भारत में क्रिप्टोकरेंसी को लेकर तस्वीर तेजी से बदल रही है। कर सुधारों से लेकर नियामकीय ढाँचे तक, हालिया घटनाक्रम यह संकेत दे रहे हैं कि सरकार अब सतर्क प्रतीक्षा की नीति छोड़कर ठोस और सोच-समझकर किए गए हस्तक्षेपों की ओर बढ़ रही है।

2022 में लागू सख्त कर व्यवस्था—लाभ पर 30 प्रतिशत कर और प्रत्येक लेन-देन पर 1 प्रतिशत टीडीएस—ने खुदरा निवेशकों और घरेलू एक्सचेंजों को गहरा झटका दिया था। कई ने कारोबार सीमित कर लिया या विदेश का रुख किया। अब संकेत मिल रहे हैं कि सरकार इस ढाँचे को संतुलित करने के मूड में है।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने हाल ही में उद्योग जगत के हितधारकों से संवाद शुरू किया है। फोकस इस बात पर है कि क्या मौजूदा व्यवस्था निवेश और कारोबार को दबा रही है, और क्या सुधार से राजस्व संरक्षण और बाज़ार की सेहत दोनों सुनिश्चित किए जा सकते हैं।

अगस्त के मध्य में CBDT ने एक्सचेंजों और सेवा प्रदाताओं को विस्तृत प्रश्नावली भेजी। इसमें पूछा गया कि 1% टीडीएस क्या अत्यधिक है, और क्या निवेशकों को क्रिप्टो में हुए घाटे की भरपाई लाभ से करने की अनुमति दी जानी चाहिए। बोर्ड 30% फ्लैट टैक्स की समीक्षा भी कर रहा है और यह विचार कर रहा है कि भारत को एक अलग वर्चुअल डिजिटल एसेट (VDA) क़ानून या मजबूत नियामक ढाँचे की ज़रूरत है या नहीं।

संसद में बढ़ती प्राथमिकता

इसी बीच, संसदीय वित्त पैनल ने क्रिप्टोकरेंसी को अपने मौजूदा सत्र का प्रमुख एजेंडा बना लिया है। विस्तृत रोडमैप सामने नहीं आया है, लेकिन संकेत साफ हैं—सांसद अब इसे हाशिये पर रखने के बजाय कर नीति, संभावित नियम और व्यापक आर्थिक असर के दृष्टिकोण से गंभीरता से परखना चाहते हैं।

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प्रतिबंध नहीं, नियमन की सिफ़ारिश

एक और अहम संकेत गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट से मिला है। साइबर अपराध पर 254वीं रिपोर्ट में समिति ने क्रिप्टो पर पूर्ण प्रतिबंध के बजाय नियमन का समर्थन किया है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि क्रिप्टो को FEMA (विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम) के तहत “डिजिटल संपत्ति” की श्रेणी में रखा जाए, जिससे उस पर AML (धन शोधन निरोधक) और KYC (अपने ग्राहक को जानें) जैसे कड़े मानकों के तहत निगरानी संभव हो सके।

आगे की राह

कुछ ही हफ़्तों में घटनाओं की श्रृंखला ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत का रुख बदल रहा है:

  • कर अधिकारी अब केवल दंडात्मक उपायों पर नहीं, बल्कि व्यवहार्य संतुलन पर विचार कर रहे हैं।

  • संसदीय पैनल इस विषय को नीति निर्धारण की पहली कतार में ला रहे हैं।

  • स्थायी समिति स्पष्ट कर रही है कि नियमन ही सही रास्ता है, न कि प्रतिबंध।

इन पहलों से संकेत मिलता है कि भारत जल्द ही एक ऐसे स्थायी क्रिप्टो पारिस्थितिकी तंत्र की नींव डाल सकता है, जो निवेशकों को सुरक्षा देगा, पारदर्शिता बढ़ाएगा, अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाएगा और वैश्विक रुझानों के साथ तालमेल बनाए रखेगा।