वैश्विक क्रिप्टोकरेंसी बाजार कई महीनों की गिरावट और अनिश्चितता के बाद अब धीरे-धीरे स्थिर होता नज़र आ रहा है।
बिनेंस (Binance) रिसर्च की सितंबर 2025 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में पाई कॉइन सहित कई अल्टकॉइन्स की कीमतें उस वैश्विक रिकवरी के साथ तालमेल बिठा रही हैं, जिसे विकेंद्रीकृत वित्त (DeFi), ब्लॉकचेन प्रोजेक्ट्स और संस्थागत निवेश ने गति दी है।
पिछले कुछ महीनों में क्रिप्टो बाजार में तीव्र उतार-चढ़ाव देखने को मिला था। हालांकि, अब एक्सचेंजों पर सामूहिक साइफर मजबूत हो रहा है और ट्रेडिंग गतिविधि में धीरे-धीरे सुधार दिख रहा है।
भारत, जहाँ क्रिप्टो को लेकर सतर्कता का माहौल रहा है, वहाँ भी बाजार भावनाओं में नई स्थिरता ने प्रवेश किया है।
बिटकॉइन की मंदी और निवेशकों का फोकस अल्टकॉइन्स पर शिफ्ट
क्रिप्टो बाजार की दिशा लंबे समय तक बिटकॉइन तय करता रहा है, लेकिन अगस्त 2025 में 1,24,400 डॉलर के शिखर के बाद इसमें गिरावट दर्ज हुई, जिससे कुल बाजार मूल्य में 1.7% की कमी आई। इस सुधार ने निवेशकों को पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए प्रेरित किया।
बिटकॉइन अभी भी बाज़ार में 57% हिस्सेदारी के साथ प्रमुख बना हुआ है, लेकिन इथेरियम की हिस्सेदारी 14% से अधिक होकर इस वर्ष के सर्वोच्च स्तर पर पहुँची।
खास बात यह है कि कॉर्पोरेट ट्रेजरी लगातार इथेरियम जमा कर रही हैं - 44.4 लाख ETH तक का संचय यह दिखाता है कि संस्थान ब्लॉकचेन-संचालित संपत्तियों को दीर्घकालीन वित्तीय रणनीति का अहम हिस्सा मान रहे हैं।
एशिया बन रहा ब्लॉकचेन नवाचार का केंद्र, भारत भी शामिल
एशिया डिजिटल और पारंपरिक वित्त के बीच पुल बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। बिनैंस की रिपोर्ट ने चेनलिंक और जापान के SBI ग्रुप के बीच रियल-वर्ल्ड एसेट्स (RWA) के टोकनाइज़ेशन की साझेदारी को एक महत्वपूर्ण उदाहरण बताया है। यह कदम रियल एस्टेट, बॉन्ड और अन्य संपत्तियों को सुरक्षित रूप से डिजिटल रूप में बदलने का रास्ता खोलता है।
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भारत में फिनटेक स्टार्टअप्स ब्लॉकचेन-बेस्ड रेमिटेंस और सप्लाई चेन समाधानों का परीक्षण कर रहे हैं। बड़ी कंपनियाँ टोकनाइज़ेशन, सुरक्षा और भुगतान जैसी तकनीकों को अपनाने पर विचार कर रही हैं।
भारत की मजबूत डिजिटल पेमेंट्स इकोसिस्टम इन प्रयोगों को तेज़ी से अपनाने में मदद कर सकती है। धीरे-धीरे ही सही, लेकिन भारत एशिया की ब्लॉकचेन क्रांति का हिस्सा बन रहा है।
DeFi और स्टेबलकॉइन्स बने रिकवरी के स्तंभ
वैश्विक DeFi रिकवरी में स्टेबलकॉइन्स की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। Ethena का USDe स्टेबलकॉइन दो वर्षों में 10 अरब डॉलर तक पहुँच गया और कुल वैश्विक स्टेबलकॉइन बाजार में 4% से अधिक हिस्सेदारी हासिल की।
स्टेबलकॉइन्स सीमा-पार भुगतान, रेमिटेंस और ट्रेडिंग स्थिरता के लिए भारत सहित एशिया में तेजी से अपनाए जा रहे हैं। DeFi लेंडिंग-बॉरोइंग सिस्टम में अगस्त 2025 में कुल वैल्यू 9.26% बढ़ी, जिसमें इथेरियम 60% से अधिक हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर रहा। सोलाना भी इस रिकवरी में दूसरा मजबूत नेटवर्क बनकर उभर रहा है।
नियामकीय स्पष्टता, SEC की नई गाइडलाइन और वैश्विक स्तर पर DeFi स्टेबलकॉइन्स के बढ़ते प्रयोग ने इस वृद्धि को और मजबूत किया है।
संस्थागत मांग से अल्टकॉइन्स को नई गति
संस्थागत निवेश की दिलचस्पी ने अल्टकॉइन्स को नई ऊँचाई पर पहुँचा दिया है। सोलाना की कीमत 15.5%, कार्डानो 8.6% और BNB 7.8% बढ़े हैं।
इथेरियम ने ETF इनफ्लो और कॉर्पोरेट निवेश की वजह से 18.6% की तेज़ बढ़त दर्ज की। पिछले छह हफ्तों में बिटमाइन जैसे बड़े संस्थागत निवेशकों ने 8 अरब डॉलर का इथेरियम खरीदा—यह क्रिप्टो बाजार के प्रति बढ़ते विश्वास का संकेत है।
भारत में भी प्रोफेशनल ट्रेडर्स में यह ट्रेंड दिखाई दे रहा है। अब नए निवेशक केवल सट्टा लगाने के बजाय वास्तविक उपयोगिता और तकनीकी क्षमता वाले प्रोजेक्ट्स पर ध्यान दे रहे हैं। पाई कॉइन जैसे टोकन की स्थिर कीमत भारतीय निवेशकों की परिपक्व सोच और दीर्घकालीन दृष्टि को दर्शाती है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर वैश्विक क्रिप्टो बाज़ार 2025 में एक नए संतुलन की ओर बढ़ रहा है। टोकन बायबैक, संस्थागत निवेश, DeFi विस्तार और एशिया का नेतृत्व बाजार को परिपक्वता की नई दिशा दे रहा है।
भारत भी इस बदलाव का सक्रिय हिस्सा बनता जा रहा है; चाहे वह ब्लॉकचेन प्रयोग हों, फिनटेक नवाचार, या दीर्घकालीन निवेश रणनीतियाँ।
भारत जैसे विशाल डिजिटल-फर्स्ट देश के लिए यह समय अवसरों का नया द्वार खोल रहा है। आने वाले वर्षों में डिजिटल संपत्तियाँ और पारंपरिक वित्त साथ-साथ विकसित होंगे, और भारत का क्रिप्टो परिदृश्य वैश्विक प्रवाह के अनुरूप और अधिक मज़बूत होता जाएगा।
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