कमज़ोर भारतीय रुपये के बीच क्रिप्टोकरेंसी का सुरक्षित या बचाव निवेश के रूप में फिर से उभार आया है, क्योंकि व्यापारियों और रिटेल निवेशकों ने पारंपरिक मुद्रा से डिजिटल संपत्तियों की ओर रुख किया है। रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पिछले कुछ सप्ताह में कमजोर प्रदर्शन कर रहा है, जिससे कुछ क्रिप्टो समर्थकों ने इसे मुद्रा मूल्यह्रास और वैश्विक जोखिम से बचने का एक साधन के तौर पर देखा है।
भारत में रुपये की गिरावट
भारत में रुपये की गिरावट इस दिसंबर में अधिक स्पष्ट रूप से दिखी है। डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड स्तर तक गिरकर 91.07 के आसपास पहुंचा। यह पहली बार है जब यह मुद्रा इस स्तर को पार कर गई। विश्लेषकों का मानना है कि कमज़ोर मुद्रा की स्थिति ने कुछ निवेशकों को क्रिप्टोकरेंसी जैसे बिटकॉइन, एथेरियम और अन्य डिजिटल संपत्तियों की ओर आकर्षित किया है, जिन्हें वे पारंपरिक विदेशी मुद्रा जोखिम से बचने का एक विकल्प मान रहे हैं।
ऐसे निवेशक मानते हैं कि यदि रुपये की गिरावट जारी रहती है, तो डिजिटल संपत्तियों में निवेश करना संभावित हेज के रूप में काम कर सकता है। विशेषज्ञों ने बताया है कि जब रुपये की कीमत गिरती है, तो कुछ निवेशक उस घटती क्रय शक्ति से बचने के लिए क्रिप्टोकरेंसी खरीदते हैं। हालांकि यह दृष्टिकोण संपूर्ण वित्तीय समुदाय में सर्वसम्मत विचार नहीं है, फिर भी यह एक उभरती प्रवृत्ति बन रही है।
डिजिटल संपत्ति
क्रिप्टो सर्कल में चर्चा यह है कि बिटकॉइन जैसे प्रमुख डिजिटल संपत्ति अक्सर मुद्रास्फीति और मुद्रा मूल्यह्रास के समय हेज की तरह काम कर सकते हैं, हालांकि इसका समर्थन व्यापक तौर पर नहीं है और यह काफी जोखिम भरा भी माना जाता है। क्रिप्टो निवेशकों का तर्क है कि जब विनिमय दरों में अस्थिरता होती है, तो पारंपरिक मुद्राओं से डिजिटल संपत्तियों की तरफ निवेश की मांग बढ़ सकती है।
इस बीच, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) सहित नियामक संस्थाएं क्रिप्टोकरेंसी के बारे में सतर्क रुख बनाए हुए हैं। RBI के एक वरिष्ठ अधिकारी ने हाल ही में यह स्पष्ट किया है कि क्रिप्टोकरेंसी में स्टेबलकॉइन और अन्य डिजिटल टोकन से जुड़े जोखिम मौजूद हैं और इन्हें मुद्रा स्थिरता या मौद्रिक नीतिगत उपकरण के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
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क्रिप्टो बाजार में निवेश बढ़ रहा है
आरबीआई के रुख के बावजूद, क्रिप्टो बाजार में निवेश बढ़ रहा है, खासकर युवा और तकनीक सक्ष्म निवेशकों के बीच। ऐसी रिपोर्टें भी सामने आई हैं कि भारत में क्रिप्टो खरीदारी और निवेश गतिविधियाँ लगातार बढ़ रही हैं, जिसमें कुछ राज्यों में बिटकॉइन सबसे लोकप्रिय डिजिटल संपत्ति बनी हुई है।
क्रिप्टो समर्थकों का तर्क है कि इससे न केवल व्यक्तिगत निवेशकों को मुद्रास्फीति से बचने में मदद मिल सकती है, बल्कि यह भारत के युवा वर्ग को वित्तीय नवाचार और डिजिटल अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने का अवसर भी देता है। क्रिप्टो की यह लोकप्रियता विशेष तौर पर उन शहरों और क्षेत्रों में बढ़ी है जहां पारंपरिक निवेश साधनों तक पहुंच सीमित है।
RBI और अन्य वित्तीय नियामक की चेतावनी
दूसरी ओर, RBI और अन्य वित्तीय नियामक यह भी चेतावनी देते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी की कीमत में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और अनियमितता होती है, जो निवेशकों के लिए भारी हानि का जोखिम पैदा कर सकती है। RBI के अधिकारी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर स्टेबलकॉइन और अन्य डिजिटल टोकन को मूल्य भंडार या व्यवहार्य वित्तीय उपकरण के तौर पर देखा जाता है, तो वे मौद्रिक स्थिरता और वित्तीय प्रणाली के लिए खतरा बन सकते हैं।
इसके अलावा, भारत में क्रिप्टोकरेंसी पर नियामक ढांचा अभी भी विकास के चरण में है और सरकार तथा RBI कई बार अपने दृष्टिकोण और नियमों में संशोधन कर रहे हैं। कानूनी और प्रशासनिक जोखिमों के कारण कुछ निवेशक अब भी सावधान हैं, खासकर तब जब सरकार या RBI कोई सख्त नीति लागू कर सकता है।
हितधारकों के बीच यह भी चर्चा है कि यदि रुपये की कमजोरी बनी रहती है और विदेशी निवेश भारी मात्रा में बाहर जा रहा है, तो पारंपरिक निवेश उत्पादों के साथ-साथ डिजिटल संपत्तियों में निवेश की मांग में और वृद्धि देखने को मिल सकती है। हालांकि यह भी स्पष्ट है कि क्रिप्टो को एक स्थिर हेज के रूप में मान्यता मिलने के लिए और व्यापक बाजार और नियामक समर्थन की आवश्यकता होगी।
निष्कर्ष
कमज़ोर रुपये ने भारत में क्रिप्टोकरेंसी को एक संभावित हेज विकल्प के रूप में फिर से सुर्खियों में ला दिया है। युवा और तकनीक सक्ष्म निवेशक डिजिटल संपत्तियों की ओर बढ़ रहे हैं, जबकि नियामक एजेंसियाँ इससे जुड़े जोखिमों को लेकर सतर्क हैं।
आने वाले महीनों में रुपये की चाल, नीतिगत रुख और वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ तय करेगी कि क्रिप्टो भारतीय निवेशकों के लिए भरोसेमंद हेज साबित होगा या नहीं।
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