वित्तीय और क्रिप्टो उद्योग के प्रमुख प्रतिनिधियों ने बीएसएफआई समिट 2025 के दौरान भारत से कहा है कि डिजिटल परिसंपत्ति (क्रिप्टो) क्षेत्र में नियमावली बनाने में देरी नुकसानदेह हो सकती है। इस आयोजन के पैनल ‘भारत का क्रिप्टो मोड़: नीति पुनर्विचार का समय?’ में उपस्थित वक्ताओं ने यह भी सुझाव दिया कि भारत को जल्द से जल्द एक रुपये-समर्थित स्टेबलकॉइन प्रस्तावित करना चाहिए ताकि इसकी मौद्रिक सम्प्रभुता सुरक्षित बनी रहे।
नियमावली में सुधार की आवश्यकता पर बल
इस पैनल में CoinDCX के सह-संस्थापक एवं सीईओ सुमित गुप्ता ने कहा कि भारत के पास क्रिप्टो नवाचार और प्रतिभाओं को बनाए रखने का अब महत्वपूर्ण समय है। उन्होंने बताया कि अज्ञात नियमों के कारण कई प्रतिभाशाली स्टार्टअप्स और संस्थाएँ विदेश जा चुकी हैं।
दूसरी ओर, Binance एशिया-प्रशांत हेड एस बी सेकर ने यह दर्शाया कि नियामक संरचना जितनी शीघ्रता से स्पष्ट होगी, उतनी ही तेजी से यह क्षेत्र आगे बढ़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि इसके लिए नया नियामक संस्था बनाना जरूरी नहीं, पहले से मौजूद संस्थाओं में बदलाव पर्याप्त हो सकता है।
रुपये-समर्थित स्टेबलकॉइन की वकालत
समिट के दौरान विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि भारत को एक रुपये-समर्थित स्टेबलकॉइन (INR Stablecoin) विकसित करना चाहिए, जो डिजिटल भुगतान और अंतरराष्ट्रीय व्यापार दोनों में नई संभावनाएँ खोल सकता है। यह विचार इसलिए भी महत्वपूर्ण माना गया क्योंकि इससे भारत अपनी मौद्रिक सम्प्रभुता को बनाए रखते हुए वैश्विक क्रिप्टो इकोसिस्टम में प्रतिस्पर्धी भूमिका निभा सकता है।
Bharat Web3 Association के अध्यक्ष दिलीप चेनॉय ने कहा कि ऐसा स्टेबलकॉइन भारत के लिए “डिजिटल यूपीआई 2.0” जैसा साबित हो सकता है। उनके अनुसार, यदि सरकार और नियामक संस्थाएँ इसे सही ढंग से लागू करें, तो यह ब्लॉकचेन आधारित भुगतान प्रणाली को सरल, सस्ता और पारदर्शी बना देगा। यह न केवल घरेलू स्तर पर डिजिटल लेन-देन को तेज करेगा, बल्कि भारतीय प्रवासियों (NRI) के लिए भी सीमा-पार भुगतान को अधिक आसान बना सकता है।
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चेनॉय ने यह भी कहा कि रुपये से जुड़ा स्टेबलकॉइन भारतीय स्टार्टअप्स को विदेशी फंडिंग और ट्रेड से जोड़ने में मदद करेगा, जिससे भारत का वेब3 और फिनटेक सेक्टर वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूत हो सकेगा। उनके अनुसार, ऐसा कदम भारत को एशिया में डिजिटल मुद्रा नवाचार का केंद्र बनाने की दिशा में एक निर्णायक शुरुआत हो सकता है।
चुनौतियाँ और आगे की राह
हालाँकि यह कदम सकारात्मक है, लेकिन नियामक और परिचालन चुनौतियाँ अब भी मौजूद हैं। जैसे विदेशी स्थिरकॉइन्स का प्रभाव, क्रॉस-बॉर्डर लेन-देन की जटिलताएँ और मौद्रिक नीति पर प्रभाव। पैनल में यह स्वीकार किया गया कि भारत को इन विषयों को ध्यान में रखते हुए एक गति-युक्त लेकिन संतुलित नीति अपनानी होगी।
भारत की उलझी हुई नीति और नया न्यायिक संकेत
पिछले कुछ वर्षों में भारत की क्रिप्टो नीति लगातार अस्पष्ट रही है। जहाँ भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कई बार यह कहा है कि वह निजी डिजिटल मुद्राओं को मान्यता नहीं देगा, वहीं सेबी (SEBI) ने इस क्षेत्र के नियमन में रुचि दिखाई है। सरकार ने अभी तक किसी स्पष्ट ढांचे की घोषणा नहीं की है, जिससे निवेशकों और स्टार्टअप्स में असमंजस बना हुआ है।
इसी बीच, मद्रास हाई कोर्ट के हालिया फैसले ने क्रिप्टोकरेंसी को भारतीय कानून के तहत “संपत्ति” के रूप में मान्यता देकर एक महत्वपूर्ण उदाहरण पेश किया है। अदालत ने कहा कि डिजिटल परिसंपत्तियों को स्वामित्व में रखा जा सकता है और उन्हें कानूनी संरक्षण प्राप्त है। यह फैसला भारत में डिजिटल संपत्तियों की दिशा तय करने वाला एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
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