बिटकॉइन का वैश्विक रिजर्व संपत्ति के रूप में उभार
दुनिया भर में बिटकॉइन को एक भंडारण (Reserve) संपत्ति के रूप में अपनाने की प्रक्रिया तेज़ हो रही है। अमेरिका इसमें सबसे आगे है और जनवरी 2025 में वहां Strategic Bitcoin Reserve (रणनीतिक बिटकॉइन भंडार) की शुरुआत की गई। मार्च तक एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे यह संकेत मिला कि सरकार की नीति में बड़ा बदलाव आ रहा है।
अमेरिका का यह बिटकॉइन भंडार मुख्य रूप से आपराधिक गतिविधियों और कंपनियों के दिवालिया होने के मामलों से जब्त किए गए बिटकॉइन से भरा जाएगा। इस संपत्ति का प्रबंधन डिपार्टमेंट ऑफ़ जस्टिस (Department of Justice -DOJ) और यू एस मार्शल्स सर्विस (US Marshals Service) करेंगे। यह कदम दिखाता है कि अमेरिका अब बिटकॉइन को एक दीर्घकालिक मूल्य-संग्रहण के रूप में देख रहा है जैसे डिजिटल सोना, न कि केवल एक त्वरित लाभ वाली संपत्ति के रूप में।
मार्च 2025 तक अमेरिकी सरकार के पास लगभग 2 लाख बिटकॉइन (BTC) हैं। अमेरिका के कई राज्यों, जैसे टेक्सास और एरिज़ोना, ने अपनी सरकारी निधियों को बिटकॉइन में निवेश करने की अनुमति दी है।
अमेरिका के बाहर, अल सल्वाडोर ने अपने राष्ट्रीय भंडार में 6,000 से अधिक बिटकॉइन जमा किए हैं, जबकि भूटान ने पर्यावरण अनुकूल जलविद्युत खनन (hydropower mining) के माध्यम से 12,000 से अधिक बिटकॉइन इकट्ठा किए हैं, जो उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 40 प्रति शत है। ये गतिविधियां दिखातीं हैं कि अब दुनिया भर में बिटकॉइन को “डिजिटल गोल्ड” की तरह देखा जा रहा है — इसकी सीमित आपूर्ति, पारदर्शिता और आसानी से ट्रांसफर होने की वजह से।
जब महंगाई बढ़ती है, कर्रंसी की वैल्यू गिरती है या भू-राजनीतिक (Geopolitical) संकट होते हैं, तब बिटकॉइन की विकेंद्रीकृत (decentralized) और सीमित प्रकृति सरकारों को आकर्षित करती है, जो अपने भंडार को विविध बनाना चाहती हैं। जैसे-जैसे और देश इसकी रणनीतिक भूमिका पर विचार कर रहे हैं, वैसे-वैसे बिटकॉइन को केवल एक सट्टा निवेश नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिरता का एक भरोसेमंद साधन माना जा रहा है।
बिटकॉइन को "डिजिटल गोल्ड" क्यों कहा जाता है
बिटकॉइन को अक्सर "डिजिटल गोल्ड" कहा जाता है क्योंकि यह कीमती धातुओं की कमी (rarity) को डिजिटल तकनीक की खूबियों के साथ जोड़ता है, जिससे यह एक मूल्य संग्रह (store of value) का साधन बन जाता है। नीचे कुछ कारण दिए गए हैं जो बताते हैं कि इसे यह नाम क्यों मिला:
कोई केंद्रीय नियंत्रण नहीं: बिटकॉइन किसी सरकार, बैंक या कंपनी के नियंत्रण में नहीं है। यह सोने की तरह स्वतंत्र है और किसी एक संस्था द्वारा इसे बदला या नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
केवल 21 मिलियन की सीमित आपूर्ति: पारंपरिक कर्रंसी या वस्तुएं (commodities) जितनी चाहें उतनी बनाई जा सकती हैं, लेकिन बिटकॉइन की संख्या पहले से तय है — केवल 21 मिलियन। इससे इसकी कमी बनी रहती है और इसका दीर्घकालिक मूल्य बना रहता है।
तेजी से खरीद-बिक्री (लिक्विडिटी): बिटकॉइन को दुनिया भर के एक्सचेंजों पर कभी भी खरीदा या बेचा जा सकता है। इसके विपरीत, सोने का व्यापार अक्सर कारोबारी समय और भौतिक साधनों पर निर्भर करता है। इसलिए बिटकॉइन ज्यादा सुलभ और तरल (liquid) है।
पूरी पारदर्शिता: हर बिटकॉइन लेन-देन को एक सार्वजनिक ब्लॉकचेन पर रिकॉर्ड किया जाता है। यह खुला खाता प्रणाली (ledger) ऐसी पारदर्शिता देती है जो पारंपरिक सोने के बाजारों में नहीं मिलती।
डिजिटल उपयोगिता: बिटकॉइन इंटरनेट की गति से चलता है। आप इसे सीमा पार भेज सकते हैं या इसे डीसेंट्रलाइज़्ड फाइनेंस (DeFi) टूल्स में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें तिजोरी या भौतिक ट्रांसपोर्ट की जरूरत नहीं होती जो सोने के साथ संभव नहीं।
बाजार का समर्थन: 2025 में बिटकॉइन की कीमत $100,000 से ऊपर जा चुकी है और वित्तीय संस्थानों व सरकारों द्वारा इसे अपनाया जा रहा है। इससे यह एक रणनीतिक संपत्ति (strategic asset) के रूप में स्थापित हो चुका है।
क्या आप जानते हैं?
