भारत के डिजिटल-एसेट परिदृश्य में एक ऐतिहासिक मोड़ आया है। मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में WazirX से जुड़े एक मामले में क्रिप्टोकरेंसी को संपत्ति के रूप में मान्यता दी है।
अदालत ने कहा कि निवेशक के पास मौजूद टोकन उसकी अपनी परिसंपत्ति है, जिन्हें किसी सामूहिक घाटे की भरपाई के लिए पुनर्वितरित नहीं किया जा सकता। यह फैसला न केवल निवेशकों के लिए सुरक्षा कवच प्रदान करता है, बल्कि एक्सचेंजों को भी विश्वासी जिम्मेदारियों के दायरे में लाता है।
WazirX और उसकी ऑपरेटर कंपनी ज़ैनमाई लैब्स जुलाई 2023 में एक साइबर हमले का शिकार हुई थी, जिसमें लगभग 235 मिलियन डॉलर के डिजिटल एसेट चोरी हो गए थे।
नुकसान की भरपाई के लिए एक्सचेंज ने सिंगापुर में “सोशलाइजेशन ऑफ लॉसेज़” यानी सभी निवेशकों पर समान भार डालने की योजना बनाई, जिसे वहां की अदालत ने मंजूरी दे दी।
लेकिन भारत की एक निवेशक ने इसे चुनौती दी। उसने कहा कि उसके पास मौजूद 3,532.30 XRP टोकन चोरी हुए एसेट से अलग हैं और उसकी व्यक्तिगत होल्डिंग को दूसरों के नुकसान की भरपाई में शामिल नहीं किया जा सकता।
मद्रास हाईकोर्ट ने उसकी दलील को स्वीकारते हुए कहा कि
इसमें कोई संदेह नहीं कि क्रिप्टोकरेंसी एक संपत्ति है। यह मूर्त नहीं है, न ही यह मुद्रा है, लेकिन यह ऐसी परिसंपत्ति है जिसे लाभकारी रूप से धारण और उपयोग किया जा सकता है।”
अदालत ने आगे यह भी स्पष्ट किया कि क्रिप्टो टोकन पहचान योग्य, हस्तांतरणीय और निजी नियंत्रण में रहने योग्य है, ऐसे गुण जो किसी संपत्ति के अधिकारों से मेल खाता है।
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निवेशकों के लिए बड़ा संदेश
इस फैसले का सबसे बड़ा निहितार्थ यह है कि निवेशक अब अपने डिजिटल एसेट पर कानूनी स्वामित्व का दावा कर सकते हैं। एक्सचेंज अब उपयोगकर्ताओं की होल्डिंग्स को एक साझा पूल की तरह नहीं मान सकते।
इसके साथ ही, अगर किसी प्लेटफ़ॉर्म में साइबर हमला हो या निवेशक की संपत्ति फ्रीज़ कर दी जाए, तो वह अदालत में “संपत्ति के हनन” के रूप में राहत मांग सकता है।
कानूनी विशेषज्ञ प्रशांत रामदास (खैतान एंड कंपनी) के अनुसार,
कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि क्रिप्टो न तो फिएट करेंसी है, न सिक्योरिटी, लेकिन यह ‘कुछ नहीं’ भी नहीं है। यह कानूनी रूप से संपत्ति है, जिसे स्वामित्व और लाभकारी उपयोग के अधिकारों के साथ धारण किया जा सकता है।
कानूनी और नीतिगत प्रभाव
यह फैसला भले अंतरिम हो लेकिन इसके प्रभाव व्यापक हैं। पहली बार किसी भारतीय अदालत ने यह कहा कि क्रिप्टो एसेट्स को ट्रस्ट में रखा जा सकता है और एक्सचेंजों पर अपने ग्राहकों के प्रति फिड्यूशियरी दायित्व है।
इसका मतलब है कि प्लेटफॉर्म को अब उपयोगकर्ताओं की संपत्तियों को अलग-अलग सुरक्षित रूप में रखना होगा और बिना कारण उन्हें फ्रीज़ या पुनर्वितरित नहीं किया जा सकता।
