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क्रिप्टो टैक्स चूक से राजस्व चिंता, ऑफशोर प्लेटफॉर्म का झुकाव बढ़ा

एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि FY24–25 में भारतीय एक्सचेंज सिर्फ 8-10% घरेलू ट्रेडिंग वॉल्यूम पकड़ पाए। TDS नीतियों में सुधार नहीं हुआ तो अगले पाँच साल में ₹40,000 करोड़ तक का नुकसान संभव।

क्रिप्टो टैक्स चूक से राजस्व चिंता, ऑफशोर प्लेटफॉर्म का झुकाव बढ़ा
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भारत में क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग पर लगाए गए वर्तमान कर नियम एक बार फिर विवाद और बहस के केंद्र में हैं।

टैक्स इंडिया ऑनलाइन नॉलेज फाउंडेशन की नई रिपोर्ट ‘टैक्सैशन ऑफ डिजिटल ऐसेट इन इंडिया’ के अनुसार, मध्य-2022 के बाद से देश को स्रोत पर कर कटौती (TDS) से हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

वजह स्पष्ट है। भारतीय क्रिप्टो उपयोगकर्ता बड़े पैमाने पर घरेलू एक्सचेंज छोड़कर ऑफशोर प्लेटफॉर्म की ओर जा रहे हैं, जहाँ 1% TDS काटने का प्रावधान नहीं है।

वैश्विक स्पॉट क्रिप्टो ट्रेडिंग वॉल्यूम में तेज़ी

रिपोर्ट बताती है कि 2023 के बाद वैश्विक स्पॉट क्रिप्टो ट्रेडिंग वॉल्यूम में तेज़ी से वृद्धि हुई है, लेकिन इसी अवधि में भारतीय एक्सचेंज FY24–25 में देश की अनुमानित ट्रेडिंग गतिविधि का केवल 8–10 प्रतिशत ही कैप्चर कर सके। 

यानी भारत में हो रहे अधिकांश क्रिप्टो ट्रेड विदेशी प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट हो चुके हैं, जिससे सरकार का टैक्स संग्रह बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।

₹4,877 करोड़ का TDS क्षति

सबसे गंभीर चिंता इस तथ्य को लेकर है कि अक्टूबर 2024 से अक्टूबर 2025 के बीच लगभग ₹4,877 करोड़ मूल्य के TDS का भुगतान नहीं हुआ।

यह आंकड़ा दिखाता है कि वर्तमान टैक्स नीति न केवल अनुपालन को प्रोत्साहित करने में विफल रही है, बल्कि इसे दरकिनार करने के लिए उपयोगकर्ताओं को प्रेरित भी कर रही है।

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रिपोर्ट के अनुसार, ऑफशोर प्लेटफॉर्म न तो TDS काटते हैं और न ही भारतीय प्राधिकरणों के साथ उपयोगकर्ता-स्तरीय डेटा साझा करते हैं।

इससे पारदर्शिता में कमी आती है और कर निगरानी प्रणाली कमजोर होती है। इसका सीधा परिणाम है सरकार के लिए राजस्व का भारी रिसाव।

अगले पाँच साल में ₹40,000 करोड़ का संभावित नुकसान

रिपोर्ट चेतावनी देती है कि यदि टैक्स नीतियों में बदलाव नहीं किया गया, तो अगले पाँच वर्षों में अनसंग्रहित TDS लगभग ₹40,000 करोड़ तक पहुंच सकता है। 

यह न केवल सरकार के राजस्व लक्ष्य के लिए चुनौती है, बल्कि भारत की उभरती डिजिटल अर्थव्यवस्था की दिशा पर भी गंभीर असर डाल सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि 1% TDS दर अत्यधिक ऊँची है, और यह ट्रेडिंग गतिविधियों पर एक तरह का “फ्रिक्शन टैक्स” बन गई है, जिससे सक्रिय उपयोगकर्ताओं की संख्या कम हो गई है और ऑफशोर प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल बढ़ा है।

टैक्स सुधारों की तीन प्रमुख सिफारिशें

रिपोर्ट में तीन बड़े सुधार सुझाए गए हैं, जो अनुपालन बढ़ाने और घरेलू एक्सचेंजों को प्रतिस्पर्धी बनाने में उपयोगी हो सकते हैं।

  • TDS को घटाकर 0.01–0.1% करना: उच्च TDS दर के कारण उपयोगकर्ता ट्रेडिंग से बचते हैं या विदेशी विकल्प चुनते हैं। कम TDS से अनुपालन बढ़ सकता है और घरेलू प्लेटफॉर्म पर गतिविधि सुधर सकती है।

  • ऑफशोर एक्सचेंजों के लिए TDS जिम्मेदारी स्पष्ट करना: विदेशी प्लेटफॉर्म पर भारतीय उपयोगकर्ताओं की बड़ी उपस्थिति को देखते हुए, TDS संग्रह की जवाबदारी स्पष्ट न होने से राजस्व का बड़ा हिस्सा चूक रहा है।

  • 30% क्रिप्टो टैक्स को अन्य एसेट क्लास के अनुरूप तर्कसंगत बनाना: वर्तमान टैक्स दर पारंपरिक पूंजीगत लाभ कर ढांचे से अलग है। इसे तर्कसंगत बनाने से बाजार में स्थिरता और विश्वास बढ़ सकता है।

फाउंडेशन का कहना है कि ये सुधार अनुपालन को बढ़ावा दे सकते हैं, घरेलू एक्सचेंजों को पुनर्जीवित कर सकते हैं और दीर्घकालिक राजस्व संग्रह को सशक्त बना सकते हैं।

निष्कर्ष

भारत की मौजूदा क्रिप्टो टैक्स नीति ने अनुपालन को प्रोत्साहित करने के बजाय ट्रेडिंग को विदेशी प्लेटफॉर्म की ओर धकेल दिया है, जिससे सरकार को हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

रिपोर्ट साफ संकेत देती है कि यदि टैक्स दरों और नियमों में सुधार नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में यह हानि कई गुना बढ़ सकती है।

समय की मांग है व्यावहारिक और संतुलित टैक्स नीति, जो न केवल उपयोगकर्ताओं को देश के भीतर सुरक्षित और विनियमित ट्रेडिंग के लिए प्रेरित करे, बल्कि भारत की तेजी से बढ़ती डिजिटल वित्तीय अर्थव्यवस्था को भी समर्थन दे।

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