हालांकि चीन ने क्रिप्टो ट्रेडिंग पर प्रतिबंध लगा दिया है, फिर भी उसके पास अब भी 1,94,000 बिटकॉइन हैं, जो उसने प्लस टोकन (Plus Token) जैसे पोंज़ी घोटालों से ज़ब्त किए थे। इससे वह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी बिटकॉइन होल्डर बन गया है।
भारत की बिटकॉइन को लेकर अनोखी स्थिति
जब दुनिया की बड़ी ताकतें बिटकॉइन को अपने रिज़र्व में शामिल करने पर विचार कर रही हैं, भारत एक अहम मोड़ पर खड़ा है। ऐसे समय में भारत के पास यह अवसर है कि वह बिटकॉइन को अपनी वित्तीय रणनीति में शामिल करे। वैश्विक महंगाई को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच बिटकॉइन को अपनी आर्थिक योजना में शामिल करना अब जरूरी हो गया है।
नीचे भारत की आर्थिक स्थिति से जुड़े विभिन्न पहलुओं की संक्षिप्त जानकारी दी गई है:
आर्थिक लक्ष्य
भारत ने 2025-2026 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का स्पष्ट लक्ष्य तय किया है। देश की मजबूत मैक्रोइकोनॉमिक नींव और सुदृढ़ बैंकिंग प्रणाली इसे पूरा करने में मददगार हैं।
तकनीकी क्षमताएं
भारत की तकनीकी ताकत 87% फिनटेक अपनाने की दर से दिखती है, जो वैश्विक औसत 67% से कहीं ज्यादा है। साथ ही, भारत में 65 करोड़ से अधिक स्मार्टफोन उपयोगकर्ता हैं।
डिजिटल ढांचा
भारत का मौजूदा डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर – जैसे आधार, यूपीआई और ई-रूपी – पहले से ही त्वरित, कैशलेस और पहचान सत्यापित लेन-देन को सपोर्ट करता है। यही ढांचा बड़े स्तर पर बिटकॉइन के उपयोग के लिए भी बढ़ाया जा सकता है, जिससे भारत को सुरक्षित और नियामक क्रिप्टो ढांचे में वैश्विक नेतृत्व मिल सकता है, जैसे फिनटेक में हुआ है।
ऊर्जा क्षमता
गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में सौर और जल ऊर्जा पर भारत का जोर टिकाऊ बिटकॉइन माइनिंग को संभव बनाता है। ये ग्रीन एनर्जी ग्रिड पर्यावरण के अनुकूल माइनिंग में मदद करते हैं, जिससे भारत जिम्मेदारी से बिटकॉइन जमा कर सकता है।
नीति और नियमन
क्रिप्टो से होने वाले लाभ पर 30% टैक्स, 4% सेस (cess), 1% टीडीएस और बायबिट पर 18% जीएसटी जैसी नीतियां यह दिखाती हैं कि भारत में क्रिप्टो पर कानून बन तो रहे हैं, लेकिन वे फिलहाल अनुकूल नहीं हैं। जी20 के सदस्य और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के भागीदार के रूप में भारत की वैश्विक नीति निर्माण में अहम भूमिका है। बिटकॉइन को एक पूंजीगत संपत्ति के रूप में उभरते देखकर भारत को संतुलित नियम बनाने चाहिए, ना कि इसे पूरी तरह नकार देना चाहिए।
राजनीतिक समर्थन
हालांकि नियामक माहौल अभी बिटकॉइन के अनुकूल नहीं है, लेकिन कुछ नेताओं के हालिया बयान यह दिखाते हैं कि क्रिप्टोकरेंसी में रुचि बढ़ रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने एक पायलट बिटकॉइन रिज़र्व की बात कही है ताकि भारत की आर्थिक मजबूती बढ़ाई जा सके। भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी भारत को क्रिप्टो की दिशा में आगे बढ़ने की सलाह दी है। भारत के आर्थिक मामलों के सचिव अजय सेठ ने कहा है, “एक से ज्यादा देश अब क्रिप्टोकरेंसी को उपयोग, स्वीकार्यता और इसकी अहमियत के आधार पर नए नजरिए से देख रहे हैं। इसी कड़ी में हम भी चर्चा पत्र पर फिर से विचार कर रहे हैं।”
क्या आप जानते हैं?
