाता है कि नीति निर्माता इस समय “ध्यानपूर्वक संतुलन” की स्थिति में हैं। उन्होंने विकास को बढ़ावा देने की आकांक्षा के साथ-साथ कीमतों की स्थिरता को भी महत्व दिया है।

आगे आने वाले समय में यह देखना होगा कि यह “पॉज़” नीति RBI को कितनी मजबूती देती है और आर्थिक मार्ग को स्थिर रख पाती है या नहीं।

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