भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के डिप्टी गवर्नर टी. रबी संकर ने 12 दिसंबर को मुंबई में आयोजित ‘मिंट वार्षिक BFSI कॉन्क्लेव-2025’ स्टेबलकॉइन को लेकर व्यापक निर्णयात्मक टिप्पणियाँ कीं। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को वैश्विक रुझानों का अनुसरण करने से पहले अपने घरेलू आर्थिक हितों, मौद्रिक संप्रभुता और वित्तीय स्थिरता को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि स्टेबलकॉइन सम्बन्धित जोखिम मौद्रिक नीति और वित्तीय व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डाल हो सकता है।
उन्होंने अपने भाषण में स्पष्ट किया कि स्टेबलकॉइन भले ही वे किसी फिएट मुद्रा जैसे डॉलर या अन्य प्रमुख संपत्ति से जुड़े हों, वे पारंपरिक मौद्रिक सुविधाओं को लेकर अनिश्चित और अस्थिर बने रहते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी डिजिटल संपत्तियाँ मौद्रिक नीति के संचालन को कठिन बना सकती है और स्थानीय मुद्रा के उपयोग तथा वित्तीय नियमों की अवहेलना के जोखिम पैदा कर सकती हैं। इसीलिए भारत को इस क्षेत्र में सतर्कता अपनानी चाहिए, विशेष रूप से उन सिद्धांतों के आधार पर जो घरेलू प्राथमिकताओं पर केंद्रित हों।
भारत की तेज़, सुरक्षित और किफायती भुगतान व्यवस्था
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के उप-गवर्नर टी रबी संकर ने कहा कि भारत को वैश्विक ट्रेंड के अंधानुकरण में नहीं जा कर अपने घरेलू हितों और मौद्रिक संप्रभुता को प्राथमिकता देनी चाहिए। संकट से बचने की रणनीति पर बोलते हुए संकर ने कहा कि भारत पहले से ही तेज़, सुरक्षित और किफायती भुगतान व्यवस्था चला रहा है।
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), RTGS और NEFT जैसे प्रणाली देशव्यापी डिजिटल लेनदेन को बड़े पैमाने पर संभाल रही है। ऐसे में निजी स्टेबलकॉइन के व्यापक उपयोग का औचित्य सीमित दिखता है और वे मौद्रिक संप्रभुता के लिए जोखिम बन सकते हैं। यहाँ तक कि स्थापक विदेशी केंद्रित हों तो इससे देश में मुद्रा प्रतिस्थापन और डॉलराइजेशन जैसी समस्याएँ उभर सकती हैं।
स्टेबलकॉइन की सीमाएँ
RBI के दृष्टिकोण का एक प्रमुख बिंदु यह है कि स्टेबलकॉइन कभी भी वह एकल, विश्वसनीय मुद्रा संबंधी विशेषताएँ नहीं दे सकती जो किसी राज्य द्वारा समर्थित फिएट मुद्रा देती है। संकर ने कहा कि केंद्रीय बैंक के जारी किए गए डिजिटल मुद्रा (e-रुपया) जैसी पहल नीतिगत नियंत्रण, पारदर्शिता और वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं। इसलिए नवाचार को नियंत्रित और विनियमित ढांचे के भीतर ही विकसित किया जाना चाहिए।
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उप-गवर्नर ने यह भी रेखांकित किया कि स्थापक निजी संस्थाओं को सेइग्नेज (seigniorage), यानी मुद्रा जारी करने से होने वाली आय का लाभ मिलना देश की वित्तीय और राजस्व नीतियों के लिए चुनौती पैदा कर सकता है। इसके अलावा, यदि बड़े पैमाने पर यूजर्स निजी स्टेबलकॉइन पर विश्वास करने लगे तो बैंक निर्देशित क्रेडिट इंटरमीडिएशन कमजोर हो सकता है, जिससे बैंकिंग चैनलों के माध्यम से क्रेडिट प्रवाह और आर्थिक प्रबंधन प्रभावित हो सकते हैं।
भारत की नीति शांत रूप से सतर्क है
जहाँ एक ओर RBI नवाचार को नकारता नहीं है, वहीं वह इसे सार्वजनिक हित और वित्तीय स्थिरता के अनुरूप नियंत्रित मार्गों से होने देना चाहता है, जैसे कि CBDC का विस्तार, टोकनाइजेशन और अन्य विनियमित डिजिटल प्रणालियाँ। RBI की कोशिश है कि डिजिटल मुद्रा और भुगतान के फ़ायदे नागरिकों तक पहुँचें, पर वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि इससे मौद्रिक नीति, कराधान और आर्थिक संप्रभुता प्रभावित न हों।
विश्लेषकों का कहना है कि यह रुख वैश्विक संदर्भ में भी समझदारी भरा है। कई विकसित अर्थव्यवस्थाएँ स्टेबलकॉइन पर नियम बना रही है, पर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए विदेशी-आधारित स्टेबलकॉइन के व्यापक उपयोग से विनिमय दर, पूँजी प्रवाह और घरेलू वित्तीय व्यवस्था पर दबाव पड़ सकता है। RBI के संकेत से स्पष्ट है कि भारत में कर, कस्टडी, मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम और वित्तीय उपभोक्ता सुरक्षा जैसे पहलू सबसे पहले तय किए जाएंगे।
निष्कर्ष
RBI के उप-गवर्नर टी रबी संकर की टिप्पणियाँ यह संकेत देती हैं कि भारत स्टेबलकॉइन को पूरी तरह अपनाने की दिशा में तेजी से नहीं बढ़ेगा। बल्कि देश का फोकस घरेलू समाधानों, जैसे UPI, e-रुपया और टोकनाइजेशन, को मजबूत करने पर रहेगा ताकि भुगतान का सुविधा, मौद्रिक संप्रभुता और वित्तीय स्थिरता बनी रहे। नीति निर्धारण में वैश्विक रुझानों को देखा जाएगा, पर अंतिम निर्णय देश की घरेलू प्राथमिकताओं और प्रणालीगत जोखिमों को ध्यान में रख कर ही लिया जाएगा।
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