कानूनी विश्लेषक राजर्षि दासगुप्ता (AQUILAW) कहते हैं, “यह फैसला निवेशकों को संपत्ति कानून के तहत नए उपाय देता है जैसे ट्रस्ट क्लेम, निषेधाज्ञा और दुरुपयोग पर क्षतिपूर्ति के अधिकार। यह केवल अनुबंध या नियामकीय सीमाओं से परे एक मजबूत सुरक्षा ढांचा बनाता है।”
इसके अलावा, अदालत ने यह भी संकेत दिया कि भारतीय न्यायालय विदेशी पुनर्गठन या आर्बिट्रेशन मामलों में भी घरेलू निवेशकों के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं, जिससे निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा कि उनका हक भारत में लागू हो सकता है, चाहे प्लेटफॉर्म ऑफशोर क्यों न हो।
कर और उत्तराधिकार पर प्रभाव
क्रिप्टो को संपत्ति मानने से इसके कर और उत्तराधिकार पर भी प्रभाव पड़ता है। पहले से ही आयकर अधिनियम के तहत वर्चुअल डिजिटल एसेट (VDA) पर 30% की दर से कर लगाया जाता है, लेकिन अब इसे संपत्ति के रूप में स्वीकारे जाने से यह दृष्टिकोण और मजबूत होता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अब क्रिप्टो को सालाना परिसंपत्ति विवरण, उत्तराधिकार योजनाओं, और उपहार या विरासत के मामलों में शामिल करना पड़ेगा। इससे यह संकेत मिलता है कि डिजिटल एसेट्स अब किसी व्यक्ति की संपत्ति प्रोफ़ाइल का औपचारिक हिस्सा बन चुके हैं।
उद्योग जगत की प्रतिक्रिया
भारतीय एक्सचेंजों ने इस फैसले का स्वागत किया है। मड्रेक्स के सीईओ एडुल पटेल के शब्दों में,
यह फैसला निवेशकों के स्वामित्व अधिकारों को मजबूत करता है और एक्सचेंजों को जवाबदेह बनाता है। इससे भारतीय बाजार में पारदर्शिता, सुरक्षा और कानूनी भरोसा बढ़ेगा।
उनका मानना है कि अब सरकार और नियामकों के पास डिजिटल एसेट्स के लिए एक संरचित नियामक ढांचा तैयार करने का दबाव बढ़ेगा। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले महीनों में क्रिप्टो संरक्षण, रिपोर्टिंग मानकों, और KYC-AML नियमों पर स्पष्ट दिशानिर्देश जारी हो सकते हैं।
आगे की राह
मद्रास हाईकोर्ट का फैसला भले अभी एक राज्य की सीमा तक लागू हो, लेकिन यह भारत में डिजिटल-एसेट कानून के लिए एक मिसाल बन गया है। यह फैसला क्रिप्टो को न तो अवैध मुद्रा घोषित करता है, न उसे अनियंत्रित जोखिम मानता है, बल्कि उसे एक वैध संपत्ति वर्ग के रूप में स्वीकार करता है।
हालांकि यह अभी पूर्ण वैधानिक ढांचा नहीं है, परंतु यह एक ऐसा आधार तैयार करता है जिस पर भारत की भावी क्रिप्टो नीति खड़ी हो सकती है। फिर भी यह फैसला दिखाता है कि क्रिप्टो एक अमूर्त संपत्ति है जिसे धारण और आनंदित किया जा सकता है।
अंततः, इस फैसले ने क्रिप्टो निवेश को सट्टा से संपत्ति की श्रेणी में स्थानांतरित कर दिया है। अब भारत में डिजिटल एसेट धारकों को केवल तकनीकी या कर संबंधी नहीं, बल्कि कानूनी स्वामित्व और सुरक्षा का अधिकार भी मिल गया है, जो आने वाले वर्षों में भारतीय क्रिप्टो इकोसिस्टम के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।
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