भारत के विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) में सप्ताह के अंत 26 सितंबर, 2025 तक $2.334 अरब की गिरावट दर्ज हुई और कुल भंडार घटकर $700.236 बिलियन रह गया है। खासकर विदेशी करेंसी एसेट्स (Foreign Currency Assets) में $4.393 अरब की कमी ने कुल भंडार पर प्रमुख प्रभाव डाला, जबकि सोने के भंडार में वृद्धि ने घाटे का हिस्सा थोड़ा कम किया। पिछले सप्ताह भी भंडार में पहले ही $396 मिलियन की गिरावट देखने को मिली थी।
आलोचनात्मक रूप से देखने पर यह गिरावट कई कारणों से व्याख्यायित की जा सकती है। संपत्ति में गिरावट का बड़ा हिस्सा विदेशी करेंसी एसेट्स की निकासी से जुड़ा है - यह वह हिस्सा है जिसमें केंद्रीय बैंक के पास रखी अमेरिकी डॉलर, यूरो, येन आदि में रखी बॉन्ड तथा सिक्योरिटीज़ शामिल होती हैं। ऐसे निकास कभी-कभी विदेशी निवेशकों के प्रवाह-पलट, अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तरलता की स्थितियों, या सरकारी/निजी भुगतानों के कारण होते हैं। चालू समय में वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और वॉर-टैरिफ़/ट्रेड शॉक जैसी घटनाओं ने भी विनिमय दरों और पूँजी प्रवाहों को प्रभावित किया है - इन बाहरी कारकों का असर केंद्रीय बैंक के भंडार पर परिलक्षित होता है।
हालाँकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) आंकड़ों में एक संतोषजनक पहलू यह भी है कि सोने के भंडार में वृद्धि हुई है - परंपरागत रूप से सोना रिजर्व की 'विविधता' और हेजिंग का एक साधन माना जाता है। आरबीआई ने कुछ हफ्तों में सोने के होल्डिंग बढ़ाकर विदेशी मुद्रा पोर्टफोलियो के जोखिम को संतुलित करने की रणनीति अपनाई है। साथ ही, विशेष आहरण अधिकार (SDR) और IMF में आरक्षित स्थिति में मामूली गिरावट भी रिकॉर्ड की गई, जो ध्यान देने योग्य है।
क्या आप जानते हैं — विश्लेषकों का कहना है कि बिटकॉइन कीमत का $300K लक्ष्य 'तेज़ी से बढ़ रहा है'
निगरानी के लिहाज़ से देखना ज़रूरी है कि भंडार का यह स्तर अर्थव्यवस्था की बहु-महीने की ज़रूरतों और भुगतान-संतुलन (current account) की अस्थिरताओं को कितनी अच्छी तरह संभाल सकता है। विशेषज्ञ आम तौर पर यही कहते हैं कि अगर भंडार देश के आयात और बाहरी देनदारियों के मुकाबले पर्याप्त हों तो अर्थव्यवस्था को झटकों से निबटने में आसानी रहती है। फिलहाल $700 अरब का स्तर बड़ा है और पिछले कुछ वर्षों में भारत की बचत-क्षमता और पूँजी प्रवाह के इतिहास को देखते हुए अभी भी तुलनात्मक मजबूत माना जा सकता है; परन्तु लगातार दो सप्ताह की गिरावट संकेत देती है कि बाहरी दबावों पर नजर रखनी होगी।
नीति-नियंत्रण के दृष्टिकोण से आरबीआई के पास विकल्प मौजूद हैं: विदेशी मुद्रा में हस्तक्षेप, बाजार में डॉलर-रुपया विनिमय को स्थिर रखना, या समयानुकूल बांड/रिसॉर्स अलोकेशन के जरिए अस्थिरता को कम करना। साथ ही, सरकार की निर्यात-नीतियाँ, विदेशी निवेश आकर्षित करने के कदम और अंतरराष्ट्रीय व्यापार समीकरण भी महत्वपूर्ण होंगे। RBI के गवर्नर के हालिया वाक्यों से यह स्पष्ट है कि बैंक आर्थिक मजबूती और मौद्रिक नीतिगत सतर्कता पर जोर दे रहा है।
निष्कर्ष
भंडार में दो सप्ताह की लगातार गिरावट अलार्म की घंटी नहीं है, पर सतर्क रहने का संकेत अवश्य देती है। $700 अरब के स्तर पर पहुँचकर भी भारत के पास वैश्विक झटकों से निपटने के लिहाज़ से पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं, मगर विदेशी करेंसी एसेट्स में तेज निकासी और वैश्विक अनिश्चितताओं ने ज़ाहिर किया कि नीति-निर्माताओं और बाजारों को निकट अवधि में सतर्क रहना होगा।
रीयल-टाइम प्रवाह, तेल-आयात मूल्य, और पूँजी प्रवाह के रुझान भविष्य में इस आंकड़े की दिशा तय करेंगे; इसलिए अगली साप्ताहिक RBI रिपोर्ट और बड़ी वैश्विक घटनाओं पर निगाह बनाए रखना आवश्यक है।
ऐसी ही और ख़बरों और क्रिप्टो विश्लेषण के लिए हमें X पर फ़ॉलो करें, ताकि कोई भी अपडेट आपसे न छूटे!