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संसद का शीतकालीन सत्र शुरू, सियासी तानातानी पहले दिन ही दिखी

आज (1 दिसंबर 2025) से शुरू हुए शीतकालीन सत्र में सरकार की कानून-व्यवस्था और निर्वाचन-संशोधन मुख्य एजेण्डा है। विपक्ष ने Special Intensive Revision (SIR) को लेकर सत्र का बहिष्कार करने की चेतावनी दी है।

संसद का शीतकालीन सत्र शुरू, सियासी तानातानी पहले दिन ही दिखी
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आज से शुरू हुआ शीतकालीन सत्र (1-19 दिसंबर) विधायी और राजनीतिक मोर्चे पर संवेदनशील मुद्दों के बीच आ रहा है। संसद के चालू कैलेंडर के अनुसार यह सत्र कुल 15 बैठकों में चलेगा और सरकार ने प्रमुख विधेयकों को पारित कराने की योजना बनाई है, जिनमें प्रशासनिक सुधार, परमाणु ऊर्जा से जुड़े प्रस्ताव और अन्य लंबित कानून शामिल हैं। सत्र की आधिकारिक घोषणा और तारीखों की पुष्टि पार्लियामेंटरी अफेयर्स मंत्रालय द्वारा की गई है।

सरकार ने सत्र के अजेंडा पर तेज़ी से काम करने का इरादा जताया है। आधिकारिक सूचनाओं के मुताबिक 13 प्रमुख बिलों को इस समयावधि में उठाने का अनुमान है, जो केंद्र सरकार की नीति-प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण माने जा रहे हैं। इन बिलों में कुछ ऐसे भी हैं जिनका प्रभाव प्रशासनिक तंत्र और नागरिक जीवन पर स्पष्ट रूप से दिखेगा, इसलिए विपक्ष भी इन्हें लेकर सत्र में चुनौतियाँ पेश कर सकता है।

संसद केवल औपचारिकता नहीं

सत्र की शुरआत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया से कहा कि संसद केवल औपचारिकता नहीं बल्कि राष्ट्र की प्रगति के लिए नई ऊर्जा देने वाला मंच है। उन्होंने सदनों को नए सांसदों और पहली बार आए प्रतिनिधियों को सुनने का अवसर देने का आग्रह किया और शून्य रुकावट की अपील की। सरकार का रुख है कि सत्र में सुव्यवस्थित ढंग से बहस और विधायी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए।

फिर भी, पहले दिन ही सदनों में सियासी गर्माहट दिखी। विपक्षी दलों ने विशेष रूप से SIR (Special Intensive Revision) नामक मतदान-सूची सुधार अभ्यास को लेकर सरकार और चुनाव आयोग पर तीखे आरोप लगाए। कांग्रेस और अन्य विपक्षी घटक इसे नागरिकों पर दबाव और असंगतियों वाला कदम बताते हुए सदन में आक्रामक प्रदर्शन पर उतरे। दोनों सदनों में वॉकआउट और बार-बार की हंगामी स्थितियों के चलते कार्यवाही बाधित हुई और कुछ समय के लिए अवकाश घोषित करना पड़ा। यह संकेत है कि सत्र सरल विधायी मंजूरी की बजाय राजनीतिक टकराव का भी संघर्षक्षेत्र बनेगा।

दो स्तरों पर तनाव: नीति निर्माण और राजनीतिक प्रतिरोध

शीतकालीन सत्र पर दो स्तरों पर नज़र रखनी होगी, एक नीति निर्माण और दूसरा प्रतिरक्षा राजनीति। नीति स्तर पर 13 बिलों का परिचय और पारित करने का प्रयास केंद्र सरकार के लिए अवसर है कि वह अपने एजेंडा को संसद की मर्यादित प्रक्रिया से संवैधानिक मान्यता दे। इन विधेयकों का फोकस यदि प्रशासनिक सुधार, आर्थिक नीतियाँ और सुरक्षा-संबंधी मसलों पर केंद्रित रहा तो सरकार इसे अपनी प्राथमिकता कहेगी।

राजनीतिक स्तर पर SIR और संबंधित आरोप विपक्ष को एकजुट करने का मौका दे रहे हैं। यदि सरकार विपक्ष की संवेदनशीलताओं की ओर ध्यान नहीं देती तो विधायी कार्य धीमा पड़ सकता है। पहले दिन हुई अव्यवस्था यह संकेत देती है कि सत्र के दौरान स्थायी संवाद रूपरेखा या कम से कम कुछ समझौते बनाना आवश्यक होगा, ताकि घरेलू और वैश्विक चुनौतियों पर एक निर्बाध नीति चर्चा संभव हो सके।

मीडिया व सार्वजनिक प्रतिक्रिया दोनों पर भी सत्र का असर पड़ेगा। पारदर्शिता, चुनावी प्रक्रियाओं की संवेदनशीलता और नागरिक सुरक्षा जैसे मुद्दे जनधारणा को प्रभावित करेंगे। सरकारी व विपक्षी दावों के बीच संतुलन बनाना चुनौतिपूर्ण होगा। वहीं संसद में बहस का स्तर और उसका सार्वजनिक प्रसारण लोकतंत्र के लिये एक परीक्षा भी माना जाएगा।

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डिजिटल परिसंपत्तियों पर संभावित बहस

संसद डिजिटल परिसंपत्तियों, विशेषकर क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े मुद्दों  पर बहस कर सकती है, क्योंकि यह विषय राष्ट्रीय आर्थिक नीति, उपभोक्ता संरक्षण, कर संपत्ति और वित्तीय स्थिरता से सीधे जुड़ा हुआ है। क्रिप्टोकरेंसी जैसी विकेंद्रित डिजिटल संपत्तियाँ पारंपरिक बैंकिंग और नियामक ढांचे को चुनौती देती है।

इसलिए इनके जोखिमों जैसे मनी लॉन्ड्रिंग, धोखाधड़ी, अवैध लेन-देन पर संसदीय विमर्श आवश्यक है। साथ ही, ब्लॉकचेन तकनीक के संभावित लाभों, नवाचार, स्टार्टअप इकोसिस्टम और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत की भूमिका पर भी संसद में विचार हो सकता है।

भारत में केंद्रीय बैंक और विभिन्न सरकारी समितियाँ पहले ही इस विषय पर रिपोर्ट पेश कर चुकी है, पर व्यापक और स्पष्ट कानून बनाने का अधिकार संसद को ही है। इसलिए क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े नियमन, प्रतिबंध, कर ढांचा, निवेशक सुरक्षा तथा तकनीकी मानकों पर बहस न केवल संभव है, बल्कि एक स्थिर और पारदर्शी डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए अनिवार्य भी है।

निष्कर्ष

1-19 दिसंबर के बीच चलने वाला यह शीतकालीन सत्र न सिर्फ 13 प्रमुख विधेयकों के पारित होने की परीक्षा है, बल्कि लोकतांत्रिक संवाद और संस्थागत सहमति की भी कसौटी बनेगा। पहले दिन की मतभेदपूर्ण शुरुआत से स्पष्ट है कि सत्र में नीतिगत फैसलों के साथ-साथ राजनीतिक टकराव भी बने रहेंगे। दोनों पक्ष संवाद और पारदर्शिता को प्राथमिकता दें तो ही सार्थक कानून और सार्वजनिक विश्वास को सुरक्षित रखा जा सकता है।

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