2024 के एक साइबर हमले ने जब वज़ीरएक्स (WazirX) प्लेटफ़ॉर्म पर कई निवेशकों की संपत्तियों को ठहराव में ला दिया था, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि एक साल बाद वही घटना भारतीय न्यायिक इतिहास में एक नई मिसाल कायम करेगी।
इसी हमले के बाद फ्रीज़ हुए 3,532.30 XRP टोकन की सुरक्षा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने अब यह घोषित किया है कि क्रिप्टोकरेंसी भारतीय कानून में “संपत्ति” की परिभाषा में आती है।
न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश की एकल पीठ ने कहा, “क्रिप्टोकरेंसी न तो मूर्त संपत्ति है और न ही मुद्रा। परंतु यह निश्चित रूप से एक ऐसी संपत्ति है जिसका उपभोग और स्वामित्व संभव है, और जिसे ट्रस्ट में रखा जा सकता है।”
अपने आदेश में न्यायालय ने अहमद जी एच आरिफ बनाम सीडब्ल्यूटी और जिलुभाई नानभाई खाचर बनाम गुजरात राज्य जैसे सुप्रीम कोर्ट के पुराने निर्णयों का हवाला देते हुए “संपत्ति” की कानूनी परिभाषा का विस्तार किया।
न्यायमूर्ति वेंकटेश ने कहा,
कानूनी अर्थ में संपत्ति उन अधिकारों का समूह है जिन्हें कानून संरक्षित करता है। यह उन सभी मूल्यवान हितों तक फैली है जो विनिमय योग्य हैं या किसी आर्थिक स्थिति का निर्माण करते हैं।
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि क्रिप्टोकरेंसी आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 2(47A) के अंतर्गत “आभासी डिजिटल संपत्ति” (virtual digital asset) की श्रेणी में आती है और इसे सट्टा या जुए के लेनदेन की तरह नहीं देखा जा सकता।
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याचिकाकर्ता के मामले में, अदालत ने उनकी फ्रीज़ की गई XRP होल्डिंग्स को उनकी वैध “संपत्ति” के रूप में स्वीकार करते हुए कहा कि जब तक मध्यस्थता कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती, किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।
न्यायमूर्ति वेंकटेश ने अपने फैसले में लिखा,
भले ही क्रिप्टोकरेंसी ब्लॉकचेन पर दर्ज 1s और 0s की श्रृंखला हो, यह केवल डेटा नहीं है, बल्कि यह स्वामित्व, हस्तांतरण और संरक्षण योग्य संपत्ति है।
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि भारत के पास इस emerging क्षेत्र में संतुलित नियमन तैयार करने का सुनहरा अवसर है, एक ऐसा ढांचा जो नवाचार को प्रोत्साहन दे और साथ ही उपभोक्ताओं की सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता बनाए रखे।
इस विचार के समर्थन में, न्यायालय ने 2020 में न्यूजीलैंड के Ruscoe vs Cryptopia Ltd (in liquidation) मामले का उल्लेख किया, जिसमें वहां की अदालत ने क्रिप्टोकरेंसी को “एक अमूर्त संपत्ति जिसे ट्रस्ट पर रखा जा सकता है” के रूप में मान्यता दी थी।
वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप
मद्रास हाई कोर्ट का यह निर्णय उस वैश्विक प्रवृत्ति से मेल खाता है, जिसमें दुनिया की अन्य अदालतें पहले ही इसी दिशा में कदम बढ़ा चुकी है। यूके हाई कोर्ट (AA बनाम Unknown, 2019), सिंगापुर हाई कोर्ट (ByBit Fintech Ltd vs Ho Kai Xin, 2023), और अमेरिकी संघीय न्यायालय (SEC बनाम Ripple Labs, 2023) ने भी क्रिप्टो टोकन को संपत्ति या कमोडिटी के रूप में स्वीकार किया है।
भारत में यह फैसला अब क्रिप्टोकरेंसी की कानूनी स्थिति को एक नई स्पष्टता देता है। इसके दूरगामी प्रभाव कराधान, विरासत, दिवाला प्रक्रिया और डिजिटल संपत्ति से जुड़े अनुबंधों पर महसूस किए जा सकते हैं।
निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि मद्रास उच्च न्यायालय ने यह दिखाया है कि भले ही क्रिप्टो की दुनिया ब्लॉकचेन की शून्य और इकाइयों में सीमित लगती हो, पर उसकी कानूनी और आर्थिक वास्तविकता अब भारतीय न्याय के धरातल पर उतर चुकी है।
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