केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में बुधवार को नई दिल्ली में हुई 56वीं जीएसटी परिषद की बैठक में कर ढांचे में व्यापक बदलाव के प्रस्ताव पेश किए गए, जो आम जनता से लेकर छोटे व्यवसायों तक को सीधे लाभ पहुँचाएंगे। इस बैठक में जीवन, स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम, रोजमर्रा की वस्तुएँ, इलेक्ट्रॉनिक्स और वाहनों तक से जुड़ी कई अहम बातें सामने आईं।
दो-स्लैब मॉडल की मंजूरी
काउंसिल ने प्रस्तावित किया कि मौजूदा चार स्लैब — 5%, 12%, 18%, और 28% — को केवल दो में सीमित किया जाए: 5% (आवश्यक वस्तुओं के लिए) और 18% (अन्य वस्तुओं के लिए) । "सिन गुड्स" जैसे तंबाकू, शराब और आलिशान वस्तुओं पर 40% टैक्स की भी सिफारिश की गई है।
इस योजना के अनुसार, 12% स्लैब की लगभग 99% वस्तुएँ अब 5% पर स्थानांतरित हो सकती हैं—जिनमें घी से लेकर ड्राई फ्रूट्स और जूस शामिल हैं। वहीं, 28% स्लैब की करीब 90% वस्तुओं को 18% पर लाया जा सकता है—जैसे कि टीवी, फ्रिज, एयर कंडीशनर और सीमेंट।
रोजमर्रा की वस्तुओं पर टैक्स में राहत
इस कदम से साबुन, छोटे मोटर वाहन, पैकेज्ड स्नैक्स, खाद्य सामग्री और दैनिक उपयोग की वस्तुओं जैसे फर्टिलाइजर तक पर टैक्स में उल्लेखनीय कमी आएगी। इससे महंगाई पर नियंत्रण और घरेलू खर्चों में राहत मिलने की उम्मीद है।
बैठक में व्यापारियों पर अनुपालन बोझ कम करने के प्रस्ताव भी मंजूर किए गए। इसमें MSME रजिस्ट्रेशन को 30 दिन से घटाकर सिर्फ तीन दिनों में पूरा करने की योजना शामिल है। साथ ही, एक्सपोर्टर कंपनियों के लिए स्वचालित जीएसटी रिफंड व्यवस्था भी प्रस्तावित की गई है।
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राज्यों में राजस्व नुकसान पर चर्चा
कई विपक्षी-शासित राज्यों ने नए टैक्स रिवाइजनों से अपनी प्राथमिक आय में गिरावट की आशंका जताई है। उदाहरण के लिए, झारखंड वित्त मंत्री ने ₹2,000 करोड़ सालाना राजस्व हानि का अनुमान जताया, जबकि जम्मू-कश्मीर में यह गिरावट 10–12% तक हो सकती है। राज्यों ने पारदर्शिता और खामियों को दूर करने के लिए केंद्र से राजस्व मुआवजे की मांग की है।
अर्थव्यवस्था और मिडल क्लास को उम्मीद
वित्त मंत्री ने इससे पहले अगस्त में जीओएम (Group of Ministers) की बैठक में स्पष्ट किया था कि ये सुधार “आम आदमी, किसान, मध्यम वर्ग और MSMEs” को राहत पहुँचाने की दिशा में हैं। साथ ही, टैक्स सिस्टम को सरल, पारदर्शी और विकास उन्मुख बनाना इसका लक्ष्य है।
निष्कर्ष
इस बैठक ने जीएसटी ढाँचे में लंबे समय से प्रतीक्षित सुधारों को एक निर्णायक दिशा दी है। अब कर संरचना को सरल बनाते हुए केवल दो दरें — 5% और 18% — प्रस्तावित की गई हैं, जबकि विशेष “सिन गुड्स” पर 40% की दर तय की गई है। साथ ही, अनुपालन बोझ कम करने के लिए एमएसएमई पंजीकरण की प्रक्रिया को तेज करने और स्वचालित रिफंड व्यवस्था जैसे कदम व्यापार जगत को बड़ी राहत देंगे। कर दरों में कमी से उपभोक्ताओं के खर्च में गिरावट आने और आर्थिक गतिविधियों को गति मिलने की संभावना है।
फिर भी, राज्यों की राजस्व संबंधी चिंताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। संभावित नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र को ठोस मुआवजा तंत्र तैयार करना होगा, जिससे संघीय वित्तीय संतुलन बना रहे। यदि यह संतुलन साधा गया, तो “जीएसटी 2.0” देश की अर्थव्यवस्था को न केवल स्थिरता प्रदान करेगा बल्कि घरेलू मांग को प्रोत्साहित कर विकास की नई राह भी खोलेगा।
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