मुख्य बिंदु

  • भारत जल्द ही रिज़र्व बैंक द्वारा गारंटीकृत डिजिटल करेंसी पेश करेगा, जिसका उद्देश्य तेज़, पारदर्शी और सुरक्षित लेन-देन सुनिश्चित करना है।

  • सरकार ने निजी क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध नहीं लगाया है, परंतु उन्हें भारी टैक्स लगाकर उपयोग को हतोत्साहित किया जा रहा है।

  • विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम भारत की “टैक्स करो और सहो” नीति से “कड़े नियमन और जवाबदेही” की ओर बदलाव का संकेत है।

  • आरबीआई की डिजिटल मुद्रा से नवाचार की गति प्रभावित हो सकती है, पर यह डिजिटल भुगतान में भरोसे को नई ऊँचाइयों तक ले जाएगी।

भारत सरकार अब डिजिटल अर्थव्यवस्था में एक नया अध्याय लिखने जा रही है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पियूष गोयल ने सोमवार को दोहा में आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम में घोषणा की कि भारत जल्द ही भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा समर्थित डिजिटल करेंसी जारी करेगा।

गोयल ने कहा कि यह “आरबीआई-गारंटीड डिजिटल करेंसी”  न केवल भुगतान प्रणाली को सरल बनाएगी, बल्कि कागज़ की खपत को घटाकर पर्यावरणीय स्थिरता में भी योगदान देगी। इसके साथ ही यह करेंसी पारंपरिक बैंकिंग प्रणाली की तुलना में तेज़, पारदर्शी और ट्रेस करने योग्य लेन-देन को संभव बनाएगी।

गोयल ने स्पष्ट किया कि भारत ने अभी तक बिना किसी संपत्ति या सरकारी समर्थन वाले क्रिप्टो पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया है, लेकिन ऐसे टोकनों पर भारी कर लगाया जा रहा है, ताकि निवेशक और आम नागरिक इनके जोखिमों से बचें।

उन्होंने कहा,

हम नहीं चाहते कि कोई व्यक्ति ऐसी मुद्रा में फँस जाए, जिसके पीछे न कोई संपत्ति हो, न कोई जवाबदेह संस्था।

यह घोषणा उस समय आई है जब Chainalysis की 2025 ग्लोबल एडॉप्शन इंडेक्स के अनुसार, भारत, पाकिस्तान और वियतनाम वैश्विक क्रिप्टो गतिविधियों में अग्रणी हैं। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में क्रिप्टो लेन-देन का मूल्य पिछले वर्ष के 1.4 ट्रिलियन डॉलर से बढ़कर 2.36 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गया है।

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इंडिया ब्लॉकचेन एलायंस के संस्थापक एवं सीईओ राज कपूर ने कहा कि गोयल की घोषणा यह स्पष्ट करती है कि सरकार अपनी वित्तीय प्रौद्योगिकी रणनीति (FinTech strategy)  में केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) को केंद्र में रख रही है।

उन्होंने कहा,

आरबीआई की गारंटी’ केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, यह सरकार की मंशा दर्शाती है कि राज्य द्वारा जारी मुद्रा को निजी, अस्थिर और ‘अनबैक्ड’ टोकनों से अलग पहचाना जाएगा।

कपूर ने इसे भारत के रुख में “टैक्स और टॉलरेंस से टियरड कंप्लायंस रेजीम” की दिशा में बदलाव बताया, जो केवल नियमित और संपत्ति-आधारित टोकनों को बढ़ावा देगा।

भारतीय रिज़र्व बैंक पहले ही डिजिटल रुपया का पायलट प्रोजेक्ट खुदरा और थोक दोनों क्षेत्रों में चला चुका है। इससे भारत को CBDC कार्यान्वयन में शुरुआती बढ़त मिली है।

हालाँकि कई विश्लेषकों का कहना है कि केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा मूल क्रिप्टो अवधारणा; विकेंद्रीकरण और स्वतंत्रता—से अलग दिशा में जाती है, क्योंकि इसमें नियंत्रण फिर से राज्य के हाथों में लौट आता है।

निष्कर्ष

भारत का आगामी आरबीआई-समर्थित डिजिटल रुपया निस्संदेह देश की वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता, सुरक्षा और विश्वास का नया युग आरंभ करेगा। परंतु इस यात्रा में सबसे बड़ी चुनौती होगी; नवाचार और नियंत्रण के बीच संतुलन साधना।

जहाँ एक ओर यह कदम नागरिकों को सुरक्षित डिजिटल लेन-देन का विकल्प देगा, वहीं दूसरी ओर यह सुनिश्चित करना होगा कि निजी ब्लॉकचेन नवाचार और उद्यमिता इस नई व्यवस्था में दम न तोड़े। 


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