भारत की राजकोषीय गतिविधियों में एक नई लहर दिखाई दे रही है। भारत सरकार ने इस वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से 10 नवंबर तक) के शुरुआती सात-आठ महीनों में Direct Tax की नेट कलेक्शन में 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है, जो लगभग ₹12.92 लाख करोड़ तक पहुँच गई है।

इस पूरी उछाल के पीछे दो प्रमुख कारक हैं। पहला, बड़ी कंपनियों द्वारा बढ़ती कॉर्पोरेट कर की अदायगी, और दूसरा, टैक्स रिफंड्स के स्तर में हुई गिरावट। इस अवधि में सकल डायरेक्ट टैक्स संग्रह (रिफंड्स कटने से पहले) लगभग ₹15.35 लाख करोड़ रहा, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में ₹15.03 लाख करोड़ था।

लेकिन असल में राजस्व बढ़ने का बड़ा श्रेय जाता है रिफंड्स की कटौती को। इस अवधि में सरकार द्वारा जारी किए गए टैक्स रिफंड्स लगभग ₹2.42 लाख करोड़ रहे, जो पिछले साल के इसी समय की तुलना में लगभग 18 प्रतिशत कम है।

कॉर्पोरेट कर

विस्तार से देखें तो कॉर्पोरेट कर (नेट) संग्रह लगभग ₹5.37 लाख करोड़ रहा, जो पिछले वर्ष की समान अवधि के ₹5.08 लाख करोड़ से ऊपर है। इसके साथ-साथ, गैर-कॉर्पोरेट कर (व्यक्तिगत आयकर, HUFs आदि) संग्रह भी बेहतर हुआ। यह लगभग ₹7.19 लाख करोड़ रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में (₹6.62 लाख करोड़) बढ़ा हुआ है।

सरकार ने इस वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए डायरेक्ट टैक्स संग्रह का लक्ष्य ₹25.20 लाख करोड़ रखा है, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 12.7 प्रतिशत अधिक है।

इस कहानी में एक दिलचस्प मोड़ यह भी है कि सकल वृद्धि ज्यादातर सीमित रही, केवल 2–3 प्रतिशत जबकि नेट वृद्धि 7 प्रतिशत तक देखने को मिली। इसका प्रमुख कारण है रिफंड्स में कमी, जिन्होंने सरकार की कटौती को बढ़ावा दिया। दूसरी ओर, कर अनुपालन में सुधार, बड़ी कंपनियों की बेहतर आय और कर प्रशासन में डिजिटल बदलाव ने भी भूमिका निभाई है।

यह संकेत देता है कि सरकार ने टैक्स प्रशासन को सक्रिय किया है, जैसे कि बड़े लेन-देनों पर निगरानी बढ़ाना, करदाता अनुपालन को प्रोत्साहित करना तथा समय-समय पर रिफंड प्रक्रिया को परखना। इन सबका परिणाम यह हुआ कि वास्तविक में सरकार के पास उपलब्ध राजस्व यानी नेट संग्रह में वृद्धि हुई।

चुनौतियाँ

हालाँकि, चुनौतियाँ अभी भी मुँह बाये खड़ी हैं। सकल वृद्धि धीमी है, इसलिए यदि रिफंड्स अचानक बढ़ जाएँ तो नेट संग्रह पर दबाव आ सकता है। इसके अतिरिक्त, विश्व-आर्थिक परिस्थितियाँ, वैश्विक व्यापार में उतार-चढ़ाव, कंपनियों की मुनाफाखोरी आदि भविष्य की राह में रोक हो सकते हैं।

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जहाँ एक ओर निष्पक्ष और समयानुसार रिफंड्स देना जरूरी है, वहीं दूसरी ओर कर संग्रह की विश्वसनीयता और अनुपालन की गति को भी बनाए रखना अतिआवश्यक है। इस संतुलन में सफलता ही यह सुनिश्चित करेगी कि अब-आगे सरकार अपने सामाजिक-योजना लक्ष्यों को पूरा कर सके, विकास के पथ को निरन्तर आगे बढ़ा सके और अर्थव्यवस्था को स्थायित्व प्रदान कर सके।

आर्थिक प्रगति और कर संग्रह

किसी भी देश की आर्थिक प्रगति और सामाजिक विकास के लिए tax collection अत्यंत आवश्यक होता है। भारत जैसे विशाल और विविधताओं वाले देश में कर व्यवस्था न केवल सरकार के लिए राजस्व का मुख्य स्रोत है, बल्कि यह राष्ट्रीय विकास की आधारशिला भी है। 

करों से प्राप्त धन का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रक्षा, आधारभूत संरचना, स्वच्छता और सामाजिक कल्याण योजनाओं में किया जाता है। जब नागरिक ईमानदारी से कर अदा करते हैं, तो सरकार के पास इतनी क्षमता होती है कि वह जनहित के कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू कर सके।

भारत में कर संग्रह का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यहाँ बड़ी जनसंख्या के साथ आर्थिक असमानता मौजूद है। कर प्रणाली इस असमानता को कम करने का माध्यम भी बनती है। धनवान वर्ग से अधिक कर लेकर उसे गरीबों के कल्याण में लगाया जा सकता है। कर अनुशासन से सरकार की वित्तीय स्थिरता बनी रहती है, जिससे मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और रोजगार सृजन को भी बढ़ावा मिलता है।


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