ब्लॉकचेन स्केलिंग नेटवर्क पॉलीगॉन और फिनटेक स्टार्टअप एएनक्यू भारत के डिजिटल वित्तीय इकोसिस्टम में एक ऐसे नवाचार पर काम कर रहे हैं जो पारंपरिक फिएट सिस्टम और आधुनिक ब्लॉकचेन संरचना के बीच सेतु का काम कर सकता है।

दस्तावेजों और सूत्रों के अनुसार, दोनों कंपनियां एसेट रिजर्व सर्टिफिकेट (ARC) नामक एक प्रस्तावित संप्रभु-समर्थित डिजिटल टोकन मॉडल विकसित कर रही हैं, जो भारत सरकार की सिक्योरिटीज, यानी G-Secs (गवर्नमेंट सिक्योरिटीज) और ट्रेजरी बिल्स के विरुद्ध जारी किया जाएगा।

इस मॉडल का उद्देश्य ऐसा डिजिटल एसेट तैयार करना है जो पूरी तरह से भारतीय रुपये के मूल्य से जुड़ा हो, लेकिन किसी भी प्रकार के सट्टेबाजी जोखिम से मुक्त रहे। सूत्रों के अनुसार, एआरसी को एक नियंत्रित, गैर-सट्टेबाजी डिजिटल टोकन के रूप में डिजाइन किया जा रहा है, जिसकी प्रत्येक इकाई संप्रभु ऋण उपकरणों द्वारा एक-से-एक समर्थित होगी।

इसका अर्थ यह है कि जारी किया गया प्रत्येक एआरसी टोकन भारतीय सरकार की वास्तविक वित्तीय संपत्ति के अनुरूप होगा जिससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि भारत की मौद्रिक संप्रभुता भी सुदृढ़ होगी।

सूत्र बताते हैं कि इस अवधारणा में डिजिटल टोकन का निर्माण सीधे सरकारी सिक्योरिटीज की खरीद से जुड़ा होगा। यह प्रणाली एक ऐसा तंत्र प्रस्तावित करती है जहां प्रत्येक डिजिटल टोकन किसी वास्तविक सरकारी एसेट से मेल खाता है। 

इससे सरकार के लिए घरेलू स्तर पर फंड जुटाने या उधार लेने की प्रक्रिया सरल और सस्ती हो सकती है, क्योंकि इससे सरकारी सिक्योरिटीज के लिए एक स्थायी मांग तैयार होगी।

ब्लॉकचेन इकोसिस्टम के जानकारों का कहना है कि इस तरह का मॉडल भारतीय पूंजी को ऑफशोर डॉलर-आधारित स्टेबलकॉइन्स की ओर जाने से रोक सकता है और इसके बजाय उसे देश के भीतर ही संप्रभु एसेट्स से जुड़ा रख सकता है। 

परिणामस्वरूप, यह न केवल भारतीय G-Sec मार्केट को गहरा कर सकता है बल्कि मौद्रिक स्वायत्तता को भी मजबूत करेगा।

दिलचस्प रूप से, एआरसी को भारत के सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) यानी ई-रुपी के पूरक पेमेंट लेयर के रूप में देखा जा रहा है।

प्रस्तावित ट्विन-रुपी आर्किटेक्चर के तहत, सीबीडीसी आरबीआई नियंत्रण में सेटलमेंट बैकबोन की भूमिका निभाएगा, जबकि एआरसी निजी खिलाड़ियों द्वारा नियंत्रित तेज, प्रोग्रामेबल और कम लागत वाले डिजिटल ट्रांजेक्शन को सक्षम करेगा।

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यह दो-स्तरीय मॉडल न केवल भुगतान प्रणाली को आधुनिक बनाएगा, बल्कि निजी क्षेत्र को नई वित्तीय तकनीक और उत्पादों के विकास में भी लचीलापन देगा।

सूत्रों का कहना है कि यह व्यवस्था सेंट्रल बैंक की मौद्रिक नीति पर पूर्ण नियंत्रण बनाए रखते हुए वित्तीय नवाचारों को प्रोत्साहित करने का अवसर प्रदान करेगी।

बेंगलुरु स्थित एएनक्यू के पास भारतीय वित्तीय विनियमन और डिजिटल नीति का गहरा अनुभव है। कंपनी ने पहले भी एमएसएमई लिक्विडिटी और वित्तीय समावेशन को सुधारने के लिए टोकनाइजेशन फ्रेमवर्क विकसित किया है।

दूसरी ओर, पॉलीगॉन जो वैश्विक स्तर पर अग्रणी ब्लॉकचेन स्केलिंग नेटवर्क्स में से एक है, इस साझेदारी में तकनीकी बुनियादी ढांचा और वैश्विक इंटरऑपरेबिलिटी लेकर आएगा। इस तरह, दोनों कंपनियां मिलकर वैश्विक तकनीकी क्षमता और भारतीय नीति दृष्टिकोण का एक अनूठा समावेश प्रस्तुत कर रही हैं।

यह विकास ऐसे समय पर सामने आया है जब पॉलीगॉन के सह-संस्थापक संदीप नेलवाल ने हाल ही में ईटी वर्ल्ड लीडर्स फोरम में कहा था कि भारत अगले कुछ महीनों में अपना खुद का स्टेबलकॉइन लॉन्च कर सकता है।

सूत्रों के अनुसार, एआरसी इसी दिशा में एक ठोस कदम हो सकता है लेकिन पारंपरिक स्टेबलकॉइन से एक महत्वपूर्ण भिन्नता के साथ। यह पूरी तरह से संप्रभु एसेट्स द्वारा कोलेटरलाइज्ड होगा।

फ्रेमवर्क से परिचित एक सूत्र ने कहा,

यह एक और क्रिप्टो कॉइन नहीं है। यह एक संप्रभु-समर्थित डिजिटल इंस्ट्रूमेंट है। उद्देश्य यह है कि टोकनाइजेशन भारत की बैलेंस शीट को मजबूत करने का उपकरण बने, किसी और के लिए नहीं।

इस प्रस्ताव के पीछे का बड़ा विचार एक ऐसा अनुपालनयुक्त, पारदर्शी और विश्वसनीय ब्लॉकचेन मॉडल तैयार करना है जो वित्तीय व्यवस्था को आधुनिक रूप देते हुए भी भारत की मौद्रिक अखंडता को पूरी तरह बरकरार रखे। 

यदि यह प्रयोग सफल रहता है, तो भारत टोकनाइज्ड मनी की वैश्विक दौड़ में अग्रणी स्थान पा सकता है। ऐसा सिस्टम, जहां डिजिटल एसेट्स का मूल्य सट्टेबाजी पर नहीं, बल्कि वास्तविक सरकारी संपत्तियों पर आधारित हो, वैश्विक स्तर पर भारत की वित्तीय पहचान को पुनर्परिभाषित कर सकता है।

भविष्य में एआरसी न केवल रेमिटेंस को सरलबना सकता है बल्कि बॉन्ड मार्केट को भी गहराईप्रदान करेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह मॉडल एक ऐसाभारतीय स्टेबलकॉइनपेश कर सकता है जो नियमन पर आधारित हो, जोखिम पर नहीं, और जिसकी नींव भारत की संप्रभु विश्वसनीयतापरटिकीहो।

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