ज़ेरोधा (Zerodha) के सह-संस्थापक नितिन कामथ ने हाल ही में एक सोशल-मीडिया पोस्ट में बताया कि उन्हें भारत में क्रिप्टो वायदा और विकल्प (F&O) ट्रेडिंग की लोकप्रियता की यह गति समझ में नहीं आई। कामथ का कहना है कि "ये भारतीय क्रिप्टो प्लेटफॉर्म नियामक ग्रे ज़ोन में पनप रहे हैं, और इस दिशा में कम टैक्स और अत्यधिक लीवरेज सुविधाएँ उपलब्ध हैं”।
कॉइनटेलीग्राफ भारत ने इस प्रवृत्ति को गहराई से समझाने का प्रयास किया है, जहाँ लेखक यह बताते हैं कि ये प्लेटफ़ॉर्म विशेष तौर पर फ्यूचर्स ट्रेडिंग को प्रोत्साहित कर रहे हैं क्योंकि वह स्पॉट ट्रेडिंग की तुलना में तेज़ी से बढ़ रही है।
लीवरेज का खतरनाक स्तर
स्टॉक मार्केट में भारत में आमतौर पर 3–5 गुणा (3–5x) लीवरेज मिलता है, लेकिन क्रिप्टो फ्यूचर्स में यह सीमा कहीं अधिक—50x से ऊपर—हो सकती है। कुछ वैश्विक एक्सचेंजों पर तो यह सीमा 100x तक पहुँच जाती है। यह अत्यधिक लीवरेज लाभ के अवसरों के साथ-साथ विनाशकारी नुकसान की संभावनाएँ भी बढ़ाता है।
I hadn’t realised how popular crypto F&O has become.
— Nithin Kamath (@Nithin0dha) August 26, 2025
These Indian crypto platforms seem to be thriving in a regulatory grey zone, and because of lower taxes and extreme leverage in derivatives.
From @EconomicTimes. pic.twitter.com/OZ6iNsAhCF
कराधान में आर्बिट्रेज
स्पॉट क्रिप्टो डील्स पर स्रोत पर एक प्रतिशत कर कटौती (TDS) लागू होता है, लेकिन डेरिवेटिव ट्रेडिंग में, जहाँ अंतर्निहित (इन्हेरेंट)क्रिप्टो का सौदा नहीं होता, यह TDS लागू नहीं होता—इससे कर बोझ में उल्लेखनीय कमी आती है।
साथ ही, वर्चुअल डिजिटल ऐसेट्स (VDAs) पर 30% टैक्स से बचने में भी यह चैनल प्रभावी साबित हो रहा है। इस प्रकार ट्रेडर्स फ़्यूचर्स के माध्यम से कर लाभ उठा रहे हैं।
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स्पॉट की तुलना में तीन गुना वॉल्यूम
कॉइनटेलीग्राफ भारत के स्रोतों के अनुसार, कई भारतीय क्रिप्टो एक्सचेंजों पर फ्यूचर्स ट्रेडिंग के वॉल्यूम स्पॉट ट्रेडिंग से लगभग तीन गुना अधिक हो गए हैं। यह स्थान विशेष रूप से युवा निवेशकों और जोखिम चाहने वालों के बीच आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है।
नियामक अधिशेष और निवेशकों को जोखिम
कामथ ने विशेष रूप से यह संकेत दिया कि इस तेजी से बढ़ते क्षेत्र में जहाँ नियामक स्पष्टता का अभाव है, वहाँ जोखिम की परतें गहराती जा रही हैं। स्पॉट मार्केट की तरह क्रिप्टो डेरिवेटिव्स (F&O) पर सेबी जैसी संस्थाओं का नियंत्रण नहीं है, जिससे प्लेटफ़ॉर्म तेज़ी से अपना नेटवर्क बना रहे हैं और जोखिम का स्तर बढ़ता जा रहा है।
निष्कर्ष
भारत में क्रिप्टो फ्यूचर्स और विकल्प ट्रेडिंग की जबरदस्त वृद्धि, नियामक अस्पष्टता, और कर लाभवाद—इन सबने मिलकर एक ऐसा वातावरण बना दिया है जहाँ जोखिम अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया है। असली चिंता का विषय यह है कि यह प्रवृत्ति बड़े पैमाने पर बिना किसी संरक्षित नियामक रूपरेखा के भारतीय खुदरा निवेशकों में फैली हुई है। निवेशकों को समझदारी से कदम उठाने की आवश्यकता है, और नियामकों को उचित रूप से हस्तक्षेप करना चाहिए।
ज़ेरोधा (Zerodha) के सह-संस्थापक नितिन कामथ ने समय रहते इस दिशा में आगाह किया है कि भले ही यह क्षेत्र आकर्षक लगे, लेकिन जोखिम के दृष्टिकोण से यह वित्तीय सौदा–बाज़ार उतना सुरक्षित नहीं है जितना सतही दृष्टि से लगता है। सरकार को इस ग्रे ज़ोन को स्पष्ट करना होगा और जोखिमों को नियंत्रित करने के लिए कठोर नियम लागू करने होंगे।