भारत की थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित महंगाई दर सितंबर 2025 में साल दर साल 0.13 %  तक सीमित रही, जो अगस्त में दर्ज 0.52 % की दर से काफी नीचे है।

यह गिरावट मुख्यतः खाद्य और ईंधन व ऊर्जा की कीमतों में कमी से प्रेरित रही। सितंबर में खाद्य महंगाई –1.99 % दर्ज की गई, जबकि सब्जियों की कीमतों में भारी गिरावट, 24.41 % वर्ष दर वर्ष, देखी गई।

ईंधन एवं बिजली की कीमतों में भी गिरावट दर्ज की गई, जिनकी वार्षिक कमी 2.58 % रही (अगस्त में यह 3.17 % थी)। वहीं, निर्मित वस्तुओं (manufactured products) की महंगाई दर रही 2.33 %, जो अगस्त में 2.55 % थी, यानी इसमें भी बढ़ोतरी की गति सुस्त पड़ी।

क्या है संकेत?

यह आंकड़ा बताता है कि थोक स्तर पर मुद्रास्फीति दबाव फिलहाल कम है। खाद्य और ऊर्जा वस्तुओं की मूल दरों में गिरावट रही है, जो थोक बाजारों की कीमतों को समेकित रूप से नीचे खींच रही है। हालांकि निर्मित वस्तुओं का महंगाई स्तर अभी भी पॉजिटिव जोन में है, लेकिन इसकी वृद्धि धीमी हो गई है।

जुलाई 2025 में थोक महंगाई दर –0.58 % दर्ज की गई थी, जो दो महीने तक निगेटिव क्षेत्र में रही। जून 2025 में यह दर –0.13 % पर पहुँच गई थी। मई 2025 में WPI महंगाई 0.39 % थी।

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ये संकेत देते हैं कि थोक स्तर पर मुद्रास्फीति पिछले कुछ महीनों से अनवरत दबाव में है - कभी निगेटिव, कभी न्यूनतम सकारात्मक; और अब सितंबर में यह पुनः सकारात्मक क्षेत्र में आई है, मगर बेहद नीचले स्तर पर।

अर्थव्यवस्था और नीतिगत प्रभाव

  • मुद्रास्फीति नियंत्रण में राहत: थोक स्तर पर मंदी मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में नीति बनाने वालों को कुछ छूट देती है।

  • मॉनेटरी नीति पर असर: यदि यह रुझान जारी रहा, तो भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को ब्याज दरों में कटौती या नरम रुख अपनाने के लिए अधिक जगह मिल सकती है।

  • उद्योग एवं व्यापारों पर दबाव कम: कच्चे माल व इनपुट लागतों में गिरावट उत्पादकों पर लागत दबाव को कम कर सकती है।

  • खेती-उद्योग को असम लाभ: खाद्य कीमतों में गिरावट फसलों और कृषि उत्पादकों की आमदनी पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, खासकर यदि लागत इतना दबाव हो कि उनकी मार्जिन कम हो जाए।

निष्कर्ष

सितंबर 2025 का WPI आंकड़ा संकेत देता है कि थोक स्तर पर मुद्रास्फीति दबाव फिलहाल नियंत्रण में है। खाद्य एवं ऊर्जा की कीमतों की गिरावट इस रिलीफ का मुख्य कारण रही है। हालांकि निर्मित वस्तुओं की महंगाई अभी सकारात्मक बनी हुई है, लेकिन उसकी गति सुस्त पड़ी है।

यदि यह रुझान बरकरार रहा, तो यह न केवल उपभोक्ताओं को राहत देगा बल्कि मौद्रिक नीति को भी अधिक लचीलापन प्रदान करेगा। फिर भी, कृषि एवं खाद्य क्षेत्र में गिरती कीमतों का प्रभाव उत्पादकों पर विपरीत हो सकता है।इसलिए सतर्क निगरानी और नीति इंतजाम आवश्यक हैं।

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