प्रमुख बिंदु

  • भारत ने अब तक निजी क्रिप्टोकरेंसी के खुले लेन-दे को बहुत स्वीकार नहीं किया है, लेकिन नीति में बदलाव की झलक दिख रही है।

  • देश में अभी क्रिप्टो या स्टेबलकॉइन पर स्पष्ट विनियामक रूपरेखा नहीं बनी है-यह ‘न तो पूरी तरह स्वीकार, न पूरी तरह निषेध’ की स्थिति में है।

  • यह बदलाव वैश्विक मुद्रा-परिदृश्य में आने वाले दबाव और टेक्नोलॉजिकल बदलाव के कारण हो रहा है, जहां क्रिप्टो तथा स्टेबलकॉइन तेजी से वित्तीय प्रवाह को बदल रहे हैं। 

भारत में डिजिटल मुद्रा को लेकर चल रही बहस अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में ही दिए एक भाषण में संकेत दिया कि देश को अब क्रिप्टोकरेंसी और स्टेबलकॉइन जैसे डिजिटल परिसंपत्तियों के साथ “संवाद और तैयारी” की दिशा में बढ़ना चाहिए।

यह बयान ऐसे समय आया है जब वैश्विक स्तर पर क्रिप्टो की स्वीकृति बढ़ रही है और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित कई बड़े नेता व संस्थान इसके पक्ष में खुलकर बोल रहे हैं। लंबे समय से सतर्क रवैया अपनाने वाला भारत अब उस चरण में है, जहां निषेध से आगे बढ़कर नियमन की दिशा में सोचने की आवश्यकता है, क्योंकि बदलते मौद्रिक परिदृश्य से खुद को अलग रखना अब संभव नहीं रहा।

जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि

नवोन्मेष जैसे स्टेबलकॉइन मुद्रा एवं पूँजी प्रवाह का परिदृश्य बदल रहे हैं; देश या नए मौद्रिक वास्तुकला को अपनाएगा या बहिष्करण का जोखिम उठाएगा,

तो यह संकेत था कि भारत ने अब तक जिन अटकलों को खारिज किया था, उनमें बदलाव आ रहा है।

भारत में निजी क्रिप्टोकरेंसी को लेकर लंबे समय से सतर्क रवैया रहा है। बैंकिंग प्रणाली में उनका इस्तेमाल सीमित रहा, और व्यापक विनियामक समाज-स्वीकृति नहीं मिली। इसके परिणामस्वरूप, देश में इस क्षेत्र में निवेश एवं विकास कुछ धीमी गति से रहा है। 

हालाँकि, वैश्विक मोर्चे पर वे बदलाव दिखने लगे हैं। उदाहरण के लिए, अन्य देशों में स्टेबलकॉइन को क्रॉस-बॉर्डर भुगतान, तेजी से लेन-दे और कम लागत वाले समाधान के रूप में देखा जा रहा है।

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भारत जैसे बड़े प्राप्तकर्ता-देश के लिए यह अवसर मायने रखता है। एक विश्लेषक के अनुसार,

भारत प्रतिवर्ष करीब $ 125 बिलियन का रेमिटेंस प्राप्त करता है; स्टेबलकॉइन इन शुल्कों को 6-7 % से 1-3 % तक कम कर सकते हैं।

परंतु, इस संभावित प्रवर्तन में चुनौतियाँ कम नहीं हैं। सबसे पहले, देश की मौद्रिक सत्ता जैसे RBI द्वारा जारी डिजिटल रूपए (CBDC), जिसे “e-रुपया” के नाम से जाना गया है - पहले ही इस्तेमाल में है। यदि निजी या विदेशी-बैक्ड स्टेबलकॉइन को अनुमति मिलती है, तो मौद्रिक नियंत्रण तथा वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं।

एक सरकारी दस्तावेज़ के अनुसार, “विनियमन करने से क्रिप्टोकरेंसी को वैधता मिल सकती है और यह प्रणालीगत हो सकती है।” इसके अलावा, वित्तीय साक्षरता, साइबर जोखिम, और अंतरराष्ट्रीय प्रमाण-मानदंडों की कमी जैसी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं।

भारत अब एक नए मोड़ पर खड़ा है, जहाँ उसे तय करना होगा कि वह केवल निषेध की नीति पर चलना जारी रखेगा या चरण-बद्ध तरीके से विनियमन तथा प्रयोग की दिशा में आगे बढ़ेगा। वित्त मंत्री के हालिया बयान इस बात को दर्शाते हैं कि सरकार निष्क्रिय नहीं रह सकती।

परन्तु जहाँ नीति में संकेत मिले हैं, वहीं व्यवहार में बहुत कम विकास हुआ है। पिछले सप्ताह घोषित बैंकिंग-वित्तीय सुधारों में क्रिप्टो या स्टेबलकॉइन का समावेश नहीं था।  इस तरह, भारत फिलहाल एक तरह से ‘प्रतीक्षा की स्थिति’ में है - ना पूरी तरह प्रतिबंधित, ना पूरी तरह अधिकृत।

निष्कर्ष

भारत को अब वक्त है तेजी से निर्णय लेने का: डिजिटल वित्तीय दुनिया में खड़े रहने के लिए या तो पीछे हटना मुमकिन नहीं, और चुपचाप बैठना भी आसान नहीं। जैसे वित्त मंत्री ने कहा -

चाहे हम इन बदलावों का स्वागत करें या ना करें, हमें तैयार होना ही है।

इसीलिए, देश के आगे का रास्ता स्पष्ट है - एक संतुलित, सुरक्षित, नियामक-संगत मार्ग जिसमें नवाचार और सावधानी दोनों का समावेश हो।यदि भारत इस मोड़ पर सक्रिय, विचारशील और समयबद्ध कदम उठाए, तो वह न सिर्फ परिवर्तन का हिस्सा बन सकता है, बल्कि डिजिटल मुद्रा युग में एक लाभकर्ता भी बन सकता है।

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