दिल्ली पुलिस की साइबर अपराध शाखा ने एक बड़ी कार्रवाई में भारत भर में फैले साइबर धोखाधड़ी सिंडिकेट्स का भंडाफोड़ किया है। यह नेटवर्क न केवल डिजिटल निवेश और डिजिटल अरेस्ट जैसे संगठित अपराधों में लिप्त था, बल्कि इसके तार दुबई तक जुड़े पाए गए हैं। पुलिस ने इस गिरोह से जुड़े चार आरोपियों को गिरफ्तार किया है और लगभग ₹5 करोड़ की क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन को ट्रेस किया है।
जांच अधिकारियों के अनुसार, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड में एक साथ कई ठिकानों पर छापेमारी की गई। इन कार्रवाइयों में पुलिस ने बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मोबाइल फोन, सिम कार्ड, लैपटॉप, डेबिट और क्रेडिट कार्ड, बैंक पासबुक, चेकबुक और फर्जी दस्तावेज़ बरामद किए। साथ ही, जांच में यह भी सामने आया कि गिरोह ने फर्जी कंपनियां, म्यूल अकाउंट्स और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स बनाए थे, जिनका उपयोग अवैध धन को सफेद दिखाने और विदेशों में भेजने के लिए किया जाता था।
दिल्ली पुलिस के डिप्टी कमिश्नर (क्राइम) आदित्य गौतम ने बताया,
यह कार्रवाई संगठित साइबर-सक्षम वित्तीय अपराधों के खिलाफ चल रही हमारी व्यापक मुहिम का हिस्सा है। ये अपराधी नकली पहचान, झूठे निवेश प्रस्ताव और धमकी भरे कॉल्स के जरिए आम नागरिकों को फंसाते थे। अब तक की जांच से स्पष्ट है कि भारत में बैठा यह गिरोह दुबई स्थित हैंडलर्स से निर्देश लेकर काम करता था।
निवेश घोटाले का मास्टरमाइंड
पहला आरोपी, अतुल शर्मा, हरियाणा निवासी है। वह दुबई स्थित मुख्य हैंडलर सुमित गर्ग के संपर्क में था और उसके निर्देशों पर निवेश घोटाले चलाता था। पुलिस ने गुरुग्राम में एक तकनीकी विश्लेषण के बाद छापा मारकर शर्मा को गिरफ्तार किया। उसके पास से कई मोबाइल फोन, लैपटॉप, बैंक कार्ड और फर्जी कंपनियों के दस्तावेज़ बरामद हुए।
पुलिस का कहना है कि अतुल शर्मा ने आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं, विशेषकर पेइंग गेस्ट आवासों में रहने वालों, को नौकरी और बीमा सहायता का लालच देकर उनके नाम पर फर्जी फर्मों के चालू खाते खुलवाए।
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बाद में उन्हीं खातों में धोखाधड़ी से प्राप्त धन को ट्रांसफर किया जाता था। इस राशि को बाद में क्रिप्टोकरेंसी में बदलकर विदेशी वॉलेट्स में भेजा जाता था।
डीसीपी गौतम ने कहा, “हमने लगभग ₹5 करोड़ की क्रिप्टो लेनदेन का ट्रेल ट्रेस किया है, जो गिरोह के तीन डिजिटल वॉलेट्स में पाया गया है। ये सभी वॉलेट्स दुबई में स्थित ऑपरेटरों द्वारा नियंत्रित किए जा रहे थे।”
डिजिटल गिरफ्तारी का खिलाड़ी
दूसरा आरोपी राहुल मांडा, हरियाणा का निवासी है, जिसे उत्तराखंड के रुड़की से गिरफ्तार किया गया। वह एक ऐसे रैकेट में शामिल था जो डिजिटल अरेस्ट तकनीक से लोगों को फंसाता था।
यह गिरोह खुद को पुलिस अधिकारी या TRAI के अधिकारी बताकर फोन कॉल्स और वीडियो चैट के ज़रिए पीड़ितों को डराता था, यह कहकर कि उनके नाम पर मनी लॉन्ड्रिंग या अवैध लेनदेन के मामले दर्ज हैं। इसके बाद उनसे ऑनलाइन भुगतान के नाम पर रकम वसूली जाती थी।
मांडा पर एक शिकायतकर्ता से ₹30 लाख की ठगी का आरोप है। उसके पास से महंगे गैजेट्स, कई फर्जी आईडी और बैंक दस्तावेज़ बरामद हुए हैं। जांच में यह भी सामने आया है कि मांडा पहले भी वित्तीय धोखाधड़ी के मामलों में पाँच साल की सजा काट चुका है।
पुराने मामलों का पेशेवर अपराधी
तीसरा आरोपी, वरुण अंचल (35), पंजाब निवासी है। उसे एक मामले में गिरफ्तार किया गया जिसमें मुंबई क्राइम ब्रांच के नाम पर एक शिकायतकर्ता से ₹26.80 लाख की ठगी की गई थी। पुलिस के अनुसार, अंचल का मुख्य काम म्यूल अकाउंट्स से धन निकालकर नकद में बदलना और उसे विदेशी हैंडलर्स तक पहुंचाना था।
डीसीपी ने बताया,
वरुण अंचल पहले भी पंजाब और हरियाणा में ऐसे ही मामलों में पकड़ा जा चुका है। वह गिरोह के लिए ‘कैश मूवर’ की भूमिका निभाता था, यानी धोखाधड़ी से आए पैसे को फिजिकली सर्कुलेट करना और नए खातों में ट्रांसफर करना।
चौथा आरोपी, अमित कुमार सिंह (31), बिहार का निवासी और पूर्व बैंक कर्मचारी है। उसने कमीशन के बदले साइबर अपराधियों को बैंक खाते उपलब्ध कराए। जांच में पाया गया कि वह बार-बार नौकरी बदलकर अपनी संलिप्तता छिपाने की कोशिश करता था। उसके मोबाइल से कई चैट रिकॉर्ड्स और बैंक से संबंधित डेटा मिले हैं जो उसकी भूमिका को पुख्ता करते हैं।
अमित कुमार का नाम ₹39.5 लाख के निवेश घोटाले से भी जुड़ा है, जिसमें निवेशकों को झूठे रिटर्न्स का लालच दिया गया था।
आगे की जांच
पुलिस सूत्रों के अनुसार, यह नेटवर्क भारत के कई राज्यों में फैला हुआ है और इसके विदेशी कनेक्शन दुबई, सिंगापुर और हांगकांग तक पाए जा रहे हैं। फॉरेंसिक और वित्तीय ट्रैकिंग यूनिट्स फिलहाल डिजिटल वॉलेट्स और बैंक खातों के बीच हुए लेनदेन का विश्लेषण कर रही हैं।
डीसीपी गौतम ने कहा, “हम इस नेटवर्क की पूरी चेन को ट्रैक कर रहे हैं, जो देश में फर्जी फर्मों से लेकर विदेशी क्रिप्टो एक्सचेंजों तक फैली है। जल्द ही और गिरफ्तारियां संभव हैं।”
साइबर विशेषज्ञों के अनुसार, इस कार्रवाई से यह स्पष्ट होता है कि भारत में साइबर फ्रॉड अब एक संगठित उद्योग का रूप ले चुका है, जो सीमाओं के पार काम कर रहा है। पुलिस और वित्तीय संस्थानों के बीच समन्वय और तकनीकी निगरानी को और सशक्त करने की जरूरत है ताकि ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके।
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