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Rajeev RRajeev R

IMF और World Bank की रिपोर्ट में भारत की तारीफ़, अर्थव्यवस्था हुई और अधिक मज़बूत, लचीली और समावेशी

वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत ने विकास की गति बनाए रखी; अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने वित्तीय समावेशन, डिजिटल ढाँचे और सुधारों को बताया मज़बूती की रीढ़।

IMF और World Bank की रिपोर्ट में भारत की तारीफ़, अर्थव्यवस्था हुई और अधिक मज़बूत, लचीली और समावेशी
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वैश्विक अर्थव्यवस्था के अस्थिर दौर में भारत ने अपनी विकास यात्रा को न केवल बरकरार रखा है बल्कि उसे और अधिक व्यापक और समावेशी भी बनाया है। ऐसा कहना है अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक का।

हाल में जारी रिपोर्ट्स में दोनों संस्थाओं ने स्वीकार किया कि भारत की अर्थव्यवस्था ने वैश्विक चुनौतियों, महंगाई दबाव और व्यापारिक अनिश्चितताओं के बावजूद उल्लेखनीय लचीलापन दिखाया है।

रिपोर्टों के अनुसार, वित्तीय समावेशन, डिजिटल सार्वजनिक ढाँचे और बैंकिंग-वित्तीय क्षेत्र में सुधारों ने भारत को दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है।

विश्व बैंक की ‘Financial Sector Assessment (FSA)’ रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि भारत की वित्तीय प्रणाली 2017 के पिछले आकलन की तुलना में कहीं बेहतर स्थिति में है। 

बैंकिंग, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) और समेकित वित्तीय निगरानी में सुधार हुआ है। रिपोर्ट में विशेष रूप से यह कहा गया है कि डिजिटल सार्वजनिक आधारभूत संरचना और सरकारी कार्यक्रमों ने महिलाओं समेत व्यापक जनसंख्या को वित्तीय सेवाओं तक पहुँच देने में अहम भूमिका निभाई है।

जहाँ तक अब तक की प्रगति का सवाल है, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी भारत की वृद्धि दर को पुनर्मूल्यांकन किया है। इसने माना है कि भारत वैश्विक चुनौतियों और व्यापार नीतियों की अनिश्चितता के बावजूद अपनी गति बनाए रखने में सक्षम रहा है।

किन कारणों से आया यह बदलाव?

वित्तीय समावेशन का विस्तार: डिजिटल बैंकिंग, जन-धन खातों की संख्या, को-ऑपरेटिव बैंकों पर निगरानी का विस्तार और NBFCs के लिए पैमाना-आधारित विनियमन जैसी पहलें शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि को-ऑपरेटिव बैंकों पर नियंत्रण बढ़ा है, प्रूडेंशियल नियम सख्त हुए हैं और बैंक-NBFC नियोजन में सुधार हुआ है।

वित्तीय बाजारों का विस्तार: इक्विटी, सरकारी बॉन्ड और कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजारों का आकार जीडीपी के अनुपात में बढ़ा है। विविध निवेशक संरचना व बेहतर बुनियादी ढाँचे ने इस विस्तार में योगदान दिया है।

मजबूत घरेलू मांग व सेवा-क्षेत्र का योगदान: विशेष रूप से सेवाएँ और कृषि क्षेत्र ने त्वरित गति दिखाई है, जिसने वैश्विक मंदी और निर्यात दबाव के बावजूद अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में सहायता की है।

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चुनौतियाँ व सुझाव

हालाँकि सुधार हुए हैं, लेकिन रिपोर्ट्स यह भी चेतावनी देती है कि आगे बढ़ने के लिए निरंतर सुधार आवश्यक है। विश्व बैंक ने कहा है कि 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनने के दृष्टि से वित्तीय क्षेत्र में और तेजी से सुधार की आवश्यकता है। 

बैंक एवं NBFC प्रणालियों में उधार जोखिम प्रबंधन को और बेहतर करना होगा। महिलाओं, ग्रामीण एवं वंचित वर्गों की वित्तीय पहुँच में वृद्धि करना अनिवार्य है, क्योंकि अभी भी सामाजिक एवं क्षेत्रीय असमानताएँ मौजूद है।

इन रिपोर्ट्स का अर्थ यह है कि भारत ने आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करते हुए लचीलापन दिखाया है। फिस्कल व मौद्रिक नीतियों ने घरेलू मांग को सहारा दिया है, और वित्तीय समावेशन व डिजिटल सेवाओं ने व्यापक-स्तर पर विकास को बढ़ावा दिया है।

यदि यह रुझान बना रहा, तो भारत न केवल त्वरित वृद्धि दर हासिल कर सकता है बल्कि इस वृद्धि को *समावेशी* तरीके से सुनिश्चित कर सकता है। अर्थात् लाभ-प्राप्ति को सिर्फ बड़े बज़ारों या बड़ी कंपनियों तक सीमित न रखकर समाज के सभी हिस्सों में पहुंचाना।

हालाँकि वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की चुनौतियाँ और निवेश व पूंजी प्रवाह में व्यवधान इस मार्ग में रोड़े अटका सकते हैं। इस सिलसिले में, नीति-निर्माताओं को इन जोखिमों का पूर्वानुमान करके रणनीति बनानी होगी।

निष्कर्ष

विश्व बैंक और आईएमएफ की ताज़ा रिपोर्टें इस तथ्य की पुष्टि करती है कि भारत की अर्थव्यवस्था अब वैश्विक झटकों को झेलने में सक्षम, अधिक सुदृढ़ और जनकेंद्रित हो चुकी है। सुधारों की निरंतरता, वित्तीय अनुशासन और समावेशी नीतियों के बल पर भारत ने विकास का ऐसा मॉडल प्रस्तुत किया है जो स्थायित्व और सहभागिता, दोनों का संतुलन साधता है।

यदि यह गति और दिशा बनी रही, तो ‘विकसित भारत 2047’ का लक्ष्य केवल आकांक्षा नहीं बल्कि प्राप्ति की दिशा में ठोस कदम सिद्ध हो सकता है।

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