भारत का WPI वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों का संवेदनशील संकेतक बना हुआ है। थोक मूल्य सूचकांक के नवीनतम आंकड़ों ने एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेत प्रस्तुत किया है। Wholesale Price Index (WPI) अक्टूबर 2025 में वर्ष-पहले-वर्ष आधार पर −1.21 प्रतिशत पर आ गया, जो पिछले माह से 0.13 प्रतिशत पर रिकॉर्ड वृद्धि के बाद एक नाटकीय गिरावट है।
ऑल कमोडिटीज के लिए WPI सूचकांक अक्टूबर 2025 में 154.8 रहा (आधार वर्ष 2011-12=100) तथा इसे पिछले साल अक्टूबर से तुलना करने पर –1.21 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई। प्राथमिक वस्तु समूह मुद्रास्फीति –6.18 % रही।
ईंधन एवं बिजली समूह में –2.55 % की गिरावट आई। तैयार उत्पादों समूह में +1.54 % की मुद्रास्फीति रही। खाद्य पदार्थों (Food Index) पर विशेष रूप से असर देखने को मिला। MoM बदलाव देखें तो सभी वस्तुओं का सूचकांक सितंबर से अक्टूबर में –0.06 % गिरा।
गिरावट के पीछे मुख्य कारण
सब्जियों की कीमतों में भारी कमी देखी गई है। उदाहरण के लिए, सब्जियों की वार्षिक गिरावट लगभग –34.97 % रही। क्रूड पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस की कीमतों में कमी ने ईंधन-श्रेणी को नीचे लाया।
पिछले साल की तुलना में इस साल के कुछ घटक कमजोर रहे, जिससे आधार-प्रभाव ने गिरावट को और तेज किया। तैयार उत्पादों में मुद्रास्फीति रही, लेकिन इसकी गति धीमी रही और अन्य क्षेत्रों के कमजोर प्रदर्शन ने समग्र विलोम को नीचे खींचा।
अर्थव्यवस्था पर असर
यह WPI डेटा संकेत देता है कि थोक स्तर पर कीमतें घट रही हैं, जिसका अर्थ है कि उत्पादक व थोक विक्रेता कम मूल्य पर माल बेच रहे हैं। यदि यह प्रवृत्ति बनी रही, तो यह अंततः उपभोक्ता स्तर पर कीमतों में कमी और उत्पादन गतिविधि में धीमापन का संकेत दे सकती है।
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इसके साथ ही, यह RBI के लिए एक राहत का संकेत है क्योंकि थोक मुद्रास्फीति गिरने से मुद्रास्फीति-दबाव कम होता दिख रहा है। हालांकि, बहुत अधिक गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक भी हो सकती है। यह मांग-घटाव, उत्पादन-कम होने या निवेश की सुस्ती का संकेत भी हो सकती है।
आगे की संभावनाएँ और चुनौतियाँ
आगे के महीनों में यह देखना होगा कि क्या यह गिरावट क्षणिक है या ट्रेंड में बदलाव है। यदि कीमतें और नीचे जाएँ, तो अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय हो सकता है।
वैश्विक कच्चे माल की कीमतों, विनिमय दरों, लॉजिस्टिक लागत, मौसमी घटनाओं आदि का निगरानी बहुत महत्वपूर्ण होगी क्योंकि ये WPI पर असर डालते हैं।
सरकार द्वारा किए गए जीएसटी कट, सब्सिडी व अन्य नीतिगत हस्तक्षेपों का प्रभाव भी थोक व खुदरा कीमतों पर देखा जाना रहेगा। उत्पादन-क्षेत्रों में सुस्ती आए तो यह रोजगार व निवेश पर नकारात्मक असर डाल सकती है, जिसे नीति-निर्माताओं को ध्यान में रखना होगा।
निष्कर्ष
अक्टूबर 2025 में WPI के –1.21 प्रतिशत पर पहुंचने का अर्थ यह है कि भारत में थोक स्तर पर कीमतों का दबाव उल्लेखनीय रूप से कम हुआ है। फिर भी, इस सकारात्मक दिखने वाली स्थिति के कुछ सीमित पक्ष भी हैं। लगातार नकारात्मक WPI का यह भी संकेत हो सकता है कि घरेलू मांग में अपेक्षित तेजी नहीं है और उद्योग उत्पादन उतना मजबूत नहीं चल रहा जितनी आवश्यकता है।
यदि बाजार में मांग सुस्त रहती है तो उद्योग उत्पादन, रोजगार सृजन और निवेश की गति भी प्रभावित हो सकती है। इसलिए, WPI में गिरावट को केवल महंगाई कम होने के रूप में देखने के बजाय इसे व्यापक आर्थिक गतिविधियों से जोड़कर समझना अधिक महत्वपूर्ण है।
उद्योग जगत के लिए यह समय सजग होकर इन संकेतों का विश्लेषण करने का है, क्योंकि कम इनपुट लागत उत्पादन बढ़ाने का अवसर देती है, लेकिन मांग में कमी उत्पादन बढ़ाने की व्यवहार्यता को सीमित भी कर सकती है।
यदि मांग सुधरती है और वैश्विक परिस्थितियाँ स्थिर रहती हैं, तो WPI की यह नरमी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए स्थायी लाभ का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
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