अमेरिका और ब्रिटेन ने क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े नियामकीय ढांचे को मजबूत करने के लिए संयुक्त कार्यबल गठित करने की घोषणा की है। इस पहल का उद्देश्य निवेशकों की सुरक्षा, वित्तीय स्थिरता और डिजिटल परिसंपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए दोनों देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है।

अमेरिकी ट्रेजरी विभाग और ब्रिटेन के वित्त मंत्रालय ने एक संयुक्त बयान में कहा कि यह कार्यबल क्रिप्टो बाजार से जुड़े जोखिमों और अवसरों का आकलन करेगा तथा विनियामक मानकों को सामंजस्यपूर्ण बनाने की संभावनाओं पर विचार करेगा।

अधिकारियों का मानना है कि सीमा-पार लेनदेन और तेजी से बदलती डिजिटल तकनीकों के चलते किसी एक देश का नियामकीय ढांचा पर्याप्त नहीं है। ऐसे में वैश्विक समन्वय आवश्यक है।

कार्यबल डेटा साझा करने, मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के उपायों और उपभोक्ता हितों की रक्षा जैसे मुद्दों पर प्राथमिकता के आधार पर काम करेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से दोनों देशों में क्रिप्टोकरेंसी के प्रति निवेशकों का विश्वास बढ़ सकता है।

भारत में क्रिप्टो का नियमन और सहयोग की संभावनाएँ

क्रिप्टोकरेंसी की बढ़ती लोकप्रियता और वित्तीय प्रणालियों पर उसके प्रभाव को देखते हुए भारत सरकार ने ‘वर्चुअल डिजिटल एसेट्स’ (VDA) की परिभाषा तथा उन पर कर और अनुपालन जैसे नियम लागू कर दिए हैं।

क्या आप जानते हैं फेड दर में कटौती के बीच माइकल सायलर की स्ट्रेटेजी ने $100M का बिटकॉइन खरीदा

क्रिप्टो आज कानूनी मुद्रा नहीं है, बल्कि एक डिजिटल संपत्ति के रूप में स्वीकार किया गया है, जिसे खरीदा, बेचा और रखा जा सकता है, लेकिन रोजमर्रा के भुगतानों के लिए वैधानिक नहीं है। सरकार ने मनी लॉन्ड्रिंग और वित्तीय अपराधों से निपटने के लिए पहचान व पारदर्शिता नियमों को कड़ा किया है।

संभावनाएँ

वैश्विक क्रिप्टो नियमन सहयोग तभी प्रभावी हो सकता है जब अन्य देशों के साथ मानक, टैक्स नियम और जोखिम आकलन साझा हों। इससे ‘नियामक अवसरवाद’ कम होगा। एक स्पष्ट क्रिप्टो बिल या कानून बनने से निवेशकों और उद्योग को निश्चितता मिलेगी। यह नवाचार को प्रोत्साहित करेगा और विदेशी निवेश आकर्षित कर सकता है।

ब्लॉकचेन-टेक्नोलॉजी, Web3 आदि नए अवसर हैं, विशेषकर डिजीटल भुगतान, आपूर्ति श्रृंखला, स्वास्थ्य, शैक्षणिक दस्तावेज़ आदि क्षेत्रों में। क्रिप्टो और डिजिटल-एसेट सेक्टर में विकास से रोजगार और प्रौद्योगिकीय विकास संभव है।

चुनौतियाँ

  • मूल्य अस्थिरता निवेशकों में जोखिम पैदा करती है।

  • अधिक कर और TDS नियमों का बोझ उद्योग और छोटे निवेशकों पर पड़ सकता है।

  • गोपनीयता, प्रमाणीकरण, वित्तीय अपराधों की रोकथाम के लिए पर्याप्त तकनीकी और नियामक संसाधन होना चाहिए।

  • राष्ट्रों द्वारा नियमन परिवर्तन होने की संभावना, इसलिए भविष्य-अनिश्चितता बनी हुई है।

निष्कर्ष

भारत की नीति संतुलित दृष्टिकोण पर आधारित है: पूर्ण प्रतिबंध नहीं, लेकिन नियंत्रण, पारदर्शिता और सहयोग के माध्यम से जोखिम-नियंत्रण।

यदि सरकार समय रहते अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नियम बनाए और उद्योग की भागीदारी सुनिश्चित करे, तो क्रिप्टोकरेंसी का क्षेत्र भारत में विकासशील आर्थिक और तकनीकी अवसरों का एक मजबूत स्तंभ बन सकता है।

ऐसी ही और ख़बरों और क्रिप्टो विश्लेषण के लिए हमें X पर फ़ॉलो करें, ताकि कोई भी अपडेट आपसे न छूटे!