मुंबई में संपन्न हुआ ग्लोबल फिनटेक फेस्ट-2025 आकार और प्रभाव दोनों दृष्टि से अब तक का सबसे बड़ा आयोजन रहा। एक लाख से अधिक प्रतिभागी, आठ सौ वक्ता, सैकड़ों स्टार्टअप्स और विश्व के अग्रणी वित्तीय संस्थान इस मंच पर मौजूद थे। फिर भी, एक विषय की अनुपस्थिति ने सबका ध्यान खींचा और वह था क्रिप्टोकरेंसी और स्टेबलकॉइन पर पूर्ण मौन।

यह चुप्पी संयोग नहीं थी। रॉयटर्स ने वक्ता दिशानिर्देशों वाले दस्तावेज़ का हवाला देते हुए बताया कि 7 अक्टूबर को शुरू हुए तीन दिवसीय ग्लोबल फिनटेक फेस्ट के आयोजकों ने वक्ताओं को मंच पर या आयोजन स्थल पर "राजनीतिक, क्रिप्टो, धार्मिक, या व्यक्तिगत टिप्पणियों" से दूर रहने का निर्देश दिया था।

ऐसे में जब बिटकॉइन $125,000 के नए उच्च स्तर पर था, भारत के इस मौन ने उसकी नियामक प्राथमिकताओं और भविष्य की रणनीति को उजागर कर दिया। यहाँ यह भी जानना जरुरी है कि इस आयोजन में 50 से अधिक उत्पादों का प्रदर्शन किया गया, जिनमें PayPal ($PYPL) का वैश्विक वॉलेट प्लेटफॉर्म और भुगतान के लिए बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण शामिल थे, लेकिन क्रिप्टो पूरी तरह से अनुपस्थित रहा।

नियामक ठहराव

भारत इस समय क्रिप्टो नियमन को लेकर ‘प्रतीक्षा और देखो’ की नीति पर चलता प्रतीत होता है। जहाँ जापान, हांगकांग और सिंगापुर जैसे देश क्रिप्टो और स्टेबलकॉइन व्यवसायों को आकर्षित करने में अग्रणी हैं, वहीं भारत का ध्यान अब भी सेंट्रल बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC) यानी ई-रुपया पर केंद्रित है।

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने हाल में डिपॉज़िट टोकनाइजेशन और फिनटेक सैंडबॉक्स जैसी पहलों की घोषणा की है, ताकि डिजिटल भुगतान के नए मॉडल विकसित हो सके। लेकिन इन प्रयोगों के बीच, क्रिप्टो पर बातचीत का न होना एक नीतिगत संकेत है कि भारत फिलहाल डिजिटल मुद्राओं के निजी रूपों से दूरी बनाए रखना चाहता है।

ब्लैक डॉट पब्लिक पॉलिसी एडवाइजर्स के संस्थापक मन्दार कागड़े के शब्दों में, जैसा कि मीडिया के एक हिस्से में बताया गया है,

नीतिगत अस्पष्टता ने भारत में स्टेबलकॉइन के उपयोग के संभावित अवसरों को ठंडा कर दिया है।

निवेश और नवाचार पर असर

वर्तमान आँकड़े बताते हैं कि भारत अपने सतर्क रुख के चलते वैश्विक फिनटेक अवसरों से वंचित हो सकता है। दुनिया में यूएस डॉलर आधारित स्टेबलकॉइन का बाजार पूंजीकरण $300 बिलियन से अधिक पहुँच चुका है और कुल क्रिप्टो बाजार $4 ट्रिलियन से ऊपर है। इसके मुकाबले भारत का फिनटेक निवेश 2024 में मात्र $3.5 बिलियन रहा, जो 2021 के $9.2 बिलियन के उच्च स्तर से काफी नीचे है।

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कई उद्योग प्रतिनिधियों ने माना कि यदि भारत नियामक ढाँचा तैयार करे, तो यह क्षेत्र निवेश आकर्षित करने और नए व्यवसायिक अवसर सृजित करने में सक्षम है। लेकिन फिलहाल, नीति की अनिश्चितता ने मांग और उत्साह दोनों को सीमित कर रखा है। भारतीय रिज़र्व बैंक इनोवेशन हब के सीईओ साहिल किणी ने भी स्वीकार किया कि

स्टेबलकॉइन पर सावधानी आवश्यक है और यह रुख रातोंरात नहीं बदलेगा।

प्रतिभा पलायन

भारत की सतर्कता का एक अन्य दुष्परिणाम ‘ब्रेन ड्रेन’ के रूप में उभर रहा है। फिनटेक और ब्लॉकचेन क्षेत्र की कई स्टार्टअप्स अब विदेशों में पंजीकृत हो रही हैं, जहाँ उन्हें अधिक स्पष्ट नियामक वातावरण और पूंजी तक आसान पहुँच मिलती है।

ब्लूम वेंचर्स के उपाध्यक्ष जोसेफ सेबेस्टियन ने सुझाव दिया कि भारत को “क्रमिक और प्रयोगात्मक” दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। उनका मानना है कि पहला कदम अमेरिकी डॉलर आधारित स्टेबलकॉइन के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय प्रेषण की अनुमति देना हो सकता है जिससे न केवल स्टार्टअप्स को राहत मिलेगी बल्कि विदेशी निवेशकों का भरोसा भी बढ़ेगा।

कई विशेषज्ञों का मानना ​​है कि भारत के इस रुख को दो तरह से देखा जा सकता है। एक ओर, यह रणनीतिक संयम है जहाँ देश अपने वित्तीय तंत्र की स्थिरता और उपभोक्ता सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहा है, ताकि किसी भी संभावित वित्तीय अस्थिरता से बचा जा सके।

दूसरी ओर, यह नीतिगत मौन भी है जो अवसरों के छूटने का कारण बन सकता है। क्रिप्टोकरेंसी और ब्लॉकचेन तकनीक केवल सट्टेबाज़ी के उपकरण नहीं, बल्कि भविष्य की वित्तीय संरचना का हिस्सा बनती जा रही है। बाकी दुनिया जब यह तय कर रही है कि क्रिप्टो को कैसे विनियमित किया जाए, भारत फिलहाल इस बातचीत से दूर है और यही दूरी सबसे बड़ा संदेश देती है।

दिशा तय करने का समय

भारत की फिनटेक शक्ति निर्विवाद है। भुगतान, UPI, डिजिटल पहचान और डेटा इकोसिस्टम में उसकी सफलता एक मिसाल है। लेकिन क्रिप्टो और ब्लॉकचेन पर यह लंबा मौन उसके टेक्नोलॉजिकल नेतृत्व को सीमित कर सकता है।

आवश्यकता है संतुलित नियमन की जो नवाचार को प्रोत्साहन दे और साथ ही उपभोक्ता और वित्तीय स्थिरता की रक्षा करे। भारत के पास दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल बाजार और सबसे युवा तकनीकी प्रतिभा का लाभ है। अगर वह इस ऊर्जा को सही दिशा दे सके, तो आने वाला दशक केवल फिनटेक इनोवेशन का नहीं बल्कि वित्तीय स्वायत्तता का भी हो सकता है।

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