विश्व स्तर पर क्रिप्टोकरेंसी को लेकर उत्साह बढ़ रहा है और अमेरिका जैसे देशों में क्रिप्टो ETF (Exchange-Traded Fund) ने संस्थागत निवेशकों के बीच नया विश्वास पैदा किया है। भारत, जो Chainalysis की रिपोर्ट में लगातार क्रिप्टो अपनाने में शीर्ष पर बताया गया है, अब एक निर्णायक प्रश्न के सामने खड़ा है: क्या ईटीएफ भारत में वास्तविक तौर पर क्रिप्टो अपनाने को गति देंगे या यह आंकलन लगाना अभी जल्दबाज़ी होगी?
आंकड़ों में ऊँचाई, जमीनी स्तर पर हकीकत अलग
चेनलिसिस के अनुसार भारत दुनिया में क्रिप्टो अपनाने में सबसे आगे है। लेकिन यह आंकड़ा भ्रामक भी हो सकता है। कई बार लोग केवल ऐप डाउनलोड कर या पंजीकरण बोनस लेने तक सीमित रहते हैं, जबकि वास्तविक लेन-देन या उपयोग बहुत कम होता है। यानी आंकड़े और ज़मीन पर स्थिति में बड़ा अंतर है।
कर और नियम: विकास की सबसे बड़ी रुकावट
भारत ने 2022 में वर्चुअल डिजिटल परिसंपत्तियों पर 30% कर और 1% टीडीएस लगाया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम छोटे निवेशकों को हतोत्साहित करता है और कारोबार को विदेशों की ओर धकेलता है। फिर भी, लाखों भारतीय इस क्षेत्र में सक्रिय हैं।
विशेषज्ञों का तर्क है कि उपयोगकर्ताओं की बढ़ती संख्या अंततः सरकार को नीतियों में नरमी लाने के लिए मजबूर करेगी। साथ ही, आर्थिक मामलों के सचिव स्वयं स्वीकार कर चुके हैं कि डिजिटल परिसंपत्तियाँ सीमाओं को नहीं मानतीं, इसलिए भारत लंबे समय तक उदासीन नहीं रह सकता।
ईटीएफ: आसान प्रवेश या मूल सिद्धांतों से समझौता?
ईटीएफ के समर्थक मानते हैं कि यह साधन निवेशकों के लिए सुविधाजनक विकल्प होगा। जटिल वॉलेट बनाने या निजी कुंजी संभालने की बजाय, निवेशक केवल एक बटन दबाकर क्रिप्टो से जुड़ सकेंगे। यह उन संस्थागत निवेशकों को भी आकर्षित करेगा जो सीधे क्रिप्टो बाज़ार में प्रवेश करने से कतराते हैं।
क्या आप जानते हैं: सलमान खान भी नहीं बचा पाए भारत का क्रिप्टो सपना
विरोधियों का मानना है कि ईटीएफ क्रिप्टोकरेंसी के असली मकसद—यानी विकेंद्रीकरण और लोगों के अपने पैसे पर पूरा नियंत्रण—को कमज़ोर कर देगा। उनके अनुसार, ईटीएफ से क्रिप्टो सिर्फ़ एक आम वित्तीय उत्पाद बनकर रह जाएगा, जिससे इसकी असली आज़ादी खत्म हो जाएगी।
उपयोग और समुदाय की मजबूती
कड़े कर नियमों के बावजूद भारत में क्रिप्टो का दायरा लगातार फैल रहा है। अनुमान है कि देश में करीब 10 करोड़ उपयोगकर्ता किसी न किसी रूप में इससे जुड़े हैं। खासतौर पर 25 वर्ष से कम उम्र का वर्ग इस रुझान को आगे बढ़ा रहा है।
सिर्फ निवेश ही नहीं, वेब3 और ब्लॉकचेन आधारित विकास कार्य भी भारत में तेजी पकड़ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ देश में करोड़ों डॉलर का निवेश कर रही हैं, जिससे हैकाथॉन, प्रशिक्षण कार्यक्रम और नए स्टार्टअप उभर रहे हैं।
इसी संदर्भ में Bharat Web3 Association के चेयरमैन दिलीप चेनॉय का मानना है कि वेब3 भारत में 2030 तक 1.1 बिलियन डॉलर के स्तर तक पहुँच सकता है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा:
इसे साकार करने के लिए भारत में एक सहायक नियामक ढाँचे की आवश्यकता है, जो इस क्षेत्र में कारोबार करने की सुगमता को बढ़ाए। जबकि वर्चुअल डिजिटल एसेट्स या टोकन अक्सर कई सेवाओं और व्यवसायों के लिए एक उप-उत्पाद होते हैं, ब्लॉकचेन/वेब3 के क्षेत्र में ऐसे बड़े अवसर बर्बाद हो रहे हैं जो केवल ट्रेडिंग और वित्तीय निवेश से कहीं आगे जाते हैं।भारत के लिए ईटीएफ अनिवार्य रूप से पहला साधन नहीं है। वेब3 इकोसिस्टम को प्रोत्साहित करने के अलावा, कई “लो-हैंगिंग फ्रूट्स”—जैसे कर का युक्तिकरण, सेट-ऑफ की स्पष्टता, मर्चेंट कोड्स के उपयोग की अनुमति और विशेष रूप से स्टार्टअप्स व इस क्षेत्र की कंपनियों के लिए कारोबार की सुगमता—कम समय में कहीं अधिक प्रभाव डाल सकते हैं। एक बार ये बुनियादी तत्व स्थापित हो जाने के बाद, ईटीएफ उसके बाद आ सकता है।
निष्कर्ष
ईटीएफ निश्चित रूप से क्रिप्टो जगत को मुख्यधारा में लाने का एक प्रभावी माध्यम हो सकता है। अमेरिका में इसका सकारात्मक असर दिखाई दे रहा है। लेकिन भारत के संदर्भ में ज़रूरी है कि पहले तीन बुनियादी पहलुओं पर काम हो:
नियामक स्पष्टता: निवेशकों और कंपनियों को भरोसेमंद ढाँचा चाहिए।
कर सुधार: अत्यधिक कराधान से नवाचार और छोटे निवेशक हतोत्साहित हो रहे हैं।
जमीनी स्तर पर वास्तविक उपयोग: क्रिप्टो को केवल निवेश साधन नहीं, बल्कि लेन-देन और वित्तीय नवाचार के उपकरण के रूप में बढ़ावा देना होगा।
इसलिए, भारत के लिए ईटीएफ फिलहाल “लुभावना विकल्प” तो है, लेकिन इसे अपनाने का सही समय तभी आएगा जब नियामक और कर ढाँचा अधिक संतुलित होगा और जमीनी स्तर पर उपयोग मजबूत हो जाएगा। अन्यथा ईटीएफ केवल आंकड़ों की चमक बनकर रह जाएगा।
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