अस्ताना इंटरनेशनल फाइनैंशल सेंटर (AIFC) के अंतर्गत, चल रहे ‘Astana Finance Days 2025’ के दौरान, अस्ताना वित्तीय सेवा प्राधिकरण (AFSA) ने यूएसडी-स्थिरकॉइन (USDT/USDC) में नियामक शुल्कों के भुगतान हेतु पहला पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस पहल का पहला हस्ताक्षरकर्ता क्रिप्टो एक्सचेंज Bybit रहा, जिसने एक मल्टीलेटरल मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MMoU) पर हस्ताक्षर किए।
एएफएसए (AFSA) की मुख्य कार्यकारी एवगेनिया बोगदानोवा का कहना है कि यह पहल डिजिटल वित्त में AIFC की संभावनाओं को बढ़ावा देने वाली अपनी तरह का पहला नियामक ढांचा बनकर उभर रही है। बायबिट की ओर से कहा गया कि पारंपरिक बैंक ट्रांसफर की तुलना में स्थिरकॉइन भुगतान त्वरित, किफायती और पारदर्शी विकल्प प्रस्तुत करता है, खासकर उन फर्मों के लिए जिनका मुख्य खजाना डिजिटल परिसंपत्तियों में होता है।
इस प्रणाली में भागीदारी AFSA की पात्रता आवश्यकताओं को पूरा करने और MMoU पर हस्ताक्षर करने पर निर्भर है। Bybit इस पहल की शुरुआत करने वाला पहला एजेंट बन गया, जिसने QR Pay और समर्पित स्थिरकॉइन वॉलेट समाधान प्रदान किया। विश्लेषकों जैसे Jesse Knutson (Bitfinex Securities) का मानना है कि यह कदम टोकनाइज्ड वित्तीय बाजारों को मजबूत करेगा और इस क्षेत्र में AIFC को एक अग्रणी डिजिटल वित्तीय केंद्र के रूप में स्थापित करेगा।
कज़ाखस्तान की डिजिटल परिसंपत्ति रणनीति में यह कदम केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (CBDC), स्टेबलकॉइन और डिजिटल वित्त की ओर उसके व्यापक दृष्टिकोण का हिस्सा है। सितंबर 2025 तक, AFSA ने डिजिटल टेंगे (डिजिटल टेनगे) के पूर्ण रोल-आउट की योजना बना रखी है, और देश पहले से ही डिजिटल परिसंपत्तियों और क्रिप्टो-खदान के क्षेत्र में सक्रिय है।
भारत में क्या यह मॉडल अपनाया जा सकता है?
भारत ने अभी तक स्थिरकॉइन को भुगतान के वैध साधन के रूप में मान्यता नहीं दी है। वर्तमान में, “वर्चुअल डिजिटल एसेट्स” (VDA) के रूप में यह केवल निवेश और कराधान के उद्देश्यों के लिए सीमित है, उपयोग हेतु कानूनी पहचान या भुगतान माध्यम नहीं। 2024-25 के वित्तीय वर्ष में भारत में क्रिप्टो लाभ पर 30% कर और 1% TDS लागू है।
क्या आप जानते हैं: सलमान खान भी नहीं बचा पाए भारत का क्रिप्टो सपना
इसके अलावा, सरकार और RBI ने सार्वजनिक CBDC (e-rupee) पर ध्यान केंद्रित किया है। RBI ने रिटेल और होलसेल e-₹ का सफलतापूर्वक पायलट शुरू कर रखा है, लेकिन निजी स्थिरकॉइन के लिए अभी कोई कानूनी ढांचा नहीं है।
भारत के लिए संभावित रास्ते
सिक्के अधिनियम: एक मॉडल मुद्राकोष (गैर-बाध्यकारी) जो क्रिप्टो एक्टिविस्ट्स के लिए नियामक ढांचा पेश करता है, और क्रिप्टो एसेट्स रेगुलेटरी अथॉरिटी (कारा) की संरचना का सुझाव देता है।
रुपया-समर्थित स्टेबलकॉइन पायलट: एक सुझाव के अनुसार, आरबीआई के प्रमाणित सैंडबॉक्स के माध्यम से निजी आईएनआर-पेग्ड स्टेबलकॉइन का पायलट शुरू किया जा सकता है, जो यूपीआई और ई-रुपये से इंटीग्रेट हो, और धीरे-धीरे-धीमे रेमिटेंस, एसएमई, और क्रॉस-बॉर्डर उपयोग के लिए सुझाव हो।
अमेरिका का उदाहरण (जीनियस एक्ट): अमेरिका ने स्थिर मुद्रा को लागू करने वाला जीनियस एक्ट पारित किया है, जिससे भारत पर इस क्षेत्र में प्रामाणिक स्पष्टता का दबाव बढ़ गया है।
निष्कर्ष
कज़ाखस्तान ने नियामक शुल्कों के भुगतान के लिए यूएसडी-स्थिरकॉइन अपनाकर डिजिटल वित्तीय नवाचार का एक निर्णायक कदम उठाया है। इसके माध्यम से तेज, किफायती और पारदर्शी भुगतान सुनिश्चित हो सकते हैं, खासकर डिजिटल परिसंपत्ति-द्वारा संचालित संस्थाओं के लिए।
भारत में, फिलहाल यह मॉडल लागू नहीं है, लेकिन RBI का e-rupee पायलट और प्रस्तावित नियामक सैंडबॉक्स इसे संभव बनाते हैं। COINS Act और Rupee-backed Stablecoin विचार इस दिशा में संकेत हैं। यदि उचित नियामक और फ्रेमवर्क तैयार हो जाए, तो भारत भी क्रॉस-बॉर्डर भुगतान, रेमिटेंस और वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में इसी दिशा में कदम बढ़ा सकता है। .
ऐसी ही और ख़बरों और क्रिप्टो विश्लेषण के लिए हमें X पर फ़ॉलो करें, ताकि कोई भी अपडेट आपसे न छूटे!