भूटान ने अपने राष्ट्रीय रिज़र्व के लिए हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर का उपयोग करके 8,500 बिटकॉइन माइन किए हैं। यह बिटकॉइन उसने ग्रीन माइनिंग के ज़रिए सीधे कमाया है, जो अधिकतर देशों से अलग है।
बिटकॉइन को राष्ट्रीय भंडार बनाने में प्रमुख जोखिम और ध्यान देने योग्य बातें
आज जब दुनिया भर में बिटकॉइन को राष्ट्रीय भंडार के रूप में अपनाया जा रहा है, भारत को इसे एक रणनीतिक संपत्ति के रूप में अपनाने से पहले कुछ गंभीर जोखिमों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए:
1. अस्थिरता (Volatility):
बिटकॉइन की कीमत में बहुत तेज उतार-चढ़ाव हो सकता है। यदि इसे राष्ट्रीय भंडार में शामिल किया जाए, तो यह अस्थिरता वित्तीय संकट के समय देश की आर्थिक स्थिरता को नुकसान पहुँचा सकती है।
2. नियम-कानून (Regulation):
बिटकॉइन को भंडार में शामिल करने के लिए मजबूत निगरानी और स्पष्ट नियमों की आवश्यकता होगी। इससे जनता का विश्वास बना रहेगा, जोखिमों का प्रबंधन किया जा सकेगा, और अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन किया जा सकेगा।
3. ऊर्जा और तकनीक (Energy and Technology):
बिटकॉइन को सुरक्षित रखने या माइनिंग के लिए भरोसेमंद बिजली और उन्नत साइबर सुरक्षा जरूरी है। बिजली की कमी या कमजोर डिजिटल व्यवस्था से संचालन और सुरक्षा पर असर पड़ सकता है।
4. पर्यावरणीय चिंताएँ (Environmental Concerns):
हालाँकि हाइड्रोपावर और सोलर एनर्जी के विकल्प मौजूद हैं, लेकिन असंतुलित माइनिंग से पर्यावरण को नुकसान पहुँच सकता है। पानी और जंगलों पर दीर्घकालिक प्रभाव से बचने के लिए पर्यावरण का पूरा आंकलन जरूरी है।
बिटकॉइन में संभावनाएँ जरूर हैं, लेकिन भारत को यदि इसे राष्ट्रीय भंडार का हिस्सा बनाना है, तो यह कदम सोच-समझकर, नियमबद्ध और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील तरीके से उठाना चाहिए।
भूटान, अल सल्वाडोर और बहामास से भारत क्या सीख सकता है
भारत जब डिजिटल करेंसी के भविष्य पर विचार कर रहा है — चाहे वह बिटकॉइन रिज़र्व को अपनाने का मामला हो, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) का विकास हो या नियमों की स्पष्टता — तब वह तीन छोटे देशों से बहुत कुछ सीख सकता है: भूटान, अल सल्वाडोर और बहामास। इन देशों की सफलताएं, गलतियां और नीतिगत प्रयोग भारत को सतर्क और स्पष्ट दिशा में आगे बढ़ने का रास्ता दिखा सकते हैं।
भूटान
हिमालय की गोद में बसे भूटान ने चुपचाप बिटकॉइन रणनीति के मामले में एक दूरदर्शी देश के रूप में पहचान बनाई है। 2020 से इसने अपनी प्रचुर जल-विद्युत ऊर्जा का उपयोग कर पर्यावरण के अनुकूल तरीके से बिटकॉइन माइनिंग शुरू की। और जो बिटकॉइन इसे मिला, उसे बेचने के बजाय भूटान ने संचित करना शुरू किया। अब इसके पास 1 अरब डॉलर से अधिक के बिटकॉइन रिज़र्व हैं, जो इसके जीडीपी का बड़ा हिस्सा है।
