जापान के वित्त मंत्री कात्सुनोबु काटो ने Web3 सम्मेलन WebX 2025 में कहा कि क्रिप्टो परिसंपत्तियों को निवेश पोर्टफोलियो का वैध हिस्सा माना जा सकता है। उनका तर्क था कि हालाँकि यह संपत्ति अत्यधिक वोलैटाइल है, परंतु यदि सरकार एक सुरक्षित और पारदर्शी ट्रेडिंग वातावरण बनाती है तो इन्हें विविध निवेश के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

जापान की वित्तीय सेवा एजेंसी (FSA) ने हाल ही में प्रस्ताव रखा कि क्रिप्टो लाभ को अब "विविध आय" (15–56% टैक्स) से हटाकर स्टॉक्स जैसी श्रेणी में रखा जाए और उस पर केवल 20.315% फ्लैट टैक्स लगाया जाए। यह स्पष्ट करता है कि जापान सरकार क्रिप्टो को मुख्यधारा निवेश ढांचे में स्थान देना चाहती है।

संस्थागत और तकनीकी पहल

मेटाप्लेनेट  कंपनी का FTSE Russell इंडेक्स में मध्यम दर्जे की कंपनियों के श्रेणी में शामिल होना इस ओर संकेत करता है कि बिटकॉइन आधारित कंपनियाँ अब गंभीर निवेश विकल्प बन रही हैं। एसबीआई समूह की साझेदारी, रिपल, सर्कल (यूएसडीसी), चेनलिंक जैसी वैश्विक कंपनियों से, जापान को डिजिटल वित्त के क्षेत्र में अग्रणी बना रही है। जेपीवाईसी  स्टेबलकॉइन (येन आधारित) का संभावित लॉन्च यह दर्शाता है कि जापान अपनी मुद्रा और क्रिप्टो को जोड़ने की दिशा में प्रयोग कर रहा है।

आर्थिक संदर्भ: भारी ऋण और क्रिप्टो का महत्व

जापान की डेब्ट-टू-GDP दर 200% से अधिक है। ऐसे में पारंपरिक साधनों पर निर्भर रहना जोखिम भरा हो सकता है। सरकार का दृष्टिकोण है कि क्रिप्टो परिसंपत्तियाँ इस स्थिति में निवेशकों को विविधीकरण और बचाव कवच प्रदान कर सकती हैं।

भारत में नीति अस्पष्टता सबसे बड़ी चुनौती

भारत ने अभी तक क्रिप्टोकरेंसी को लेकर कोई स्पष्ट नियामक ढांचा नहीं अपनाया है। दो हजार बाईस के बजट में सरकार ने क्रिप्टो लाभ पर 30% कर और एक प्रतिशत टीडीएस लागू किया, परंतु यह कदम निवेशकों के लिए अधिक दमनकारी साबित हुआ। इसके विपरीत जापान का रुख टैक्सेशन को सरल बनाकर निवेश को आकर्षित करने का है।

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संस्थागत भागीदारी की कमी

भारतीय बैंक और वित्तीय संस्थाएँ क्रिप्टो या ब्लॉकचेन कंपनियों से सीधे साझेदारी करने से बचती रही हैं। जबकि जापान में एसबीआई समूह  जैसी कंपनियाँ वैश्विक साझेदारियाँ कर रही हैं और JPYC जैसा स्टेबलकॉइन लॉन्च की तैयारी है। भारत में इस स्तर का संस्थागत समर्थन फिलहाल अनुपस्थित है।

आर्थिक स्थिरता बनाम अवसर

भारत का डेब्ट-टू-GDP अनुपात जापान जितना गंभीर नहीं है, लेकिन देश को तेजी से बढ़ते डिजिटल एसेट बाजार को आर्थिक अवसर के रूप में देखना चाहिए। क्रिप्टो और ब्लॉकचेन का उपयोग न केवल निवेश विविधीकरण बल्कि फिनटेक, भुगतान और रेमिटेंस सेक्टर में दक्षता ला सकता है।

भारत के लिए सुझाव

  1. स्पष्ट नियामक ढांचा: जापान की तरह क्रिप्टो को टैक्सेशन और निवेश श्रेणी में पारदर्शी ढंग से परिभाषित करना चाहिए।

  2. संस्थागत भागीदारी प्रोत्साहन: बैंकों और फिनटेक कंपनियों को वैश्विक साझेदारी की अनुमति देकर भरोसा बढ़ाना चाहिए।

  3. स्थानीय स्टेबलकॉइन और CBDC प्रयोग भारतीय रुपया आधारित स्टेबलकॉइन या डिजिटल रुपया को निजी पहल के साथ जोड़ा जा सकता है।

  4. निवेशक शिक्षा: वोलैटिलिटी को देखते हुए निवेशकों को सही जोखिम प्रबंधन की जानकारी देना आवश्यक है।

निष्कर्ष

जापान ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि क्रिप्टो परिसंपत्तियाँ अब केवल एक वैकल्पिक प्रयोग नहीं, बल्कि विविध निवेश रणनीति का वैध हिस्सा हो सकती हैं। कर सुधार, संस्थागत समर्थन और नई तकनीकी पहल से जापान निवेशकों को आकर्षित कर रहा है।

भारत के सामने अवसर है कि वह केवल कर वसूली पर न रुके, बल्कि क्रिप्टो और ब्लॉकचेन को वित्तीय नवाचार के इंजनकी तरह अपनाए। सवाल है— जापान ने पहल कर दी, भारत इस बहस में सक्रिय कब होगा?