दुनियाभर में क्रिप्टो मार्केट पहले से कहीं ज़्यादा सक्रिय नज़र आ रही है। इस साल बिटकॉइन $120,000 के पार चला गया और कुल मार्केट कैप $4 ट्रिलियन से ऊपर पहुंच गया। लेकिन सिर्फ आंकड़े नहीं बदले हैं; अब सरकारें भी डिजिटल एसेट्स को लेकर सकारात्मक रुख अपना रही हैं।

अमेरिका में, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जुलाई में जीनियस एक्ट (GENIUS Act) और अन्य क्रिप्टो-फ्रेंडली कानूनों पर हस्ताक्षर किए। इन उपायों से न केवल स्टेबलकॉइन के लिए एक रेगुलेटरी फ्रेमवर्क बना, बल्कि स्ट्रेटेजिक बिटकॉइन रिज़र्व (Strategic Bitcoin Reserve) जैसी नई अवधारणा भी सामने आई। ट्रंप ने यहां तक कहा कि अमेरिका को “दुनिया की क्रिप्टो राजधानी” बनना चाहिए।

ऐसे उच्चस्तरीय राजनीतिक समर्थन से दुनिया भर में क्रिप्टो को लेकर सोच सतर्कता से भरोसे की ओर बढ़ रही है।

भारत में उलटी तस्वीर: टैक्स ज्यादा, उम्मीद कम

भारत में हालात कुछ अलग हैं। भारत फिलहाल क्रिप्टो ट्रेडिंग से होने वाले मुनाफे पर सीधा 30% टैक्स वसूलता है, साथ ही ज्यादातर लेन-देन पर 1% TDS भी लगता है। कुछ प्लेटफॉर्म जैसे बायबिट ट्रेड (Bybit  trade) विदड्रॉल पर 18% GST भी जोड़ रहे हैं, जिससे कुल टैक्स और बढ़ जाता है।

ये टैक्स नियम 2022 में लागू किए गए थे, जिनकी वजह से भारतीय एक्सचेंजों से $42 बिलियन की ट्रेडिंग वॉल्यूम बाहर चली गई है। पिछले दो वर्षों में सरकार ने करीब ₹700 करोड़ क्रिप्टो टैक्स के रूप में जमा किए हैं, लेकिन इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर टैक्स सिस्टम थोड़ा संतुलित होता, तो यह आंकड़ा और बड़ा हो सकता था।

ईकोनामिक टाइम्स (Economic Times) की रिपोर्ट के मुताबिक, इनकम टैक्स विभाग AI टूल्स की मदद से क्रिप्टो ट्रेडर्स पर नजर रख रहा है और पिछले वित्तीय वर्ष में ही ₹437 करोड़ टैक्स वसूले गए हैं।

इनोवेशन और स्टार्टअप्स पर भी असर

इस टैक्स स्ट्रक्चर का असर सिर्फ ट्रेडर्स पर नहीं, बल्कि इनोवेशन और स्टार्टअप्स पर भी हो रहा है। कई वेब 3 (Web3) स्टार्टअप्स  तो भारत छोड़ रहे हैं।

पूर्व सांसद रितेश पांडे ने संसद में कहा कि NFTs और क्रिप्टो ट्रेड्स पर 1% TDS रचनात्मक स्वतंत्रता को खत्म कर रहा है और युवाओं का उत्साह घटा रहा है। अगर टैक्स नीतियों पर पुनर्विचार नहीं किया गया, तो भारत Web3 रेवोल्यूशन में पिछड़ सकता है।

हाल ही में बिनेंस (Binance) के CEO रिचर्ड तेंग ने भी कहा

“भारत का क्रिप्टो टैक्स सिस्टम बहुत आक्रामक है, जिससे टैलेंट बाहर जा रहा है।

क्या अगला बजट राहत लेकर आएगा?

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार आगामी बजट में क्रिप्टो टैक्स को कम करेगी?

पूरी टैक्स नीति को बदलना शायद मुश्किल हो, क्योंकि सरकार क्रिप्टो को एक सट्टा संपत्ति और टैक्स का जरिया मानती है। लेकिन टैक्स रेट को 30% से घटाकर 20% करना और TDS नियमों में थोड़ी ढील देना संभव है, अगर सरकार इंडस्ट्री की बात सुने।

नीति विशेषज्ञों के बीच यह चर्चा ज़रूर है कि कुछ स्तर पर ढील दी जा सकती है — यह सोचकर नहीं कि क्रिप्टो अब पूरी तरह सुरक्षित है, बल्कि इसलिए क्योंकि अब इसे अनदेखा करना मुश्किल है।

पाकिस्तान ने हाल ही में अपना क्रिप्टो काउंसिल बनाया है और कुछ देशों ने इसकी सराहना भी की है। ऐसे में भारत पर भी दबाव है कि वह डिजिटल एसेट्स पर अपनी नीति स्पष्ट करे। शायद सरकार सीधे तौर पर नीति नहीं बदले, लेकिन टैक्स में थोड़ी राहत देकर संकेत दे सकती है कि वह इस इंडस्ट्री की संभावना को गंभीरता से देख रही है।

ऐसा बदलाव घरेलू एक्सचेंजों में तरलता बढ़ा सकता है, स्टार्टअप्स को आकर्षित कर सकता है और एक सकारात्मक संदेश दे सकता है कि भारत क्रिप्टो इनोवेशन के लिए तैयार है।

फैसला लेने का समय

भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। अमेरिका, यूएई, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देश क्रिप्टो-फ्रेंडली नियम बना रहे हैं। अगर भारत अभी भी सख्ती से ही चलता रहा, तो वह पीछे रह सकता है।

एक संतुलित टैक्स नीति न सिर्फ ट्रेडिंग वॉल्यूम बढ़ाएगी, बल्कि इससे भारत एक ब्लॉकचेन, टोकनाइज़्ड एसेट्स (tokenized assets) और डिजिटल फाइनेंस का ग्लोबल हब भी बना सकता  है।

आखिरकार, क्रिप्टो टैक्स में कटौती होगी या नहीं, यह सरकार की मंशा, राजस्व प्राथमिकताओं और इंडस्ट्री की लॉबिंग पर निर्भर करेगा। फिलहाल, ट्रेडर्स और स्टार्टअप्स को सख्त टैक्स माहौल में काम करना होगा, लेकिन उन्हें यह उम्मीद जरूर रखनी चाहिए कि दुनिया बदल रही है, और भारत भी बदलाव के रास्ते पर जल्द आ सकता है।

अब नजरें वित्त मंत्रालय पर टिकी हैं — क्या भारत अगला कदम उठाएगा?