वैश्विक वित्तीय सेवा संस्थान Morgan Stanley, जो निवेश बैंकिंग, वेल्थ मैनेजमेंट और कैपिटल मार्केट समाधान प्रदान करता है, हालिया रिसर्च नोट में संकेत दिया है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) दिसंबर 2025 की मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट (bps) कटौती कर सकता है।
रिसर्च हाउस का तर्क है कि हेडलाइन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में लगातार नीचे की ओर आ रही आश्चर्यजनक प्रवृत्ति ने नीति निर्माताओं को दरें घटाने की गुंजाइश दी है।
मॉर्गन स्टैनली का अनुमान है कि इस कटौती के बाद टर्मिनल पॉलिसी रेट 5.25% के आस-पास आ सकता है। हालांकि फॉरवर्ड कदम पूरी तरह से ‘डेटा-डिपेंडेंट’ होंगे और आरबीआई अपने अगले निर्णय आर्थिक संकेतकों के आधार पर तय करेगा।
नीतिगत रुख में लचीलापन
पिछले कुछ महीनों में आरबीआई ने आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाने के लिए नीतिगत रुख में लचीलापन दिखाया है। वर्ष 2025 की शुरुआत से ही वैश्विक और घरेलू परिस्थितियों के कारण केंद्रीय बैंक अधिक समायोज्य नीतियों की ओर बढ़ा है।
इस साल जून में आरबीआई ने बड़े कदम उठाते हुए रेपो रेट में उल्लेखनीय कटौती की थी, जो नीति-परिदृश्य को और बदलती भूमिका दे रही है। इस पृष्ठभूमि ने भी ऐसे विश्लेषणों को बल दिया है कि दिसंबर में और सहजता संभव है।
FY26 के लिए CPI अनुमान
मॉर्गन स्टैनली ने अपने पूर्वानुमानों में FY26 के लिए CPI अनुमानों को भी नीचा किया है। औसतन लगभग 2.4% की अपेक्षा की जा रही है, जो RBI के 4% के मध्यम-कालीन लक्ष्य से काफी कम है।
कम मुद्रास्फीति का मतलब है कि केंद्रीय बैंक को वृद्धि-समर्थक उपाय अपनाने के लिए अधिक जगह मिलती है। परंतु जोखिम अभी भी मौजूद हैं, जैसे कच्चे माल की कीमतों, वैश्विक वित्तीय शॉक और घरेलू मांग की कमजोरी।
व्यापक प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव
यह कटौती अगर होती है तो इसके प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव व्यापक होंगे। ब्याज दरों में कमी से बंधक और व्यवसायिक उधार सस्ता हो सकता है जिससे क्रेडिट-विकास और निजी निवेश को प्रोत्साहन मिल सकता है।
दूसरी ओर, फिक्स्ड-इनकम निवेशकों और बैंकों के डिपॉजिट-यील्ड पर दबाव बन सकता है, जिससे बचतकर्ताओं की आय घट सकती है।
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शेयर बाजार और रियल एस्टेट जैसे संवेदनशील सेक्टर तात्कालिक रूप से सकारात्मक प्रतिक्रिया दे सकते हैं, पर दीर्घकालिक प्रभाव आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति के वास्तविक रुझानों पर निर्भर करेगा।
डेटा निर्भरता
नीति-निर्माण के लिहाज से यह स्पष्ट है कि आरबीआई का फोकस अब “डेटा-डिपेंडेंसी” पर और सख्त होता जा रहा है यानी हर मोड़ पर सूचनाओं के आधार पर ही नीति बदली जाएगी।
मॉर्गन स्टैनली का अनुमान केवल एक परिदृश्य है, न कि निश्चित परिणाम। केंद्रीय बैंक की अगली MPC बैठक में उपलब्ध आर्थिक संकेतक, जैसे CPI, IP, बैलेंस-ऑफ-पेमेंट, वैश्विक बाजार की स्थिति, अंतिम निर्णय तय करेंगे।
प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक
भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक मानी जाती है। मजबूत घरेलू खपत, युवा कार्यबल और तेज़ी से बढ़ते सेवा क्षेत्र ने इसे स्थिर वृद्धि का आधार दिया है।
बुनियादी ढांचे में निवेश, डिजिटल परिवर्तन और विनिर्माण को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ विकास को और गति दे रही हैं।
कृषि, उद्योग और सेवाओं का संतुलित योगदान इसे वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद लचीला बनाता है। हालांकि मुद्रास्फीति, बेरोज़गारी, वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव और राजकोषीय दबाव जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन दीर्घकालिक संभावनाएँ मजबूत मानी जाती हैं।
निष्कर्ष
मॉर्गन स्टैनली द्वारा दिसंबर 2025 में 25 bps कटौती की संभावना बताना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है यदि यह कटौती आर्थिक गतिविधि को पुनर्जीवित कर दे। पर खतरे और अनिश्चितताएँ अब भी बरकरार हैं।
निवेशक, उधारकर्ता और स्वरोजगार-क्षेत्र के हितधारियों को आरबीआई की आधिकारिक घोषणा और आने वाले आर्थिक डेटा पर नज़र रखनी चाहिए, क्योंकि वही असल दिशा दिखाएगा।
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