एशिया के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंजों ने उन कंपनियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है जो अपने कारोबार का मुख्य उद्देश्य क्रिप्टोकरेंसी को जमा करना या उसे “डिजिटल एसेट ट्रेजरी” मॉडल के रूप में अपनाना चाहती हैं। नियामकों का कहना है कि ऐसी प्रवृत्ति से बाजार की पारदर्शिता और निवेशकों का भरोसा प्रभावित हो सकता है।
हांगकांग से शुरू हुई सख्ती, अब भारत और ऑस्ट्रेलिया भी सतर्क
हांगकांग एक्सचेंजेज एंड क्लियरिंग लिमिटेड (HKEX) ने हाल के महीनों में कम से कम पाँच कंपनियों के उन प्रस्तावों को रोक दिया है जिनका उद्देश्य पारंपरिक व्यवसाय छोड़कर क्रिप्टो निवेश-केंद्रित मॉडल अपनाना था। इन कंपनियों की योजना थी कि वे अपनी बैलेंस शीट में बड़ी मात्रा में बिटकॉइन और अन्य डिजिटल संपत्तियाँ जोड़ें और उन्हें “भविष्य के वैकल्पिक रिज़र्व” के रूप में इस्तेमाल करें।
HKEX ने स्पष्ट किया है कि सूचीबद्ध कंपनियों को वास्तविक और स्थायी व्यावसायिक गतिविधियाँ बनाए रखनी चाहिए, न कि ऐसी इकाई बननी चाहिए जो सिर्फ नकदी या डिजिटल संपत्तियों को जमा करके लाभ कमाने की कोशिश करे। एक्सचेंज के नियमों के अनुसार, यदि किसी कंपनी की परिसंपत्तियों का बड़ा हिस्सा नकद या क्रिप्टो में है, तो उसे “कैश कंपनी” माना जा सकता है, और ऐसे मामलों में ट्रेडिंग को निलंबित किया जा सकता है।
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भारत और ऑस्ट्रेलिया में भी इसी तरह का रुख देखने को मिल रहा है। भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) ने एक प्रस्ताव को मंजूरी देने से मना कर दिया क्योंकि संबंधित कंपनी अपनी पूंजी का बड़ा हिस्सा क्रिप्टो संपत्तियों में लगाना चाहती थी। ऑस्ट्रेलियन सिक्योरिटीज एक्सचेंज (ASX) ने कहा है कि यदि कोई कंपनी डिजिटल संपत्तियों में भारी निवेश करती है, तो उसे पारंपरिक सूचीबद्ध कंपनी के बजाय क्रिप्टो फंड या ईटीएफ (ETF) जैसी संरचना के तहत आना चाहिए।
जापान इस रुख में कुछ अलग दिखाई देता है। जापान एक्सचेंज ग्रुप (JPX) का कहना है कि यदि कोई कंपनी पारदर्शी ढंग से अपने निवेश का खुलासा करती है और जोखिमों का विवरण देती है, तो क्रिप्टो संपत्तियों को पूरी तरह अस्वीकार्य नहीं माना जाएगा। जापानी नियामकों का मानना है कि डिजिटल संपत्तियाँ अब वित्तीय परिदृश्य का हिस्सा बन चुकी हैं और यदि उनका प्रबंधन जिम्मेदारी से किया जाए तो वे वैध निवेश विकल्प हो सकती हैं।
निवेशकों के लिए संदेश - “सिर्फ क्रिप्टो जमा” अब कारोबार नहीं
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में यह कदम इस बात का संकेत है कि नियामक अब उन कारोबारी मॉडलों से बचना चाहते हैं जो केवल क्रिप्टो संपत्तियाँ जमा करने पर आधारित हैं। इससे उन कंपनियों की लिस्टिंग कठिन हो जाएगी जिनके पास कोई स्पष्ट उत्पाद, सेवा या संचालन गतिविधि नहीं है।
इस नीति से निवेशकों को भी संदेश गया है कि एक्सचेंज अब केवल “क्रिप्टो होर्डिंग” को कारोबार नहीं मान रहे। इससे उन निवेशकों पर असर पड़ेगा जो बिटकॉइन या अन्य टोकन को दीर्घकालिक भंडार के रूप में रखने वाली कंपनियों में निवेश करना चाहते थे।
विश्लेषकों का मानना है कि अब कंपनियों को अपने व्यावसायिक मॉडल में विविधता लानी होगी। केवल डिजिटल संपत्तियों पर निर्भर रहने के बजाय उन्हें उत्पाद, तकनीकी समाधान या सेवा-आधारित राजस्व मॉडल अपनाने होंगे ताकि वे लिस्टिंग की पात्रता बनाए रख सकें।
हांगकांग, भारत और ऑस्ट्रेलिया के कदम यह संकेत देते हैं कि इन देशों के नियामक डिजिटल संपत्तियों को सहायक परिसंपत्ति के रूप में स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन उन्हें व्यवसाय की मूल संरचना नहीं बनने देंगे। दूसरी ओर, जापान जैसे कुछ बाजारों में अपेक्षाकृत नरमी रहने की संभावना है, जिससे क्रिप्टो-समर्थक कंपनियाँ वहाँ की लिस्टिंग की ओर आकर्षित हो सकती हैं।
कुल मिलाकर, एशिया के प्रमुख पूंजी बाजार यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सूचीबद्ध कंपनियाँ सिर्फ क्रिप्टो जमा करने वाली संस्थाएँ न बनें, बल्कि उनका वास्तविक संचालन, राजस्व स्रोत और जोखिम-प्रबंधन ढाँचा भी स्पष्ट और स्थायी हो।
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