प्रवर्तन निदेशालय (ED) की एक हालिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत में चल रहे क्रिप्टोकरेंसी और लोन ऐप धोखाधड़ी मामलों के पीछे ज्यादातर नेटवर्क चीन से संचालित हैं। रिपोर्ट के अनुसार इन नेटवर्क्स ने पिछले कुछ वर्षों में हजारों भारतीय उपयोगकर्ताओं को निशाना बनाया और अनुमानित ₹28,000 करोड़ से अधिक की राशि भारत से बाहर भेजी।
रिपोर्ट में क्या कहा गया
ED की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन से जुड़े साइबर गिरोहों ने भारतीय नागरिकों के नाम पर सैकड़ों फर्जी कंपनियाँ और बैंक खाते खोले। इन कंपनियों के ज़रिए “क्विक लोन ऐप्स”, “क्रिप्टो ट्रेडिंग स्कीम्स” और “ऑनलाइन इन्वेस्टमेंट प्लेटफॉर्म्स” चलाए गए, जिनका मकसद केवल निवेशकों को लुभाकर उनकी निजी जानकारी और धन हड़पना था।
इन ऐप्स में से अधिकांश प्ले स्टोर या थर्ड-पार्टी वेबसाइटों पर उपलब्ध थे, जिनमें 5 मिनट में लोन या 10% रोज़ाना रिटर्न जैसे आकर्षक दावे किए जाते थे। एक बार उपयोगकर्ता साइन अप कर लेता, तो उससे KYC, बैंक खाता और क्रिप्टो वॉलेट की जानकारी लेकर फिशिंग या ठगी शुरू हो जाती थी।
कैसे काम करता है यह नेटवर्क
जांच में पता चला है कि चीन से संचालित कंपनियाँ भारत में तकनीकी सहयोगियों और कॉल सेंटर ऑपरेटरों को हायर करती थीं। ये लोग स्थानीय स्तर पर एप्लिकेशन बनवाते, सर्वर किराए पर लेते और सोशल मीडिया के ज़रिए प्रचार करते थे। ठगी से प्राप्त धन को USDT, Bitcoin और Tether जैसे टोकन्स में परिवर्तित किया जाता था और फिर क्रिप्टो मिक्सिंग सेवाओं के माध्यम से ट्रैकिंग से बचाने के लिए विदेश भेज दिया जाता था।
ED के अधिकारियों ने बताया कि कई मामलों में इन नेटवर्क्स ने भारतीय “फिनटेक शेल कंपनियों” के जरिए निवेशकों का पैसा सीधे क्रिप्टो एक्सचेंजों पर ट्रांसफर किया और फिर उसे सिंगापुर, हांगकांग और दुबई स्थित वॉलेट्स में भेज दिया।
कार्रवाई और गिरफ्तारियाँ
ED और साइबर पुलिस ने इस संबंध में पिछले दो वर्षों में 200 से अधिक छापेमारी की हैं और लगभग ₹1,200 करोड़ की संपत्ति फ्रीज़ की गई है। अब तक लगभग 30 चीनी नागरिक और 70 भारतीय सहयोगी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। कई अंतरराष्ट्रीय मनी लॉन्ड्रिंग चैनलों को ट्रैक किया गया है जिनका इस्तेमाल डिजिटल करेंसी ट्रांज़ैक्शन को वैध दिखाने के लिए किया जा रहा था।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “इन मामलों में ज्यादातर तकनीकी बैकएंड चीन से संचालित हो रहा था। भारतीय फ्रंट कंपनियों का इस्तेमाल केवल नाममात्र के लिए किया गया था ताकि यह धोखाधड़ी ‘लोकल’ दिखाई दे।”
राष्ट्रीय सुरक्षा और नीति पर असर
रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि यह सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है। इन ऐप्स के ज़रिए संवेदनशील वित्तीय डेटा और पहचान संबंधी जानकारी विदेश भेजी जा रही थी, जो संभावित रूप से खुफिया उपयोग में लाई जा सकती है।
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कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना भारत के क्रिप्टो रेगुलेशन की कमी को उजागर करती है। फिलहाल RBI और SEBI के बीच क्रिप्टो निगरानी को लेकर स्पष्ट नीति नहीं है, जिससे अपराधियों को फायदा मिल रहा है।
उपभोक्ताओं के लिए चेतावनी
सरकारी एजेंसियों ने आम जनता को आगाह किया है कि वे किसी भी अज्ञात ऐप से लोन लेने या क्रिप्टो में निवेश करने से पहले उसकी वैधता और लाइसेंस की जाँच करें। RBI की अधिकृत सूची में शामिल नहीं होने वाले किसी भी फिनटेक ऐप या एक्सचेंज से दूरी बनाए रखने की सलाह दी गई है।
हालिया घटनाक्रम और न्यायिक संकेत
मद्रास हाई कोर्ट के हालिया फैसले ने क्रिप्टोकरेंसी को भारतीय कानून के तहत “संपत्ति” के रूप में मान्यता दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला उपयोगकर्ताओं को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है, लेकिन साथ ही सरकार और नियामकों के लिए जिम्मेदारी भी बढ़ाता है कि वे इस क्षेत्र में ठोस नियम बनाएं ताकि ऐसी धोखाधड़ी दोबारा न हो।
निष्कर्ष
ED की रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत में क्रिप्टो और फिनटेक ठगी अब सीमाओं से परे जाकर अंतरराष्ट्रीय अपराध नेटवर्क का रूप ले चुकी है। यदि केंद्र सरकार, RBI और SEBI मिलकर एक सख्त और समन्वित नियामकीय ढांचा तैयार करें, तो न केवल निवेशकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है बल्कि भारत के डिजिटल फाइनेंस इकोसिस्टम की विश्वसनीयता भी बचाई जा सकती है।
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