भारत के लिए इससे दो अहम सबक हैं: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और लद्दाख जैसे राज्यों में नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग कर कम प्रदूषण वाले तरीके से बिटकॉइन माइन किया जा सकता है। बिटकॉइन को रोज़मर्रा के लेन-देन के बजाय एक दीर्घकालिक संपत्ति (जैसे सोना) की तरह रिज़र्व में रखा जा सकता है।
अल सल्वाडोर
इसके उलट, अल सल्वाडोर ने 2021 में बिटकॉइन को अपनी आधिकारिक करेंसी घोषित कर दुनिया को चौंका दिया। इसका उद्देश्य था कि आम लोग डिजिटल लेन-देन से जुड़ें, विदेशी निवेश आए और बाहर से आने वाले पैसों पर कम खर्च हो। पर जमीनी सच्चाई कुछ और ही निकली। आम लोगों ने इसे अपनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। सरकार द्वारा दिए गए बिटकॉइन वॉलेट को शुरू में इस्तेमाल किया गया, लेकिन बाद में उसका उपयोग गिर गया। तकनीकी दिक्कतें, डिजिटल जानकारी की कमी और कीमतों में उतार-चढ़ाव ने लोगों का भरोसा तोड़ दिया। आखिरकार, अंतरराष्ट्रीय दबाव और आर्थिक संकट के चलते 2025 में सरकार ने इसे कानूनी मुद्रा का दर्जा वापस ले लिया।
भारत के लिए सीख
नीति बनाना काफी नहीं है; आधारभूत ढांचा, शिक्षा और जनता का भरोसा ज़रूरी है। बिना पूरी तैयारी के बिटकॉइन को कानूनी मुद्रा बनाना नुकसानदायक हो सकता है। लेन-देन के बजाय इसे रिज़र्व की तरह रखना अधिक समझदारी भरा होगा।
बहामास
बहामास पहला देश था जिसने खुद की डिजिटल करेंसी — सैंड डॉलर — जनता के लिए शुरू की, ताकि दूर-दराज के द्वीपों तक वित्तीय सेवाएं पहुंच सकें। लेकिन चार साल बाद भी बहुत कम लोग इसका उपयोग कर रहे हैं। इसके पीछे कुछ अहम कारण हैं - लोगों को इसे अपनाने का कोई स्पष्ट लाभ नहीं दिखा। बैंक और दुकानदार इस सिस्टम को अपनाने में सुस्त रहे। डिजिटल करेंसी को लेकर लोगों का भरोसा कमजोर रहा। जब सरकार ने बैंकों को ज़बरदस्ती इसमें शामिल करना चाहा, तो विरोध हुआ।
भारत के लिए संदेश साफ है
अगर डिजिटल करेंसी आम लोगों को कोई ठोस फायदा नहीं देती, तो वे इसे अपनाएंगे नहीं। उपयोग में सरलता, सुरक्षा, दुकानदारों की भागीदारी, निजता की सुरक्षा और जनता का भरोसा — ये सब पहले बनाना होगा, तभी डिजिटल करेंसी सफल हो पाएगी।
निष्कर्ष
भारत को बिटकॉइन या CBDC में सबसे आगे रहने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन उसे सबसे सोच-समझकर कदम उठाने चाहिए। भूटान से सीखें कि शांति और टिकाऊ रणनीति कितनी असरदार हो सकती है। अल सल्वाडोर याद दिलाता है कि बिना तैयारी की हिम्मत उल्टा पड़ सकती है। बहामास बताता है कि डिजिटल करेंसी तब तक सफल नहीं हो सकती, जब तक जनता का भरोसा न हो।
इन देशों से सीखकर भारत एक संतुलित, नवाचार से भरी और स्थिर नीति बना सकता है — जहां डिजिटल वित्त को एक जुए की तरह नहीं, बल्कि एक सुनियोजित आर्थिक सुधार के रूप में अपनाया जाए।