भारत का क्रिप्टो एसेट उद्योग हाल के वर्षों में एक अनूठे परिवर्तन से गुजरा है। एक समय था जब यह क्षेत्र कानूनी अनिश्चितता और लगभग डि-फैक्टो बैन की स्थिति में था। किंतु अब सरकारी नियामकीय ढांचे और उद्योग जगत की आत्म-नियमन पहलों के कारण यह क्षेत्र एक टिकाऊ और अधिक सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ रहा है। इस बदलाव ने न केवल पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत किया है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि नवाचार और निवेश का मार्ग अवरुद्ध न हो।

संप्रभु नियमावली: पारदर्शिता और जवाबदेही की नींव

सरकार ने 2022 से “वर्चुअल डिजिटल एसेट्स” पर लाभ पर 30 प्रतिशत की सीधी कर दर लागू की। इसके अतिरिक्त, क्रिप्टो लेन-देन पर खरीदारों के लिए 1 प्रतिशत टीडीएस काटना अनिवार्य किया गया। यह कर व्यवस्था सट्टेबाजी पर अंकुश लगाने में सफल रही है, वहीं गंभीर और दीर्घकालिक निवेशकों के लिए यह कोई बड़ी बाधा साबित नहीं हुई।

इसके अलावा, 1 अप्रैल 2021 से कंपनियों को अपने वित्तीय वक्तव्यों में क्रिप्टो होल्डिंग और उससे जुड़े लाभ-हानि का खुलासा करना अनिवार्य किया गया। इसके बाद, 2022 में CERT-In ने निर्देश जारी कर क्रिप्टो एक्सचेंजों और वॉलेट प्रदाताओं को पांच वर्षों तक ग्राहक पहचान (KYC) और लेन-देन के रिकॉर्ड सुरक्षित रखने के साथ कड़े साइबर सुरक्षा और घटना-रिपोर्टिंग मानकों का पालन करने के लिए बाध्य किया। इन कदमों ने क्रिप्टो की अंतर्निहित छद्म-गोपनीयता को भेदते हुए पारदर्शिता और नियामक निगरानी को संभव बनाया।

उद्योग की आत्म-नियमन की दूसरी पंक्ति

सरकारी नियमन के समानांतर, भारत की प्रमुख उद्योग संस्था भारत वेब3 एसोसिएशन (BWA) ने भी मार्गदर्शक सिद्धांतों की घोषणा की है। यद्यपि ये कानूनी बाध्यता नहीं रखते, परंतु इनका पालन करने वाले सदस्य एक्सचेंज और सेवा प्रदाता एक साझा मानक पर काम करते हैं।

उपभोक्ता संरक्षण के तहत शिकायत निवारण तंत्र और प्रभावी ग्रीवांस हैंडलिंग प्रणाली को प्राथमिकता दी गई है। वहीं साइबर सुरक्षा दिशानिर्देश — जो वज़ीरएक्स हैक जैसी घटनाओं के बाद सामने आए — निवेशकों की संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए साइबर हाइजीन, डेटा सुरक्षा और बाहरी ऑडिट जैसे प्रावधानों पर जोर देते हैं।

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निष्पक्ष ट्रेडिंग दिशानिर्देश भी महत्वपूर्ण हैं। इनमें उपयोगकर्ताओं के खिलाफ ट्रेडिंग पर प्रतिबंध, वॉश ट्रेडिंग, स्पूफिंग, फ्रंट-रनिंग और पंप-एंड-डंप जैसी गतिविधियों पर नियंत्रण के उपाय शामिल हैं। इसके अलावा, कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट के प्रकटीकरण, निगरानी तंत्र और समय-समय पर स्व-मूल्यांकन या ऑडिट की व्यवस्था की गई है, जिससे बाजार हेरफेर की संभावनाओं को काफी हद तक कम किया जा सके।

निष्कर्ष

भारत का क्रिप्टो उद्योग अब “जुगाड़ से चलने वाले” दौर से निकलकर एक संरचित और जवाबदेह प्रणाली की ओर बढ़ रहा है। सरकारी नियमावली ने पारदर्शिता, कर अनुपालन और सुरक्षा का ढांचा दिया है, तो उद्योग की आत्म-नियमन पहलों ने उपयोगकर्ता संरक्षण और बाजार की अखंडता को मजबूत किया है।

इस दोहरी सुरक्षा पंक्ति के कारण न केवल मनी लॉन्ड्रिंग, आतंक वित्तपोषण और धोखाधड़ी जैसी चुनौतियों पर अंकुश लगा है, बल्कि यह सुनिश्चित भी हुआ है कि नवाचार और निवेश की संभावनाएं जीवित रहें। नतीजा यह है कि भारत का क्रिप्टो एसेट सेक्टर अब एक टिकाऊ, जिम्मेदार और वैश्विक मानकों से मेल खाता हुआ स्वरूप ले रहा है।

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